झारखंड स्थापना दिवस पर पत्रकार पिटे गये. कई लोगों को बंदूक के कुंदे, से डंडे से मारा गया. उनके हाथों में कैमरा था, आईडी( माइक) थी, जानते हुए कि पत्रकार है, पुलिस वालों ने पिट दिया… क्यों ?. कई पत्रकारों को फुटेज और तस्वीरें हटाने के लिए कहा गया.. क्यों ?. क्या यह सब सिर्फ छवि बिगड़ने के डर से… क्या यही है न्यू झारखंड. साहेब जरा सोचिये स्थापना दिवस पर पूरे देश में झारखंड की जो छवि जायेगी कैसी होगी ? .खैर आपको तो भरोसा है पिटाई खाकर भी पत्रकार कुछ नहीं कर पायेंगे…
न्यू झारखंड का दम भरने वाली सरकार यह भूल गयी है कि झारखंड इसी विरोध के साथ लाठियां खाकर बना है. झारखंड बदला है. बिल्कुल सही, झारखंड बदला है लेकिन यह बदलाव सिर्फ घोषणाओं के आधार पर नहीं है साहेब बल्कि चरित्र के आधार पर है. झारखंड कभी भी विरोधों से नहीं डरा, उस वक्त भी नहीं जब इसके गठन की मांग हो रही थी तो कोई कह गया कि झारखंड मेरी लाश पर बनेगा. उसी व्यक्ति को झारखंड में सजा हुई और आज राज्य के प्रतिष्ठित अस्पताल में ईलाज करा रहा है.. देश, राज्य कभी नहीं बदलता साहब, वक्त बदलता है, ध्यान रखियेगा समय अपने अनुसार इंसाफ करता है. “समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध/ जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध”. आप (सरकार) विरोध , कमियां नहीं सुन सकते. पारा शिक्षक और रसोइयों को रास्ते में रोका गया लेकिन कुछ शिक्षक यहां तक पहुंच गये. विरोध हुआ, तो पुलिस ने लाठी के दम पर आवाज दबानी चाही. हंगामा हुआ पत्थरबाजी शुरू हुई.
पत्रकारों के कैमरे पारा शिक्षकों की आवाज की तरफ तन गये. पुलिसवालों ने, ना सिर्फ शिक्षकों को पीटा बल्कि पत्रकारों को भी नहीं छोड़ा, ताजा टीवी के वरिष्ठ पत्रकार कमलेश कुमार मिश्रा को पुलिस वाले ने पीटा, कपड़े फाड़ दिये. प्रभात खबर के वरिष्ठ पत्रकार राजेश तिवारी के हाथों पर बंदूल के कूंदे से वार हुआ कई पत्रकारों को चोट आयी. प्रशासन की तरफ से बयान आया कि भीड़ में कभी – कभी ऐसा होता है लेकिन भीड़ में क्या पुलिस पत्रकारों को नहीं पहचान पायी जिनके हाथ में कैमरा था, उन्हें नहीं पहचान पायी जिनके हाथ में आईडी ( माइक) था.
कार्यक्रम सरकारी था, सरकार के कई मंत्री मौजूद नहीं थे. सहयोगी पार्टी का कोई नेता नहीं था. विरोधी पार्टियों की, तो उम्मीद बेकार है. क्या यह सवाल नहीं है ?. झारखंड 18 साल का हो गया क्या सिर्फ आपकी ( मौजूदा सरकार) बदौलत ?,क्या यह कार्यक्रम किसी खास पार्टी का था ? नहीं… आपको सरकार के अंदर का विरोध नजर नहीं आता, बाहर के विरोध को क्या देख पायेंगे आप ?
सुन लीजिए हुआ क्या था, कैसे पुलिस कर रही थी पिटाई
दुखद है कि पत्रकार इस तरह पीटे गये लेकिन इस दुख का क्या ? , पत्रकार क्या कर सकते हैं ?. माफ करिये लेकिन मैं भी आपकी बिरादरी का छोटा सा हिस्सा हूं , हम पत्रकार है लाखों करोड़ों जनता की आवाज हैं, आपकी आवाज का क्या ? हम में से ही कुछ लोग ही हमें कमजोर करते हैं. ये वही हैं जो सरकारी कार्यक्रम में मिठाई के डब्बे के लिए एक दूसरे पर चढ़कर मिठाई लेते हैं.
सरकारी कार्यक्रम में खाने की लंबी कतारों में प्लेट लेकर घंटो खड़े रहते हैं. सरकार जब बजट पेश करती है, तो बैग के लिए आपस में लड़ जाते हैं. विधायक, नेता के पीछे भैया, भैया बोलकर दौड़ते हैं, हाथ जोड़े खड़े रहते हैं खड़े रहिये, आपस में लड़िये, गिफ्ट के लिए दौड़िये. फिर लिख कहां से पायेंगे ? आज हमारे ही कुछ साथी घायल हैं, जरा सोचियेगा हमें कौन कमजोर करता है, कौन हमें सस्ते में बेच देता है ?
याद है कुछ दिनों पहले एक मंत्री ने कहा था कि आप मोदी के पीए बन जाइये. वह आपको रख लेंगे. ऐसा क्या कह दिया क्योंकि हम में से कुछ लोग हैं, जो उनके पास नौकरी की सिफारिश लेकर जाते हैं, हम में से कुछ लोग हैं, जो खुद को नेताओं के पास गिरवी रख आते हैं. अब ऐसे लोग कमजोर ही करते हैं. देखना होगा अब हम पर बंदूक के कुंदे से हमले के बाद, अपने कपड़े फटने के बाद क्या कर लेते हैं …
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