चाय बेचकर प्रधानमंत्री नहीं बना सकता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चुनावी भाषण में यह बताकर कि वह चाय बेचते थे. भले ही चाय के प्रोफेशन में मिठास घोल दी हो लेकिन आज भी कोई मां- बाप नहीं चाहेंगे कि उनका बेटा मोरहाबादी के सामने गांधी की प्रतिमा के आगे छोटी सी चाय की टपरी खोलकर बैठ जाए. मां – बाप यह अच्छी तरह जानते हैं कि प्रधानमंत्री चाय बेचकर प्रधानमंत्री नहीं बने राजनीति में उतर कर 13 साल गुजरात का मुख्यमंत्री रहे फिर पीएम की कुरसी तक पहुंचे . चाय बेच रहे होते तो वडनगर में एक छोटी सी या छोटी से थोड़ी बड़ी दुकान होती .
मैं चाय बेचना चाहता हूं
अच्छे कॉलेज से ग्रेजुएट लड़का जब अपने माता पिता को यह बताता होगा कि वह चाय बेचना चाहता है तो उनकी पहली प्रतिक्रिया क्या होती होगी. घर के साथ – साथ माता पिता सबसे ज्यादा समाज की चिंता करते हैं लोग क्या कहेंगे.. इसकी चिंता तो उस लड़के को भी होती होगी जिसने चाय बेचने का सपना देख लिया. उसके दोस्त यार क्या कहेंगे ?. अगर उसकी प्रेमिका है तो वो कैसा महसूस करेगी ?.
इन सारे सवालों का जवाब है मेरे पास क्योंकि अंकित दुबे अपने इस सपने को जी रहे हैं. घरवालों से जब पहली बार उन्होंने बताया कि वह चाय बेचना चाहते है तो घरवालों को उनके सपने समझने में बहुत वक्त लगा. दोस्त यार समझाते रहे कि भाई तू क्या सोच रहा है, चाय बेचेगा, अगर तुझे धंधा ही करना है तो एक बंदा रख तू सिर्फ देखभाल कर चाय क्यों बनाना चाहता है.
आठ महीने से छोटी सी टपरी पर चाय बेच रहे हैं अंकित
अंकित इन सलाहों से तानों से बढ़ते हुए अपने सफर में आठ महीने आगे पहुंच गये हैं. हर रोज शाम पांच बजे से लेकर 9 बजे तक रांची के मोरहाबादी में चाय की दुकान लगाते हैं. उनके पास एक साइकिल है जिसमें उनकी पूरी दुकान आ जाती है. अंकित शुरूआती दिनों को याद करते हैं जब उनके लिए आधे लीटर चाय बेचना भी मुश्किल होता था. कई दिनों तक वह सिर्फ इतनी चिंता करते थे कि आज बोहनी हो जाए. घरवालों से मदद लेनी बंद की थी और चाय की दुकान भी साथ नहीं दे रहे थे. उन्होंने ऐसे वक्त में धर्य रखा और शाम को दुकान लगानी शुरू की. इस तरह उनकी दुकान चल पड़ी.
सात किस्म की चाय और अनोखे मसाले
अंकित दुबे सात किस्म की चाय बनाते हैं. सबसे ज्यादा फेमस है मसाला चाय. कुल्हड़ वाली चाय की कीमत दस रूपये तो कागज के कप के चाय की कीमत 7 रुपये. अंकित के हाथों में जादू है या उनके मसालों में यह कहना मुश्किल है लेकिन चाय बनाते वक्त अंकित कई तरह का मसाला डालते हैं. चाय भी उतनी ही देते हैं जितना आप आनंद लेकर पी सकें. एक घूंट भी बेकार नहीं मिलेगी.
छोटी सी टपरी में चाय की उबाल के साथ उबाल मारता सपना
अंकित इस चाय की दुकान के जरिये बड़ा सपना देख रहे हैं. अंकित अपने स्पेशल मसालों को बाजार में उतारना चाहते हैं. वह चाहते हैं कि उनकी चाय का स्वाद हर घर तक पहुंचे. अंकित का सपना एक बड़ा कैफे खोलने की है. आप उनके सपनों से कितना इस्तेफाक रखते हैं मुझे नहीं पता लेकिन ऐसे बड़े सपने ऐसे कठिन रास्तों से होकर ही गुजरते हैं.
एक पढ़ा लिखा लड़का जो दिल्ली में कई सालों तक नौकरी की तैयारी में लगा रहा. कई होटल और ढाबों में काम सीखता रहा अब अपना रास्ता देख चुका है. मंजिल दिख रही है लेकिन रास्ते आसान नहीं है. इन आठ महीनों ने मंजिल तक धीरे – धीरे बढ़ते उसके कदम अब तेज होने लगे हैं.
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