दिल क्या चाहता है
बचपन
से हम अपनी नन्ही सी आंखों में कई सपने देखते है .भले वो किसी सुपर हिरो को देखकर
हमारी आखों में बसते हो या किसी रोचक कहानी को सुनकर उस जैसा बनने का मन करता हो .
पर बचपने का सपना धीरे –धीरे हमारी आंखो से ओझल होता जाता है . हमारी जिंदगी की पहली सीढ़ी पढ़ाई से हमारी नैतिक जिम्मेवारी शुरु होती है. और वो
बचपन के बचपने से सपने कही खो जाते है . फुरसत में जब कभी याद आती है उन सपनो की
तो हल्की सी मुस्कान होठो पर तैर जाती है . मन करता है जैसे उन सपनों में ही खोये
रहे . अपने विद्यार्थी जीवन में भी हम बहुत सारे सपने देखते है जैसे पूरे समाज को
बदलने का ठेका हम ने ले रखा है .खुब सारे पैसे कमाने के सपने , मंहगे मोबाइल ,बाइक ,कार और एक बड़े से घर में
गार्डन के सपने . और ये सपने बचपने और बचकाने नहीं होते इनको पूरा ना करने का दुख
जिंदगी भर होता है .
कुछ एक तो समझ जाते है कि हम उन सपनों को पूरा नहीं कर पाएंगे
और इसका दर्द उन्हें जिंदगी के उन खुबसुरत लम्हों को जीने से रोकता है जो शायद उन
सपनों के बिना खुशी से जीते . हम कभी खुश नही होते जिंदगी से क्या चाहते है एक
अच्छी नौकरी , खुशी परिवार अच्छे दोस्त सब
होगा फिर भी हमें हर वक्त कुछ कमी सी लगेगी . जब भी सोचता हूं ,आंखे बंद कर के दिल से पुछता हूं – ऐ दिल तु
क्या चाहते है आज भी वो दिल की आवाज सुन नहीं पाता . मन वो अधुरा पन का खयाल कभी
खुलकर हसने नहीं देता, जीने
नहीं देता . कुछ कर गुजरने का जुनून तो है पर कोई राह नजर नहीं आता . मेरे वो सपने
जो बस सपनों में बसते है. लगता था
सपने रह जाएंगे पर यही डर मुझे अपने सपने के और करीब ले जा रहा है . बस इतजार है तो दिल से आवाज निकलने का मै खुश हूं.अपने सपनों को पूरा करने में कई अवरोध
रास्तें में है.बस एक बात अगर मै दिल में बसा लु कि फलक को जिद है अगर यहां
बिजलियां गिराने की तो अब हमेंभी जिद है यही आशियाना बनाने की आंखो मे पलते सपनों को पुरा करने का शौक है पानी
में पत्थर तैराने का शौक है राह में वो पत्थर जो रास्ता रोके खड़े है उन्हें ठोकर
मारकर गिराने का शौक है. बस दिल में एक छोटा सा खौफ है कि ये शौक केवल शौक ना रहे
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