दस हजारी सपने,…

कमी किसी और में नहीं है आज भी कमियां हममें है पर उसे दूर करने का जो जुनून हममें है ना वो खत्म नहीं हुआ.हाल में ही एक फिल्म रिलीज हुए नाम तो याद नहीं पर उसकी एक लाइन दिमाग से नहीं जाती कुछ सपने नींद में बंद आखों में आते है पर खुली आंखों के सपने सोने नहीं देते. हमने भी कुछ ऐसा ही सपना देखा है. सच है खुली आंखों के सपने सोने नहीं देते. लेकिन जब इस नींद की कीमत दिन में चुकानी पड़ती है तो बड़ा अफसोस होता है. खैर जब सपनों की बात कर रहा हूं तो उस सपने को कैसे भूल जाऊं जो पहली नौकरी के वक्त देखा था मैंने जिस वक्त मेरी नौकरी लगी सैलरी छह हजार कुछ सौ रुपये थी. लगता था कब मेरी सैलरी दस हजार रुपये होगी.
लोग जब भी पूछते है तुम्हारी सैलरी कितनी है मैंने हमेशा अपनी सैलरी पूरी तरह से सही बताया पर सोचता था यार दस हजार बोलने में जो मजा है ना पता नहीं कब मिलेगा. कुछ दिनों पहले ही कंपनी में सबकी सैलरी बढ़ी पर आज भी मैं उस दस हजारी सपने के करीब ही पहुंचा है. भले ही पांच सौ की दूरी हो पर मंजिल से एक कदम की दूरी वही समझ सकता है जिसने एक उम्मीद के साथ कमद बढ़ाया हो. आज मेरे लगभग सभी सहयोगी इस आकड़े को पार कर चुके है. लेकिन मेरे दस हजारी सपने आज भी पूरे नहीं हुए. खैर वक्त के साथ सपने बड़े होते है मेरे बचपन ने मुझे यही सिखाया है. बस इस सपने के बाद एक बड़े सपने को देखने की हिम्मत नहीं हो रही. मेरी मेहनत में भी कमी आ गयी. आज समझा हूं जब सपने टूटते हैं तो सपनों के साथ इंसान भी कितना टूट जाता है. बस खूद को इक्ट्ठा करने की कोशिश में हूं जिस दिन मेरे बिखरे सपने एक होंगे फिर दोगुणी तेजी से मंजिल की ओर निकल पड़ूंगा. नये सपनों के साथ
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