बुधिया पर आ रही फिल्म इसी कड़ी को आगे बढ़ायेगी. अक्सर सवाल उठते हैं कि इतनी जनसंख्या और इतनी प्रतिभा होने के बावजूद भी हम ओलंपिक में पीछे क्यों रह जाते हैं? . बुधिया की कहानी इन सवालों का एक जवाब है. उसे ट्रेनिंग देकर निखारा जा सकता था लेकिन हमने हीरे को तराशने के बजाय उसकी चमक को दबा दिया. फिल्मों का एक अलग असर होता है संभव है कि इस फिल्म के रिलीज होने के बाद बुधिया को एक अलग तरह से देखा जाए लेकिन अभी तो उसकी हालत एक ऐसे खिलाड़ी की तरह है जो जीत सकता है लेकिन मौके और सही ट्रेनिंग के अभाव में बैठा है.
एक बुधिया ही नहीं है ऐसे कई खिलाड़ी है जो प्रतिभावान है बस एक मौके की तलाश है. बुधिया पर फिल्म इसलिए बन रही है क्योंकि एक वक्त मीडिया ने इसकी खूब चर्चा की. बुधिया की कहानी बेची जा सकती थी इसलिए उस पर फिल्म बन रही है और संभव है कि बुधिया का नाम याद रखने वाले लोग इससे जुड़ाव महसूस करें. मैं मिल्खा सिंह को ठीक से नहीं जानता था और फिल्म से पहले शायद ही उनका नाम इतना सुना जितना फिल्म रिलीज होने के बाद.
मिल्खा सिंह की कहानी बेहद शानदार थी और उनके जीवन के सफर को परदे पर देखना एक अलग अनुभव. मिल्खा को आज जो पहचान मिली या युवाओं में जो उनकी पहचान है इसमें उनके सफर से ज्यादा इस फिल्म का योगदान है. जिसने उन्हें एक बार फिर चर्चा में ला दिया. इस फिल्म के साथ भी मेरी कुछ ऐसी ही उम्मीदें है मिल्खा तो अपने जीवन का अच्छा प्रदर्शन कर चुके थे लेकिन बुधिया में अभी संभावनाएं बाकि है सपने बाकि है. बस जरूरत है उसे सही ट्रेनिंग और सही दिशा दिखाने की
Leave a Reply