कैसे कहे कितने अकेले है हम..
हर सुबह का एक ही नजारा आंखे खुली ऐर तनहा जीवन हमरा, आंखे बंद तो अंधेरा चारो एर हर तरफ एक अजीब सी शाति का शोर. जिंदगी कट रही किसी अपने की तलाश में भले वो ना हो मेरे पास में बस हमें बिठा के रखें दिल के छोटे से कोने के अहसास में.
है दुआं बस इतनी खुदा से जब हमारी आंखे हो जाए हमेशा के लिए बंद तो गिनती के चार लोग तो कमसे कम हो संग जब मिल जाए मेरी खाक में कोई फर्क जब ना रहे मुझमे और राख में फिर छिन ले तु उन्हें मुझसे भले ही वो जाते हुए ये कह दें कि हमें प्यार नहीं है तुझसे.
मैंने पत्थर से प्यार किया ये दुनिया को दिखा दिया. दिल हमेशा ये सोचता रहा कि वो तो मेरे दोस्त थे मेरी मैयत पर आकर उन्होंने दोस्ती का फर्ज अता किया. हमारी लाश की महक जब उन तक जायेगी बेशक उन्हें वो हमारा पहला गुलाब याद करायेंगी. मेरे गुलाब की महक से जब वो बैचैन हो जायेगे. हमारी खाक में मिली राख को अपने आंसुओं से बुझायेंगे. शायद उस दिन वो मेरे प्यार को समझ पायेंगे.
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