मैं इस नयी पीढ़ी का ही हूं, अबतक तो
यही मानता हूं और उस तरह नहीं मानता जैसे राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी खुद को युवा
मानते हैं. मतलब सिर्फ कहने के लिए नहीं हूं, सच में
हूं. अगर मुझे लगने लगे कि मैं इस नये
जमाने के साथ कदम से कदम मिलाकर नहीं चल पा रहा, तो मुझे
भी उन बुढ़ों की तरह महसूस करना चाहिए जो जबरन खुद को डिजिटल युग का बनाने में लगे
हैं.
खैर, तीन या चार महीने पहले मेरे साथ एक घटना हुई, जिसने
यह सोचने पर मजबूर कर दिया था कि सच में ये नयी पीढ़ी आगे बढ़ रही है, मैं
पीछे रह जा रहा हूं ? हुआ कुछ यूं कि मैं हमेशा की तरह की अपना काम खत्म करके
दोस्तों के इंतजार में चाय की टपरी पर बैठा था. कुछ हिपहॉप टाइप के युवा जो मुझसे
ज्यादा युवा थे, पबजी की बात कर रहे थे. वैसे इस गेम से परिचय तो पहले
से था लेकिन अपनी रुचि नहीं थी. सोचता था, क्या
गेम,वेम में समय बर्बाद करना लेकिन गुरु पबजी निकला खतरनाक गेम, चर्चा
कम होने के बजाय बढ़ती चली गयी.
चाय की टपरी के साथ- साथ डिजिटल क्षेत्र में भी बवाल मचा रखा था इस गेम ने. यूट्यूब पर इस गेम
को यूट्यूबर लाइव खेलकर पैसे बनाने लगे थे.
मुझे याद है “उरी” फिल्म
रिलीज हुई थी. सभी फिल्म स्टार्स कहीं जा
रहे थे और सभी “जय पबजी “ का नारा लगा रहे थे. हर रोज उन युवाओं से मुलाकात होने
लगी थी. हर जगह इस गेम से टकरा रहा था.
मैं मानने लगा था कि अब अपन भी पुरानी पीढ़ी के हो रहे
हैं. अब कोई पबजी की बात करता, तो मैं
उन बुजुर्गों की तरह मुंह मोड़ लेता था जो
इंटरनेट फिनटरनेट की बात पर ज्यादा रुचि
नहीं रखते. समझे में नहीं आता, तो रखें भी कईसे. अक्सर आप जहां से भागने की, बचने
की कोशिश करो, कभी – कभी हर तरफ से घूमकर वहीं पहुंचते हो और अपने साथ
भी यही हो रहा था.
दफ्तर के सामने
चाय की टपरी लगाने वाला 17-18 साल का लड़का समझ गया था कि हम पबजी की बात पर ज्यादा
तवज्जो नहीं देते, कम
समझते हैं. जब जाते तो गोली बम की आवाज शुरु कर देता. इतना चल रहा
था ठीक था पर उपर वाले को हम पर और दबाव बनाना था.
शाम में टूटी हुई हेडलाइट में रुमाल बांधे, फटे
साइलेंसर की आवाज लिये ना जाने किस स्कूल के बच्चे भी स्कूल ड्रेस में ही यहां गेम
खेलने पहुंच जाते. सभी कान में हेडफोन लगाये दायें देखों ,दायें
बे, ऊपर से, ऊपर से, आ रहा है, मारो , मारो, मारो अबे बोले थे मारो हो गया ना चिल्लाने लगते थे.
अब हो रहा था ज्यादा और टूट रहा था हमारे सब्र का बांध.
हम भी चीख के बोले, अबे चिल्लाके काहे खेलते हो यार, तुम
मोबाइल पर खेल रहे हो, तो चिल्लाने से अगला सुन लेगा का. भाई हमरे घर में भी कैसेट वाला वीडियो गेम था, बचपन
में कंट्रा, मारियो खूब खेले हैं. तुमलोग अभी गोली मार रहे, हो
हमलोग टीवी पर उड़ती चिड़िया मार देते थे. मोबाइल पर खेल रहो हो हमरे वाले में
बंदूक अलग से आता था. उससे मजेदार तो नहिये होगा ना. लड़के ने कोई जवाब नहीं दिया
बल्कि हल्का सा मुस्का दिया. उसने इस मुस्कान के साथ जो नहीं कहा वह हम समझ गये
लेकिन फोन पर आंखे गड़ाये उसने जो जवाब दिया आप सुनिये, भैया
इसमें पूरी दुनिया से लोग है, आप किसी के साथ भी टीम बनाकर खेल सकते हैं. साथ में बात भी
कर सकते हैं. दुश्मन कहां है, कैसे खेलना है कहां जाना है बता सकते हैं.
कहां आपका वाला वीडियो गेम और कहां… अरे जाने दीजिए हम
नहीं समझा पायेंगे आप नूब है. अबे ये क्या था. इस घनघोर बेइज्जती के बाद इतनी
हिम्मत नहीं थी कि नूब का मतलब पूछ लेते. चुपचाप अपनी चाय खत्म करने में लग
गये और बीच – बीच में उसकी मोबाइल स्क्रीन पर इस उम्मीद से देखते रहे कि नूब का मतलब
दिखेगा लेकिन नहीं दिखा..
अगर आपको कोई ऐसी बात कह दी जाए, जिसका
आप मतलब ही ना समझे हों, तो तकलीफ बढ़ जाती है. लगता है भगवान जाने का बोल दिया
भाई. आजकल इंटरनेट पर हर सवाल का जवाब है.
हमने गूगल बाबा से पूछा, टाइप किया…Noob pubg. एक वीडियो स्क्रीन पर आया जिसमें नूब के साथ लिखा था pro. वीडियो देखकर समझ आया कि
लड़के ने हमको लेढ़ा प्लेयर बोल था बे…
आग लग गयी हमारे अंदर, कसम से
अइसा भी का है. एक गेम ही तो है, सीख
लेंगे. अभी सीख लेंगे पॉकिट से मोबाइल
निकाले एप्पल स्टोर पर गये ( हां उस वक्त हमारे पास एप्पल फोन था “ एसई“ ).
एप्पल स्टोर पर लिखा आया पबजी हमने बगैर कुछ सोचे डाउनलोड बटन दबा दिया.
पहले तो उसने वार्निंग दी कि आप वाईफाई का इस्तेमाल कीजिए.
पता चला डेढ़ जीबी से ज्यादा की मेमोरी है गेम की. अपने
फोन में उस वक्त तो इतनी स्टोरेज भी नहीं थी. पर सोचा था पहले करना यहीं है जब भी
वक्त मिले. उस वक्त ना तो हमारे फोन में जगह थी, ना काम
की वजह से इतना वक्त था कि बैठकर पबजी खेलते लेकिन नयी पीढ़ी के मुकाबले पीछे रहने
का डर हमेशा था.
ईश्वर हमेशा अच्छे लोगों का साथ देते हैं. हमारा भी
दिया. वक्त बदला, फोन बदला, कोरोना की वजह से लॉकडाउन हो गया तो बाहर निकलना भी कम
हो गया और दुनिया थम गयी. एक हम हैं,
जो नये जमाने के लड़कों के साथ रेस लगा रहे हैं. अब कोई
नूब बोल के दिखा दे हमको..
नीचे ज्ञान है,
पढ़ने का मन हो तो पढ़िये नहीं तो मोबाइल में और हजारों
तरह की चीज है देखिये लेकिन पढ़ेगे तो अच्छा लगेगा, दिल से
लिखा है, आपके लिए लिखा है,
आपको हर वो चीज सीख लेनी चाहिए, जो आपका
बच्चा जानता है या अपनी आदत में डाल रहा है. खासकर तकनीक के स्तर पर. अगर आप नहीं
सीख रहे हैं, तो आप बहुत पीछे रह जायेंगे, समझ
नहीं पायेंगे इसके फायदे क्या हैं ? नुकसान क्या है ? बचपन
में तो उसे कुछ भी खिलाने से पहले आप टेस्ट करते थे. कितना गर्म है, कितना
तीखा है, बच्चे के लिए ठीक है
या नहीं तो अब क्यों नहीं ? जब बच्चा इस डिजिटल युग में नयी चीजें कर रहा तो आप इसे
जनरेशन गैप सोचकर क्यों छोड़ दे रहे हैं आप ?
उपरोक्त ज्ञान तो उन लोगों के लिए था जो खुद को पुराना
मान बैठे हैं. अब थोड़ा उन लोगों के लिए लिख रहे हैं जो हमारे कालखंड के हैं.
सुनिये गुरु, सारा लोड लीजिए नौकरी और पैसे के पीछे भी रहिये लेकिन कभी बच्चा बनकर
भी देख लीजिए, यकीन मानिये ये वक्त लौटकर नहीं आयेगा सब कीजिए लेकिन
थोड़ी सी बेवजह की खुशी के लिए वक्त निकालिये. पबजी मत खेलिये जो अच्छा लगता है
कीजिए लेकिन उस थोड़े से वक्त से कोई बहुत बड़ी उम्मीद मत रखिये बस उम्मीद रखिये
कि उस वक्त में खुशी हो, हंसी हो..
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