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नोटबंदी : साहेब को 50 दिन चाहिए और तबतक …

अगर आप बीमार है और हर दिन आपकी बीमारी बड़ी होती जा रही है. अस्पताल वालों ने आपको समय दे रखा है आप 50 दिन तक इंतजार कीजिए. आपके गांव के कई लोग इस बीमारी की चपेट में जान गवां चुके है लेकिन आप अबतक बचे हैं सिर्फ इसलिए कि कुछ पुरानी दवाएं आपका साथ दे रही है. बीमारी हर दिन  बढ़ रही है और आपकी दवा खत्म हो रही है. अब आपके पास 50 दिनों से पहले कोई रास्ता नहीं है.

अस्पताल ने आपकी स्थिति देखकर एक रास्ता सुझाया कहा, हम आपको यहां भरती नहीं कर सकते लेकिन आपको घर में एक नौसिखवा डॉक्टर दे देते हैं, डॉक्टर आपकी बीमारी को नये तरीके से देखता और इलाज शुरू करता है.  कुछ दिन  बाद कह देता है कि हमको भी समझ नहीं आ रहा क्या करें कौन सी दवा दें. एक दिन वो हाथ खड़े कर देता है. आपकी तकलीफ कम नहीं हुई आप दर्द से चिल्ला रहे हैं. अस्पताल तक आपकी चीख पहुंचती है जवाब आता है  अभी भी 50 दिन पूरे होने में 20 दिन बाकि है.  आप क्या करेंगे ? .इंतजार या ….

कहानी आप समझ रहे होंगे… अगर नहीं समझे तो सीधे शब्दों में समझ लीजिए. मेरे पास इतने पैसे नहीं थे कि मैं नोटबंदी के बाद लाइन में खड़े देशभक्तों के साथ देशनिर्माण का हिस्सा बनता.  मेरी जरूरत इतनी भी नहीं थी कि मैं हर दिन दो-  तीन घंटे लंबी लाइन में खड़ा रहता. हां एक दिन मैं भी देशभक्त बना.  मैंने घर बदला था. नये घर मालिक और सामान लेकर आने वाली गाड़ी के मालिक को पैसे देने थे. इसके बाद जब देशभक्तों का रेला एटीएम से हट जाता तब मैं देशनिर्माण में अपनी भागेदारी देता क्योंकि रात के 12 बजे मुझे मेरे दफ्तर से छुट्टी मिलती थी.  दिन बीत रहे थे जरूरतें बड़ी हो रही थी घर के राशन के लिए कैश चाहिए,

पेट्रोल – डीजल के लिए पैसे चाहिए, ऑटो का भाड़ा देने के लिए पैसे चाहिए, शाम में कुछ नास्ता करने के लिए पैसे चाहिए. नयी गाड़ी खरीदनी है उसके लिए पैसे चाहिए. समस्या बड़ रही है और 50 दिन पूरे नहीं हो रहे.
प्रधानमंत्री ने एक रास्ता सुझाया कैशलैश का. मैंने एसबीआई का एप डाउनलोड किया. यह ताजा दवा थी जो नये डॉक्टर ने मुझे सुझायी थी.  अपने अकाउंट से 8000 रुपये इस एप में लेकर आया ताकि सीधे घर मालिक के अकाउंट में ड्रांसफर कर सकूं. पता चला यहां भी लीमिट है.  

एक दिन में सिर्फ दो हजार. अब मैं इस एप के चक्कर में फंस गया. किसी तरह बहन ने घर मालिक तक पैसे पहुंचाये लेकिन,  मेरे आठ हजार इस एप में फंस गये. अब उन्हें हर दिन अकाउंट में भेजने लगा. कल मैंने दो हजार रूपये भेजे, लेकिन पैसा कट गया और मेरे अकाउंट तक पहुंचा नहीं. सोचा कस्टमर केयर में फोन कर लेता हूं. नंबर इंटरनेट से ढुढ़ कर फोन किया. पहले ये दबायें वो दबायें सब दबाने के बाद आधे घंटे का इंतजार फिर, फोन रिसीव  हुआ, तो यह कह दिया ,  गलत विभाग में लग गया है. फोन ट्रांसफर कर देता हूं.  फिर फोन कट. फिर वही प्रक्रिया और लंबा इंतजार अबतक कस्टमर केयर वाले मेरी समस्या पर केयर नहीं कर सकें हैं.
कैशलैश उस नवसीखिये डॉक्टर की तरह है जिसे कुछ नहीं पता. सोचा इंटरनेट बैंकिंग में जाकर चेक कर लूं अकाऊंट के क्या हालात है, तो वेबसाइट बंद लिख दिया कि हम आपकी बेहतरी के लिए काम कर रहे हैं थोड़ा वक लगेगा. कितना वक्त लगेगा . क्या यहां भी 50 दिन ?

आपके कैशलैस सिस्टम पर गुरू मुझे तो भरोसा कम है. कैशलैस के लिए इंटरनेट की सिक्योरिटी और मजबूत करनी होगी. इस सरकारी ऑफिस टाइप के रवैये से, तो कैशलैस सोसाइटी बन गयी आपकी. बात रही मेरे दो हजार रूपये की और बाकि एप में फंसे पैसे की तो मेरे मेहनत की कमाई है एक पइसा भी इधर से उधर कर के देख लो उठा के पटक ना दूं तो कहना है. हां डरा जरूर दे रहे हो . बैंक बंद, एप  काम नहीं कर रहा, इंटरनेट बैंकिग में हमारी बेहतरी के लिए काम हो रहा है. तेल लेने गयी आपकी बेहतरी और कालेधन की तुतरी , हर दिन छापेमारी में नये नोट की खबर, शादियों में लाखों करोड़ों का खर्च, और दूसरी तरफ  नोटबंदी के कारण अबतक 80 से ज्यादा लोगों की मौत. जवाब तो देना होगा साहेब संसद में भी और जनसभा में भी. आपकी सुनते रहे हैं हमारी भी सुनने की आदत डालनी होगी आपको.

पत्रकारिता का छात्र रहा हूं और कम्युनिकेशन अच्छी तरह समझता हूं  वन वे कम्युनिकेशन को सफल नहीं माना जाता. आपको  भी भीड़ में सिर्फ मोदी- मोदी सुनायी देता होगा. लोगों की परेशानी और लाइन में लगकर मर गये लोगों के परिवार वालों की आह भी सुनने की कोशिश कीजिए. आपके भक्तों के शोर के बीच हमारी भी दबी आवाज है मालिक जो आपको हमारा दर्द बता रही है. ऐसा नहीं कि हम आपके समर्थक नहीं पर अंधभक्त नहीं साहेब……  

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