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कभी नींद कहीं गुम थी कभी मन कहीं बेचैन था

     कभी नींद कहीं गुम थी कभी मन कहीं बेचैन था



कभी नींद कहीं गुम थी कभी मन कहीं बेचैन था..
रात इसी में गुजर गयी को जो कुछ पलों के लिए आया आखिर वो कौन
था.
मन भटकता रहा उसकी याद में रात गुजर गयी उन यादों की तलाश में
कभी मेरे कांधे पर उसका सर रखकर बेफिक्री से सोना याद आता रहा
दूर जाकर उसका हंसकर हाथ हिलाना रुलाता रहा बस इसी कश्मकस में
रात मेरी बेचैन थी
कभी नींद कहीं गुम थी कभी मन कहीं बेचैन था.
रात इसी में गुजर गयी कि जो कुछ पलों के लिए आया वो कौन था.
मेरे तकिये भी अब मुझसे उबने लगे, मेरे आसुओं से मेरे सर को ही
भिगोने लगे
घड़ी की टिक टिक भी अब उसकी यादों से जुड़ने लगी मैं लेटा रहा
पर वो मेरे दिल और दिमाग पर चलती रही. फिर भी 
उसके साथ होने का अहसास हमेशा मेरे साथ था
कभी नींद कहीं गुम थी कभी मन कहीं बेचैन था….
रात का एक पहर तो बस उसकी हंसी और यादों के नाम रहा

दूसरा पहर मेरी बर्बादी के नाम रहा. अचानक उसका मुझसे रुठाना
मुझे तड़पता रहा. उसका बगैर कुछ कहे मेरा फोन ना उठाना मुझे और रुलाता रहा. मेरी
हरसुबह जिसके गुडमार्निंग के मैसेज से होती थी, आज उसके मैसेज का मुझे रात भर
इंतजार रहा. पता नहीं क्यूं मेरे आसुंओं को अब भी उस बेवफा पे एतबार था  , कभी नींद कहीं गुम थी कभी मन कहीं बेचैन था  

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