kumbh mela 2025 : आप सभी ने यह पढ़ा और सुना होगा कि यह कुंभ 144 साल बाद आया है। आपने इसके पीछे के तर्क और वजहों के तलाश की कोशिश की है। अगर की है तो बताइये कि सबसे पहला कुंभ मेला कब और कहां लगा था ? हां, अगर व्हाट्सएप के माध्यम से इस संबंध में कोई जानकारी पहुंची है, तो पहले उसकी जांच अपने स्तर तक कर लीजिए फिर आगे बढ़ाइयेगा। अगर आप इन सवालों के जवाब की तलाश करेंगे तो कई नये सवाल आपके सामने आकर खड़े होंगे। आइये आज इस 144 साल के बाद बने इस महासंयोग की वजह तलाशते हैं और समझते हैं कि क्या यह संयोग अब सीधे 144 साल बाद आयेगा ?
144 साल बाद यह संयोग

प्रयागराज का यह कुंभ अब 144 साल बाद, क्यों इस बार ऐसा खास क्या है ? कई पंडित बताते हैं कि प्रत्येक 12 साल में एक पूर्ण कुंभ लगता है। यह महाकुंभ है इसकी खासियत यह है कि 12 पूर्ण कुंभ के बाद यह लगता है। जोड़ लीजिए हो गये ना 144 साल। जब आप 144 साल के इस महत्व को समझ जायेंगे तो सवाल उठेगा सबसे पहला कुंभ कब और कहां लगा, क्योंकि उसी कुंभ के आधार पर तो गिनती शुरू हुई होगी।
पहला कुंभ कब शुरू हुआ ?
मैंने पहला कुंभ मेला कब शुरू हुआ इसकी जानकारी हासिल करने की कोशिश की। मुझे जो सबसे पुरानी और अहम जानकारी मिल सकी हो वो ये कि सम्राट हर्षवर्धन के समय का है, जिसका चीन के प्रसिद्ध तीर्थयात्री ह्वेनसांग द्वारा किया गया है। महाराज हर्ष ने 641 ई. में एक ब्राह्मण को अपना दूत बनाकर चीन भेजा था। 643 ई. में चीनी सम्राट ने ‘ल्यांग-होआई-किंग’ नाम के दूत को हर्ष के दरबार में भेजा था। लगभग 646 ई. में एक और चीनी दूतमण्डल ‘लीन्य प्याओं’ एवं ‘वांग-ह्नन-त्से’ के नेतृत्व में हर्ष के दरबार में आया। इतिहास के मुताबिक, चीन के मशहूर चीनी यात्री ह्वेन त्सांग हर्ष के राज-दरबार में 8 साल तक उनके दोस्त की तरह रहे थे। तीसरे दूत मण्डल के भारत पहुंचने से पूर्व ही हर्ष की मृत्यु हो गई थी। पुराणों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि शंकराचार्य ने इसकी शुरुआत की थी और कुछ कथाओं के अनुसार कुंभ की शुरुआत समुद्र मंथन से ही हो गई थी । अब कथा और कहानियों में पहले कुंभ की कहानी नहीं है ऐसे में इस महाकुंभ का आधार क्या है कहना मुश्किल है। संभव है कि इसके बाद वाला पूर्ण कुंभ ही महाकुंभ हो।

जिम्मेदारियों को पूरा करने से बड़ा कोई कुंभ नहीं
अगर आप इस कुंभ में शामिल नहीं हो पाये। भारी भीड़, सेहत, पारिवारिक समस्या या कोई और वजह रही तो इसका मलाल मत रखियेगा कि यह 144 साल बाद वाला संयोग आपसे छिन लिया गया। इस कुंभ में नहीं नहाये तो जीवन बेकार हो गया। परिवार की जिम्मेदारी निभानी से बड़ा पुण्य या कुंभ कोई नहीं है। वैसे भी यह 144 साल बाद वाला यह संयोग सच में संयोग है या नहीं इसे लेकर ना शास्त्र, ना पुराण कोई आधिकारिक जानकारी नहीं देते हैं। हां इतनी कहानी जरूर है कि…भगवान विष्णु अमृत से भरा कुंभ (बर्तन) लेकर जा रहे थें कि असुरों से छीना-झपटी में अमृत की चार बूंदें गिर गई थीं। यह बूंदें प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन रुपी तीर्थस्थानों में गिरीं। तीर्थ वह स्थान होता है जहां कोई भक्त इस नश्वर संसार से मोक्ष को प्राप्त होता है।
अगला कुंभ नासिक में
कुंभ 2027 में नासिक में लगेगा, 2028 में उज्जैन में सिंहस्थ महाकुंभ होगा और 2030 में प्रयागराज में अर्धकुंभ का आयोजन होगा। आप इंटरनेट पर तलाश करेंगे तो कई जगहों पर 2013 वाले कुंभ को भी महाकुंभ लिखा पायेंगे। ऐसे में तो 144 साल वाला संयोग साल 2013 में ही चला गया। अगर साल 2013 वाला महाकुंभ नहीं था तो यही वाला महाकुंभ है इसका आधार भी तो कुछ नहीं है। इसी आधार पर कोई यह गारंटी भी तो नहीं दे सकता इसके बाद वाला कुंभ महाकुंभ नहीं होगा।

इस बार शामिल नहीं हो सके कोई बात नहीं। सड़क जाम, भारी भीड़ और तमाम परेशानियों को देखते और समझते यह फैसला लेना सही भी नहीं है। हमारे तरफ एक कहावत है, मन चंगा तो कठौती में गंगा। वैसे भी जब ईश्वर चाहेंगे तो आप ना भी जाना चाहें तो सभी रास्ते आपके लिए खुल जाएंगे और अगर आप जबरन उनसे मिलने की जिद पर अड़े रहेंगे तो वही रास्ते बंद भी हो जाएंगे।
हादसों का इतिहास
इस बार हुई भगदड़ को लेकर कई सवाल भी उठ रहे हैं लेकिन यह पहली बार नहीं है इससे पहले भीआजादी के बाद पहली बार 3 फरवरी 1954 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में कुंभ मेले में मौनी अमावस्या के पावन अवसर पर पवित्र स्नान करने के लिए उमड़े श्रद्धालुओं में भगदड़ मच गई. इस दौरान लगभग 800 लोग नदी में डूबकर या तो कुचलकर मर गए.
4 अप्रैल 1986 को हरिद्वार मेले में यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह, कई राज्यों के सीएम और सांसदों के साथ हरिद्वार पहुंचे थे. इस कारण आम लोगों की भीड़ को तट पर पहुंचने से रोका गया. इससे भीड़ बेकाबू हो गई और भगदड़ मच गई. दैनिक जागरण की रिपोर्ट के अनुसार इस हादसे में 200 लोगों की मौत हुई थी.
27 अगस्त 2003 में नासिक कुंभ में भगदड़ मच गई थी, जिसमें 39 तीर्थयात्रियों की जान चली गई थी.
14 अप्रैल 2010 को हरिद्वार कुंभ में शाही स्नान के दौरान साधुओं और श्रद्धालुओं के बीच झड़प के बाद मची भगदड़ में 7 लोगों की मौत हो गई थी .
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