News & Views

Life Journey And journalism

झारखंड : सरकारी दावों के इतर कोल माइंस के इलाके की काली सच्चाई, ना साफ हवा, ना साफ पानी और ना सुरक्षित जमीन

                 ग्राऊंड रिपोर्ट



घर सबसे सुरक्षित जगह होती है. हम सभी
अपने घर में सबसे ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं. जरा सोचिये
, अगर आपके सबसे
सुरक्षित स्थान पर ही सबसे ज्यादा खतरा हो तो…. झारखंड में धनबाद
, बोकारो जिले के कई
इलाके ऐसे हैं जहां लोग इसी असुरक्षा के बीच रह रहे हैं.हर रोज नये खतरे का डर
, कहीं जमीन धंसने की
खबर तो कहीं से मिथेन गैस के रिसाव के कारण लगी आग.आपके नीचे की जमीन ही सुरक्षित
नहीं
, तो
हर वक्त जान का खतरा रहता ही है. इस इलाके में भारी बारिश के कारण जमीन से
ज्वालामुखी फटने के जैसा नजारा देखने को मिला.


इस पर कम चर्चा हुई. धनबाद- चंद्रपुरा रेल लाइन
सुरक्षा के लिहाज से बंद हुआ लेकिन इस घटना पर ना तो चर्चा हुई और ना ही सुरक्षा
के लिहाज से कोई कदम उठाये गये. मैं इस इलाके से कुछ दिनों पहले ही लौटा हूं.

बेरमो जारंगडीह इलाकों में कई जगहों पर
गैस रिसाव, तो जमीन से निकलते काले धुएं का गुबार देखने को मिलता है. सड़क के बीच
ही कभी धमाका हो गया तो कभी, कोल माइंस के नजदीक इतना जोरदार धमाका हुआ कि आसपास
रखे टीन के डिब्बे हवा में उड़ने लगे. इन इलाकों से आ रही ऐसी खबरें कभी कभी अखबार
के कोने में जगह बनाने में कामयाब होती है. इस तरफ ना तो किसी का ध्यान जाता है और
ना ही इसकी चिंता करने वाला कोई है. 

चंद घंटों में मैंने एक छोटी सी  कोशिश की
है कि इन इलाकों से आपका एक परिचय करवा सकूं. कोल माइंस से कैसे कोयला निकलता है.
कैसे डपिंग यार्ड तक आता है और माल गाड़ी में लोड होकर अलग- अलग राज्यों में
पहुंचता है. कोयले के छोटे- छोटे टुकड़े करने के लिए मशीन लगी है. इन मशीनों को
ऐसी जगह लगाया गया जहां छोटी-छोटी कई बस्तियां हैं. कोयले को काटते वक्त जो गंदगी
धुएं के रूप में निकलती है इन इलाकों में रहने वाले लोगों को बीमार कर रहा है. कई
लोगों की जान इस धुएं से चली गयी तो कई गंभीर रूप से बीमार है. इलाके में रह रहे
लड़कों ने इस मशीन को बंद कराने की पूरी कोशिश की लेकिन राजनीति, सत्ता और पैसे का
खेल इन हमेशा हारने पर मजबूर करता रहा है. हालांकि आवाजें अभी बंद नहीं हुई लेकिन
कम जरूर हो गयी.

इस इलाके में दो तरफा कहर है तेनुघाट का
पानी कई घर बहाकर ले जाता है. एक तरफ बारिश तो दूसरी तरफ आग. जारंगडीह के इस इलाके
में कोल माइंस में ब्लास्टिंग के दौरान स्कूल की छत गिर गयी. कई जगहों पर मिथेन
गैस का रिसाव हो रहा है. कहीं बाऊंड्री घेरकर इस खतरे को नजरअंदाज करने की कोशिश
है तो कहीं
, खुले
में मिथेन गैस के बुलबुलों की आवाज आने वाले खतरे का अहसास करा रही है.
अभी भी बोकारो जिले के गोमिया प्रखंड
इलाके के जारंगडीह में कई कोल माइंस हैं जिन्हें ठीक से नहीं भरा गया. 10 किमी की
लंबी सुरंगों में पानी भरा है.

दामोदर नदी का किनारा जिसकी खूबसुरती मन
मोह लेती है पानी के बुलबुले की आवाज आपका ध्यान खींच लेंगे. इन बुलबुलों से मिथेन
गैस निकल रहे हैं एक माचिस की तिल्ली डाली नहीं की आग तेजी से जलने लगता है. पानी
में आग लगने का यह दृश्य बताता है कि इन इलाकों में जिंदगी हर दिन कितनी मुश्किल
है.

जीने के लिए रोटी, कपड़ा मकान जरूरी है
लेकिन स्वच्छ हवा, पानी, जमीन और आकाश  ना
मिले तो जीवन की कल्पना कैसे करेंगे आप. इन इलाकों में लोग रह रहे हैं. जिनके पास
ना साफ हवा है ना सुरक्षित जमीन ना साफ पानी. इन इलाकों में पीने के पानी के लिए
पानी को साफ करके सप्लाई करने की व्यवस्था है लेकिन मशीन कई दिनों से खराब है.



इलाके के लोगों को पानी तो मिलता है लेकिन उसमें गंदगी इतनी है कि उसे साफ किये
बगैर पिया नहीं जा सकता. लोग पानी गर्म करके पीते हैं, तो कहीं पानी साफ करने के
पांरपरिक तरीके अपना रहे हैं. इन इलाकों में जमीन का रंग काला है, जैसी यहां की
राजनीति काली है. सरकार बैनर और पोस्टर लगाकर अपनी पीठ थपथपा रही है. जरा सोचिये,
विकास के इतने दावों का आप क्या करेंगे अगर सरकार आपकी जमीन से करोड़ों का मुनाफा
कमाती हुए भी आपको साफ हवा, साफ पानी और सुरक्षित जमीन उपलब्ध नहीं कर सकती. इन
इलाकों में जिंदगी आसान नहीं है…..
सिर्फ धनबाद और बोकारो जिले में नहीं कई
ऐसे इलाके हैं जहां खतरा बढ़ रहा है. धनबाद चंद्रपुरा रेल लाइन बंद हुई. बताया गया
कि इलाके में खतरा बढ़ा है.
कब से जल रही है आग
*1930 में अंग्रेजों ने यहां पहली कोयला
खदान शुरू की थी. सुरंग बनाकर खनन की प्रक्रिया अवैज्ञानिक थी
, जिसे आजादी के बाद
निजी खदान मालिकों ने जारी रखा.
*सुरंग के रास्ते से आग को ऑक्सीजन मिली
और वह धधक उठा। झरिया की आग का मुद्दा 1997 में देश के सामने आया.
*80 हजार से ज्यादा लोग जमीन के भीतर
लगी आग से प्रभावित हैं. वे अपना घर छोड़ने को मजबूर हैं।
कितना नुकसान झेला
*10 अरब से अधिक का कोयला जलकर खाक हो
चुका है.
*314 करोड़ रु. आग प्रभावित लोगों के
पुनर्वास पर खर्च हुए.
*83 हजार 640 परिवारों को सुरक्षित
जगहों पर बसाने की योजना.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *