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रिम्स में इलाज होता है या जुनियर डॉक्टरों को सीखने के लिए शरीर मिलता है ?

* एक डॉक्टर दूसरे डॉक्टर की लिखा इंजेक्शन जो उसे दो मिनट में
लगने वाला है, यह कहकर रोक दे कि गलत इंजेक्शन लिख दिया है मत दीजिए, तो
….
 

* दवा चढ़ाते वक्त नर्स ड्रिप लगाने के लिए नसें टटोल कर सुई लगा
दे
,सुई
गलत लग जाए फिर सुई निकाल कर चुपचाप वहां से चली जाए, तो

 

* चंद घंटों में एक के बाद एक आठ इंजेक्शन लगे और फिर भी तकलीफ
कम ना हो, तो

 

* पीपीपी ( सरकार निजी कंपनी भागीदारी) मॉडल पर चला रहा 24 घंटे
अल्ट्रासाउंड का दावा करने वाला विभाग आपको सुबह आठ बजे आने को कहने लगे, तो…

 # तो दोष आपका है, आप किस अस्पताल में इजाल कर रहा है, किस भरोसे
आपने अपनी जिंदगी इनलोगों के हवाले कर दी है आपको सोचना चाहिए. अगर यह झारखंड का
सबसे बड़ा अस्पताल हो, तो दोष किसका है
?

अस्पताल में चंद मिनटों में कोई कैसे जिंदगी की जंग
हार जाता है
,  कोई लंबी गहरी सांसे लेकर जिंदगी से लड़ रहा होता है, कोई दर्द
से चीख रहा होता है, कोई शुन्य की तरफ एकटक ऐसे देखता है, जैसे मौत को अपनी तरफ आता
देख रहा हो. आज दिनभर राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान ( रिम्स) के आपातकाल विभाग
में था. ऐसे ही कई मंजर आंखों के सामने थे. एक 20 से 22 साल का आधा अधूरा डॉक्टर
किसी बुजुर्ग को मौत के मूंह से खींचकर लाने की कोशिश में था. बार
बार
बुजुर्ग की छाती पर हथेली से दबाव बना रहा था, थोड़ी देर में थक जाता तो उठकर ऐसे चला जाता जैसे कोई खबर लिखते वक्त हम ताजी हवा खाने चले जाते हैं ताकि आकर और बेहतर लिख सकें. अंत में डॉक्टर हारा और मौत जीत गयी. मैं उनकी तरफ ही देख रहा था क्या
फिल्मों की तरह असल में डॉक्टर कहते हैं, सॉरी हम इन्हें बचा नहीं सके लेकिन यहां
तो डॉक्टर ने कुछ कहा नहीं और परिवार वाले समझ गये. मौत अपने साथ 70 साल से ऊपर के बुजुर्ग को अपने साथ ले गयी थी.  मैंने यहां किसी की आंखों में आंसू नहीं देखे, फिल्मी गानों के साथ
रिश्तेदार का फोन बजा उन्होंने फोन पर किसी से इतना ही कहा, बस अभी
अभी
इंतकाल हुआ है आधे घंटे पहले तो लेकर आये थे….  चंद घंटों में दो मौतें देखीं, जिंदगी से लड़ते
हुए लोगों को देखा.  कम अनुभवी लेकिन सीखने की ललक में काम करते जुनियर डॉक्टरों, जो शरीर को सिर्फ अपना स्टडी टेबल मानते हैं, गलती हो भी गयी तो कोई बात नहीं सीखने की उम्र है… 

दोस्त को कमर में दर्द की शिकायत थी, दर्द कमर से होता हुआ पैर
तक पहुंच गया था. दर्द इतना कि चलना, तो दूर पैर हिलाना मुश्किल.  दर्द बढ़ रहा था, हर बार कोई डॉक्टर आता और
इंजेक्शन लिखकर चला जाता. नर्स एक के बाद एक इंजेक्शन दे रही थी. दर्द है कि कम
होने का नाम नहीं ले रहा. मेरे दोस्त पत्रकार हैं और दो  संस्था के लोग उनकी मदद के लिए लगे थे जिसे
जहां समझ आ रहा था वहां फोन कर रहा था. मदद के लिए फोन जा रहे थे और डॉक्टर हमें
आकर लिख रहे थे इंजेक्शन. पैरवी बड़ी, तो हमसे भी कच्ची उम्र के डॉक्टरों ने थोड़े
अनुभवी डॉक्टर को बुलाया उन्होंने भी इंजेक्शन ही लिखा. मैंने बताया कि सर पहले ही
पांच इजेक्शन पड़ चुके हैं. डॉक्टर साहेब बोले ये मसल्स पेन के लिए है भाई… अब
डॉक्टर से पूछ तो नहीं सकते ना कि भाई जो पहले पड़े वो काहे के थे.. फिर इंजेक्शन पड़ा
यह छठा था. यहां सभी नर्स के इंजेक्शन देने का तरीका कमाल का है इंजेक्शन ऐसे
पकड़ती है जैसे चाकू पकड़ा हो…

इस इंजेक्शन के बाद भी दर्द कम नहीं हुआ, तो और ज्यादा अनुभवी
वाले डॉक्टर आये. इन्होंने बगैर नब्ज पकड़े एक और दवा बतायी जिसे  ड्रीप लगाकर चढ़ाना था. एक नर्स आयीं और
उन्होंने ड्रिप लगाने के लिए नस टटोलनी शुरु की. नस मिली, तो ड्रिप लगाने की पूरी
कोशिश की. हम वही खड़े देख रहे थे. हमारे मुंह से चीख निकल रही थी जैसे वो ड्रिप
लगा रही थी. ड्रिप लगायी और दवा चढ़ाने लगीं तो दवा नसों में जा ही नहीं रही थी.
मोहतरमा ने पूरी कोशिश की लेकिन जब उनसे नहीं हुआ तो वह ड्रिप खोलकर चुपचाप दूसरे
मरीज के पास चली गयीं. फिर दूसरी नर्स ने यह काम किया. अब सोचिये रिम्स जैसे बड़े
अस्पताल में नर्सों को ड्रिप ना लगाना आये तो मरीज कितने सुरक्षित हाथों में हैं,
दोष किसका है
?
इस बीच डॉक्टरों के आने का सिलसिला जारी था. अल्ट्रासाउंड और
एक्सरे लिखे जा चुके थे और इंजेक्शन की संख्या आठ हो चुकी थी. पांच इंजेक्शन अभी
भी पड़ने वाले थे. दर्द पहले से कम था. एक डॉक्टर इंजेक्शन लिखकर जाता दूसरा आकर
पूछता ये वाला किसने लिखा है, हम एक दूसरे के चेहरे देखते. अब हम अब डॉक्टरों के
नाम भी पूछने लगे थे ताकि दूसरे को बता सकें कि फलां ने. एक डॉक्टर ने दूसरे
डॉक्टर के इंजेक्शन को गलत बताते हुए उसे लिस्ट से काट दिया कहा, यह मत लीजिए. अब
सोचिये कौन सा ले कौन सा ना ले. जो इंजेक्शन कुछ मिनटों में उन्हें दिया जाना था
दूसरे ने गलत बताकर काट दिया, दोष किसका
? दर्द और तकलीफ में यहां आप
सिर्फ एक शरीर होते हैं, जिस पर कई तरह के प्रयोग करने वाले डॉक्टर
इंमरजेंसी से जब हम निकलकर अल्ट्रासाउंड के लिए गये, तो
पता चला 24 घंटे सेवा देने का वादा करने वाला बोर्ड कुछ और कह रहा और
 उसी बोर्ड के नीचे
बैठा कर्मचारी कुछ और,  डॉक्टर साहेब छह
बजे घर चले जाते हैं, कितनी भी इमरजेंसी हो अल्ट्रासाउंड कराना है तो सुबह आठ बजे
का इंतजार कीजिए, हां एक्सरे हुआ… अब पूछिये कि दोष किसका
?

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