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झारखंड सहित कई राज्यों में भी लागू हुआ सवर्ण आरक्षण, जानिये क्या आया आपके हिस्से में

सर्वणों को मिलने वाले 10 फीसद आरक्षण की शुरुआत हो गयी है.
गुजरात के बाद झारखंड ने भी इससे संबंधित जरूरी दिशा निर्देश दे दिये हैं. कई
राज्य सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के इंतजार में हैं.
 गरीब अनारक्षित वर्ग को मिलने वाले
आरक्षण को लेकर
 “यूथ फॉर
इकि्वलिटी
सुप्रीम कोर्ट पहुंची है. केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने
इस बिल को नौंवी अनुसूची के तहत रखने का प्रस्ताव दिया. इस प्रस्ताव के पीछे कई
वजह है. जब यह बिल पास हुआ, तो कई लोगों ने यह अनुमान लगाया कि इस बिल को सु्प्रीम
कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है और हुआ भी वही. कोर्ट से लेकर मौजूदा राजनीति में
आरक्षण को लेकर बवाल मचा है  लेकिन सवाल यह
है कि इस आरक्षण का लाभ गरीब सवर्णों को कितना मिलेगा.

गरीबों को आरक्षण मिला पर क्या गरीबों तक पहुंचेगा

आरक्षण का लाभ उन्हें मिलेगा जिनकी सालाना आय 8 लाख रुपये से
कम होगी या 5 एकड़ से कम जमीन होगी. अब जरा आकड़ों में समझ लीजिए सरकार के इस
फैसले से गरीबों को कितना लाभ मिलेगा….

केंद्र सरकार द्वारा करायी गयी कृषि जनगणना को आधार मानें, तो
देश में 86 फीसद परिवार हैं, जो भूमि के आधार पर इस आरक्षण का लाभ लेंगे. अब बात
करते हैं सालाना आय की, नेशनल सैंपल सर्वे आफिस (
NSSO) की 2011-12 की
रिपोर्ट के अनुसार 100 फीसद परिवार इस आरक्षण के लिए मान्य है. इस रिपोर्ट के
अनुसार देश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में से अगर प्रति परिवार पांच सदस्यों की
गणना की जाए, तो उनकी मासिक आय 66,666 रुपये से कम है. ग्रामीण इलाकों में मासिक
आय 22,405 और शहरी क्षेत्रों में यह 51,405 है. अगर हम इसे दूसरे आकड़े के आधार पर
देंखें, तो 99 फीसद लोगों को आरक्षण का लाभ मिलेगा.

 

पहले क्या मिल रहा था अब क्या मिल रहा है
यह तो हो गयी बात कि 99 फीसद लोगों को लाभ मिलेगा अब जरा
समझिये आप अगर गरीब  हैं तो आपके खाते में
अब क्या आया और पहले क्या था.10 फीसद मिलने वाले आरक्षण से सवर्ण खुश हैं
लेकिन गरीब सर्वणों को समझना चाहिए कि उनके खाते में क्या आया.
उपरोक्त आकड़ों से साफ है कि लगभग 99 फीसद लोगों को इस आरक्षण का लाभ मिलेगा. अभी
एससी, एसटी और ओबीसी के खाते में 49.5 फीसद सीटें हैं. अब बची लगभग 51 फीसद सीट
जनरल कैटेगिरी में जा रही है. इनमें से कुछ आरक्षित लोगों को भी अनारक्षित सीट और
अमीर लोगों को मिलने वाली नौकरी को भी मिला कर जोड़ें, तो लगभग 20 से 30 फीसद
नौकरियां सामान्य वर्ग को जा रही हैं. अगर सामान्य वर्ग को पहले से 20 फीसद सीटें
मिल रहीं है, तो इस 10 फीसद आरक्षण का आप क्या करेंगे.

आरक्षण और राजनीति
साल 1990 में जब मंडल कमीशन लागू किया गया तब वीपी सिंह की सरकार थी. उन्होंने कहा
था मैंने गोल तो कर लिया लेकिन अपनी टांगे तुड़वा ली. इसे लागू करने के बाद कभी
कांग्रेस को लोकसभा में पूर्ण बहुमत नहीं मिला. ना सिर्फ विश्वनाथ प्रताप सिंह की
सरकार गिरी बल्कि वह खुद राजनीति में काफी पीछे रह गये. साल 2014 लोकसभा चुनाव के
ठीक पहले यूपीए की सरकार ने जाट को ओबीसी में शामिल किया था, अल्पसंख्यकों को 4.5
फीसद आरक्षण का वादा किया था लेकिन इसका राजनीतिक फायदा उन्हें नहीं मिला. उपचुनाव
में मिले परिणाण और पांच राज्यों के चुनावी परिणाम के बाद भाजपा ने सवर्ण आरक्षण
कार्ड खेला है. इसका फायदा या नुकसान कितना होगा यह आने वाला चुनाव ही बातयेगा.

अब जानिये मामला कोर्ट में क्यों गया
इस लाभ हानि के हिसाब से बाहर निकलेंगे तो
माला कोर्ट में भी फंसता देखेंगे.  लोकसभा
में 323 सांसदों ने बिल का समर्थन किया जबकि तीन सांसद विरोध में थे. राज्यसभा में
165 मत पड़े और सात सांसदों ने विरोध किया. जाहिर है कि मामला रानजीतिक है कोई
विरोध करना नहीं चाहता. चुनाव नजदीक है और विरोध करके कौन वोटबैंक की राजनीति पर
आरक्षण का लाभ नहीं लेना चाहेगा.
इसे मामले को कोर्ट में घसीटा है यूथ फॉर इकि्वलिटी ने. इनका
कहना है कि  124 वां संशोधन संविधान की मूल
भावना का उल्लंघन करता है. इस आरोप को कम मत आकियेगा यह गंभीर है. इसे चुनौती देते
हुए इन्होंने, 1992 के इंदिरा साहनी केस का हवाला दिया है जिसमें कोर्ट की उस
टिप्पणी का उल्लेख है जिसमें कहा गया नौ जजों की बेंच ने आरक्षण के लिए आर्थिक
आधार को मानने से इनकार कर दिया था. कोर्ट ने कहा था, आरक्षण के लिए एकमात्र आधार
आर्थिक नहीं हो सकता.

संविधान की मूल भावना के मामले को और अधिक समझना है तो केसवानंद
भारती केस के उदारण से समझ सकते हैं लेकिन इससे पहलेॉ हमें गोलकनाथ केस को समझना
होगा.
1967 में पंजाब में भूमि हदबंदी कानून के तहत अपनी जमीन के
अधिग्रहण को लेकर कोर्ट में चुनौती दी जिसमें कहा गया कि यह उनके मौलिक अधिकारों
का हनन है. कोर्ट ने इस मामले में संज्ञान लेते हुए सवाल उठाया कि क्या मौलिक
अधिकारों में संशोधन किया जा सकता है
?  11 जजों की पीठ ने शंकरी प्रसाद बनाम भारत
संघ मामले में सुनाय गये फैसले की समीक्षा की जो कहता था कि सरकार संविधान के किसी
भी भाग का संशोधन कर सकती है. कोर्ट ने अपने इस पूराने फैसलो को पलट दिया और कहा
संसद को मौलिक अधिकारों में संशोधन का अधिकार नहीं है.
इस फैसले ने राजनीतिक मोड़ लिया कई बदलाव हुए 1971 में
मध्यावधि चुनाव कराये गये. जीत के बाद, इंदिरा गांधी ने संविधान संशोधन विधेयक 24,
25 और 26 वां पेश किया. 24 वां गोलकनाथ मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसलो को लेकर
था, जबकि बाकि के दो बैंकों को राष्ट्रीयकरण और प्रीवीपर्स के मामले में थे.
अब बारी है केशवानंद भारती के केस को समझने की केशवानंद भारती
बनाम केरल राज्य नाम से प्रसिद्ध यह केस आज भी कई जगहों पर उदाहण के रूप में शामिल
होता है. चुकि यह केस संविधान संशोधन की व्याख्या से जुड़ा था इसलिए 13 जजों की
बेंच ने इसकी सुनवाई की. 7 जज इस फैसले के पक्ष में थे और 6 विरोध में कोर्ट ने
फैसला सुनाया कि संसद के पास संविधान को संशोधन करने की शक्ति है बर्शते इसकी मूल
भावना को छेड़ा ना जाए.
इन मामलों का उदाहण इसलिए जरूरी था क्योंकि 10 फीसद सवर्ण आरक्षण के मामले में सुप्रीम
कोर्ट से यही गुहार लगायी गयी है कि यह
विधेयक संविधान की मूल भावना का उल्लंघन करता है.
मेरी बात
तीन लाख पचास हजार से ज्यादा की कमाई पर आपको टैक्स भरना पड़ता
है लेकिन 8 लाख से कम कमाते हैं तो आप गरीब है. मतलब ये कि सरकार गरीबों से भी
टैक्स ले रही है. हमारे देश में टैक्स की अधिकतम सीमा 30 फीसद है जबकि देश में
सिर्फ 2 से 3 फीसद लोग ही टैक्स भरते हैं. सरकार को 8 लाख के बजाय आरक्षण की तय
सीमा कम रखनी चाहिए थी ताकि गरीबों को इसका सीधा लाभ मिलता.   

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