स्वास्थ्य कैसा भी रहे हमें चमकदार चीजें खरीदने की आदत हो रही है. आपके पसंदीदा फल सेव को भी गाड़ी पॉलीस करने वाली लिक्विड से चमकाया जाता है. बात चमकाने और रंग देने तक थी तो हम बीमार थे लेकिन जिंदा थे अब प्लास्टिक के चावल और प्लास्टिक के अंडो का दौर आ रहा है. हाल में ही कोलकाता में प्लास्टिक के अंडे और देश के कुछ हिस्सों में प्लास्टिक के चावल पकड़े गये. खबरों में इसकी खूब चर्चा है और चर्चा तो यहां तक है कि चीन से सारी चीजें आ रही है. बाजारवाद इतना हावी हो रहा है कि हम असली और नकली में फर्क नहीं कर पा रहे. फास्टफुड ने पहले ही दो मिनट में खाना तैयार करने की आदत डाल दी है.
चौमिन और मैगी अब किन शहरों में या दूर दराज के किन गांव, मॉल या मेले में नहीं मिलता. भारतीय व्यजंन गायब हो रहे हैं और उनकी जगह ले रहे हैं चाऊमिन, पिज्जा, बर्गर और मोमो. खाने में हम इतनी चीनी हो रहे हैं कि भारतीय खानों की मिठास कहीं गूम हो गयी है. आनेवाली पीढ़ी तो दलपिट्ठी, छिलका, धुसका जैसे भारतीय व्यजंन का स्वाद भी शायद याद रख पाये.
गूगल पर आप प्लास्टिक चावल सर्च करके देखिये. न्यूज वेबसाइट में ऐसे खबरों की एक बाढ़ है जो आपको बता रही है कि कैसे आप प्लास्टिक चावल की पहचान कर सकते हैं. खाने की हर चीज में मिलावट आम बात है लेकिन खाने की चीज ही प्लास्टिक से बनी हो तो. गांव से जब बुजुर्ग आते हैं तो कहते हैं तुम्हारे शहर में हवा सही नहीं, दुध सही नहीं, खाना सही नहीं, जीनवशैली सही नहीं, मेल मिलाप नहीं, साफ सफाई नहीं, क्या करते हो तुम यहां पैसा कमाते हो खर्च किसमें करते हो जब तुम जिंदगी ही ठीक नहीं जी रहे.
बकैती – हम एक खतरनाक दौर में है, जहां गरमी में हमें एसी की हवा रास आती है, खाने में हमें होटल का खाना पसंद आता है. जरा सोचकर देखिये हम किस ओर जा रहे हैं . आने वाली पीढ़ी का भविष्य कैसा होगा. हम और आप कैसे होंगे. ये प्लास्टिक के अंडे और चावल क्या सिर्फ यहीं तक सीमित रहेंगे. या सिर्फ खाने की नकली चीजों के साथ- साथ हम भी नकली हो रहे हैं.
Leave a Reply