अयोध्या राम मंदिर, वाराणसी ज्ञानवापी मस्जिद ( gyanvapi mosque) संभल में हुई हिंसा और इसका बढ़ता दायरा. देश में मंदिर और मस्जिद के बीच फंसी है देश की राजनीति। इस विवाद का कितना असर है, इससे क्या बदलेगा। आप इसका आंकलन खुद कर सकते हैं लेकिन मैं आपकी इतनी मदद कर सकता हूं कि इस विवाद के पीछे की कहानी। इससे जुड़े कानून और मौजूदा स्थिति को आपके सामने रख सकता हूं। ये इसलिए जरूरी है कि जब कहीं भी मंदिर – मस्जिद के बीच बहस चल रही हो तो आप मौजूदा कानून और इतिहास की इतनी समझ रख सकें कि आप उस बहस में पूरे तथ्य के साथ अपना पक्ष रख सकें। एक आंकड़े के अनुसार पूरे देश में 1800 से अधिक स्थान ऐसे हैं जहां मस्जिद के अंदर मंदिर होने की आशंका है। अब सवाल है कि मीडिया रिपोर्ट में आ रही इन आंकड़ों का सच कौन तलाशेगा। क्या यह सिर्फ बहस के लिए कह दिया जाएगा या इसकी पुष्टि होगी। अगर पुष्टि हुई भी कि मस्जिद के अंदर मंदिर के अंश है तो क्या होगा। हम बचपन से सुनते आ रहे हैं अयोध्या तो झांकी है काशी, मथूरा बाकि है। इस नारे के पीछे कितना दम है। इस आर्टिकल में आज इस मुद्दे को समझने की कोशिश करते हैं।
कैसे बना कानून ( Places Of Worship Act)
मंदिर – मस्जिद के विषय में चर्चा करने। इनके मुद्दे को समझने से पहले जरूरी है कि आप पूजा स्थल कानून (Places Of Worship Act, 1991) को पहले ठीक से समझ लीजिए। पूरा मामला यहीं से शुरू होता है और इसी एक्ट में खत्म हो जाता है। एक्ट क्या कहता है इसे समझने से पहले जरूरी है कि आप यह समझिए कि यह एक्ट क्यों बना, इसकी जरूरत क्या पड़ी। अयोध्या में जब राम मंदिर को लेकर आंदोलन अपने चरम पर था तो इसका असर देश के दूसरे मंदिर और धार्मिक स्थलों पर भी पड़ने लगा। अयोध्या के अलावा यह विवाद दूसरे राज्यों तक ना फैले और इसका असर कम हो इसलिए इस एक्ट को तैयार किया गया।
भाजपा ने किया था विरोध
1991 में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार यह कानून लेकर आई। इस संबंध में विधेयक सदन में पेश करते हुए तत्कालीन गृह मंत्री एस.बी. चव्हाण ने “मुझे यकीन है कि इस विधेयक का अधिनियमन सांप्रदायिक सद्भाव और सद्भावना को बहाल करने में मदद करने में एक लंबा रास्ता तय करेगा। कांग्रेस सरकार जब इसे लेकर आई तब संसद में बीजेपी ने इसका विरोध किया था। बीजेपी ने इस मामले को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजने की मांग की थी लेकिन इसके बाद भी ये कानून पास हो गया।
क्या है कानून में
इस एक्ट का विरोध क्यों हुआ और कानून बनाने की जरूरत क्यों पड़ी इसे भी समझना जरुरी है। प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। कानून साफ तौर पर किसी धार्मिक स्थल की पहचान को बदलने के खिलाफ है। इसका सीधा और सरल अर्थ यह है कि अगर किसी मंदिर की जगह मस्जिद बना है तो वह वैसा ही रहेगा। अगर कोई इस कानून का उल्लंघन करता है तो उसे जुर्माना और तीन साल तक की सजा हो सकती है। यह कानून साफ कहता है कि अगर 15 अगस्त 1947 में मौजूद किसी धार्मिक स्थल में बदलाव के विषय में यदि कोई याचिका कोर्ट में पेंडिंग है तो उसे रद्द कर दिया जाए।
कानून की धारा क्या है क्या कहती है
एक्ट की धारा- 3 किसी भी धार्मिक स्थल को दूसरे धर्म के धार्मिक स्थल में में बदलने की अनुमति नहीं है । इतना ही नहीं इसे एक ही धर्म के अलग खंड में भी ना बदला जाए।
एक्ट की धारा- 4 (1) 15 अगस्त 1947 को एक पूजा स्थल का चरित्र जैसा था उसे वैसा ही रहेगा।
एक्ट की धारा 4 (2) में मुकदमों और कानूनी कार्यवाहियों को रोकने का जिक्र है
एक्ट की धारा- 5 रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले और इससे संबंधित किसी भी मुकदमे, अपील या कार्यवाही पर लागू होगा। अयोध्या मामले को इससे अलग रखा गया
कई तरह के दावे
अयोध्या से वाराणसी और यूपी के कई शहर में इसकी चर्चा होने लगी की जहां मंदिर या मस्जिद है वहां पहले क्या बना। मध्य प्रदेश के धार जिले का भोजशाला परिसर भी जुड़ा कि ये कमाल मौलाना मस्जिद है या सरस्वती का मंदिर? यूं ही, उत्तर प्रदेश के संभल की जामा मस्जिद का प्रांगण क्या हरिहर मंदिर हुआ करता था?बदायूं की जामा मस्जिद के नीलकंठ मंदिर होने के दावा, राजस्थान के अजमेर स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह को लेकर महादेव मंदिर होने का दावा
कानून है फिर कैसे शुरू हुआ मंदिर- मस्जिद पर चर्चा
अब सवाल है कि इतना मजबूत कानून है कि फिर कैसे वाराणसी के ज्ञानवासी मस्जिद समेत दूसरी मस्जिदों में मंदिर होने के दावे किए जा रहे हैं। इनकी जांच भी हो रही है। याचिका में कहा गया कि प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट सर्वे करने से मना नहीं करता। इसका ना तो स्वरूप बदला जा रहा है और ना ही इसकी धार्मिक पहचान छिनी जा रही है। याचिका में ज्ञानवासी मस्जिद के सर्वे की अपील की गई। 24 जुलाई 2023 कोर्ट के आदेश के बाद भारतीय पुरातत्व विभाग (ASI) ने सोमवार सुबह ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में अदालती आदेश के मुताबिक अपना सर्वे शुरू कर दिया। अब मस्जिद के अंदर से कई अहम साक्ष्य मिले। इसे लेकर जो बहस शुरू हुई उसने इसे राजनीतिक रंग दे दिया। लड़ाई बढ़ी तो 12 दिसंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया। जब तक सुप्रीम कोर्ट मामले में सुनवाई कर रहा है. तब तक कोई भी अदालत अंतिम आदेश पारित ना करें. साथ ही अब कोई भी कोर्ट यानी निचली अदालतें कोई भी प्रभावी आदेश नहीं देंगी. वे सर्वे को लेकर भी कोई आदेश नहीं देंगी। अयोध्या के अलावा वाराणसी, मथूरा सहित कई जिलों में मस्जिद में मंदिरों की तलाश शुरू हो गई थी। संभल इसका सबसे ताजा उदाहरण रहा। यूपी के संभल में कुछ ऐसा ही विवाद पैदा हुआ था. स्थानीय अदालत ने स्थानीय जमा मस्जिद का सर्वे कराने का आदेश दिया था. प्रशासन की टीन सर्वे करने पहुंची थी. इस दौरान किसी अफवाह की वजह से हिंसा भड़क गई. इसमें चार लोगों की मौत हो गई।
बयानबाजी से समझें राजनीति
BJP नेता अश्विनी उपाध्याय का तर्क है कि ‘द प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991’ कानून का बेस 1947 रखा गया है। अगर इस तरह का कोई बेस बनाया जाता है, तो वो बेस 1192 रखा जाना चाहिए। संभल और ज्ञानवापी मामलों में वकील विष्णु शंकर जैन का पक्ष है कि मुगल हमलावरों द्वारा तोड़े गए सभी मंदिरों को वापस पाने के लिए संवैधानिक लड़ाई होगी। 3 जून 2022 को नागपुर में RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा, इतिहास में हुई गलतियों को भुलाकर हिंदुओं को हर मस्जिद के नीचे शिवलिंग नहीं ढूंढना चाहिए।मोहन भागवत के बयान के बाद यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा-‘पांडवों ने भी केवल 5 गांव मांगे थे, लेकिन दुर्योधन ने अहंकार में जब ये भी देने से मना किया तो पूरा राज गंवाना पड़ा था। ऐसे ही हिंदुओं ने केवल अपने तीन प्रमुख मन्दिरों को तोड़कर बनाई मस्जिदों की जमीन वापस मांगी थी, लेकिन अब हम हमारे सभी मंदिरों को मुक्त करेंगे। अगर आपने यहां तक पढ़ लिया है तो अब आप इस मुद्दे पर अच्छी पकड़ रखते हैं।
आपका पक्ष क्या है
क्या देश के मंदिर या मस्जिदों में इसकी तलाश की जा सकती है कि पहले यहां क्या था। अगर मंदिर में मस्जिद के अंश मिले या मस्जिद में मंदिर के अंश मिले तो दूसरे धर्म के किसी भी व्यक्ति को यह स्वीकार होगा कि वह इतने सालों तक ऐसी जगह प्रार्थना या इबादत करता रहा जहां दूसरे धर्म के अवशेष गड़े हैं। अगर इसी तरह मामला बढ़ता रहा। मंदिर और मस्जिद टूटते रहे तो देश के माहौल पर इसका असर नहीं पड़ेगा। अगर पड़ेगा तो इसका हल क्या है। इस मामले को कैसे सुलझाया जा सकता है।
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