News & Views

Life Journey And journalism

भाई की शादी

शादी की पार्टी चल रही है. भोजन से पहले लोग अपना नाम लिखवा
रहे हैं कर कुछ पैसे दे रहे हैं. इसके बाद खाने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे
हैं. गांव में खाना तैयार होने के बाद घर जाकर सबको बुलाना पड़ रहा है मेरे साथ
बाइक में पीछे बइठा ममेरा भाई घर
घर आवाज दे रहा है  बीजे हइ हो…. तब जाकर लोग निकल रहे हैं. कुछ
ऐसे भी लोग इस पार्टी में हैं जो अनचाहे मेहमान लग रहे हैं. भीड़ से किनारे अपनी
बारी का इंतजार कर रहे हैं . मुझे लग रहा है शायद इनकी जेब में पैसे भी नहीं है
तभी तो यह लोग अपना नाम भी नहीं लिखवा रहे. धीरे
धीरे अनचाहे
मेहमानों की संख्या बढ़ रही है. इस खेमे में बच्चे पुड़ी मिठाई की तरफ लालच भरी
नजरों से देख रहे हैं लेकिन उनकी तरफ कोई देख भी नहीं रहा. अचानक एक बच्चा अपने
पिता के साथ उस भीड़ में शामिल होने की कोशिश करता है जहां लोग खाने का इंतजार
करते है. किसी की नजर उस पर पड़ती है और जोर- जोर से चिल्लाने की आवाज आती है अरे
डोमवन घुस रहा है देखो… इतने में एक युवा लड़का जिसकी उम्र लगभग 21 या 22 साल की
होगी उन्हें दुत्कारते हुए किनारे कर देता है. स्मार्टफोन में व्यस्त एक आदमी ने
कहा, आपलोग गजब कर रहे हैं अइसा लग रहा है जइसे ई आदमी नहीं कोउनो जानवर है. अरे
भाई दिल्ली मुंबई में इ सब कहां चलता है अब कुआं का मेढ़के रह जाइये गा…. उनके
बीच में आने सें हंगामा कम तो हुआ पर उस बच्चे की नजर हंगामे पर कम खाने पर ज्यादा
अभी भी टिकी है. बच्चे की पिता ने भी कहा, अखनी हम अछुत हो गईनी भोरे में बड़ बड़
आदमी  संघ हम घुमैनी..
गांव में ऐसे नजारे अक्सर देखने का मिलते हैं.. हैरानी होती है
कि यह सब अबतक चल रहा है.. मैं जब उस ओर उनकी मदद के लिए बढ़ रहा हूं तो  मुझे भी मेरे ममेरे भाई ने हिदायत दी कि देखिये
भइया छुआईयेगा मत समझे.. आप छुआ जाइयेगा तो कोई आपसे नहीं छुआयेगा. आप चाहते हैं
कि अखनी पूरा गांव वाला उठ के चल जाए और कोई नहीं खाये तो जाइये… मुझे वो वक्त
याद आ रहा है जब बचपन में किसी के  पांव
गंदगी में पड़ जाते थे, तो हम उससे दूर रहते थे लाल रंग छु लेते, तो उसके छुने का
कोई असर नहीं होता था .पर यहां तो बचपन के वो लाल रंग का भी नियम नहीं था जिसके दम
पर उस व्यक्ति से छुए जाने का भी असर ना हो. खैर धीरे
धीरे जब गांव
वालों ने खा लिया ,तो ध्यान उनकी तरफ गया. सभी किनारे  आग जलाकर बैठे थे. 
अब उनके खाने की बारी थी. घर
से सभी बड़े बड़े बर्तन लेकर पहुंचे थे. खाना जमकर खाया भी और घर के लिए भी ले
गये. उस बच्चे को मैं पहले ही झगड़े के बाद चुपके से  पुड़ियां दे चुका था जिसकी नजर खाने पर  भी 
उसने कहा चार गो पुड़ी से का होइ आउर लावा… अब वह पांत में खाने बैठा था
मैंने पूछा कितनी पुड़ी दूं.. उसने कहा, कठौतियां ( बड़ा बर्तन) भर द. मैंने कहा,
तुम जितना खा सकते हो पहले खालो फिर बर्तन में मिल जायेगा. मैंने उसे सात पुड़ियां
और दी . इसके अलावा सभी लोग बर्तन भर के खाना घर ले गये.
बिहार में जात पात नहीं है अगर यह कोई कह दे तो समझ जाइये कि
भइया ने बिहार देखा नहीं है.. बारात जाने के लिए जिस बस के ड्राइवर को आना था वह
घर तक आने के लिए तैयार नहीं था. मेरे ममरे छोटे भाई को जिम्मेदारी मिली की जाकर
बस ले आओ मैं भी उसके साथ गया था, उसने ड्राइवर से कहा, ए हो गड़िया घर पर ले
चला.. ड्राइवर ने अपशब्द का इस्तेमाल करते हुए कहा, हम गइनी ह आवे में गां…. फट
गइल अब हम दोबारा न जाइबे. मैंने उससे कहा कहते समय ध्यान तो रखिये की क्या कह रहे
हैं किससे कह रहे हैं सामने वाला आपसे छोटा है या बड़ा. अरे  नहीं जाना है तो सीधे मना कीजिए लटपट बोल देते
हैं. मेरे भाई ने पहले ड्राइवर से अनुरोध किया था अब वह उसे आदेश देने के लहजे में
आकर कह रहा  था चलब कि ना. तो ड्राइवर ने
सीधे मना कर दिया. खलासी ने कहा, ए भाईजी गाड़ी लावे में बहुते दिक्कत होइले हई
जैसे ही उनसे यह बात कही तो ममेरे भाई ने कहा, तु पंड़ित हउए उसने कहा हां हो और
ड्राइवर तो खलासी ने कहा, यादव जी तबे अइसे चढ़ल हउए…खैर अंतत
:
गाड़ी दरवाजे से थोड़ी दूर तक पहुंची.
सभी लोग तैयार होकर बस पर चढ़े बारात मुंगेर के लिए रवाना
हुई.. रवानगी से पहले मिठाई खिलायी गयी भगवान का नाम लिया और बस चली… लंबा सफर
था वैशाली से लगभग 250 किमी की दूरी थी. मुंगेर को लेकर तरह तरह की बातें शुरु हुई
कि यहां  बंदुके सस्ती मिलती है. कैसे
पुलिस से छुपकर यह कारोबार अभी भी चल रहा है. बंदुक कार्बन में छुपाकर लाओगे तो
पुलिस भी स्कैन नहीं कर पायेगी.. वैगरह वैगरह. मैंने खिड़की से बाहर झांका तो गौर
किया कि  इस रास्ते में तंबाकु की खूब खेती
होती है. बड़े बड़े इलाके में तंबाकु की खेती हो रही है कहीं पर सड़क के किनारे
तंबाकु सुख रहे हैं, तो कहीं कटाई करके इसे बोरे में भरकर बेचने की तैयारी हो रही
है. इस बीच हंगामा हुआ कि हम जिस रास्ते से जा रहे थे वो आगे बंद है. पुल में बड़ी
गाड़ियों को आगे नहीं जाने दिया जा रहा. कई रास्ते बदले गये. रूट बदला गया. हम
लगभग दोपहल 12.30 में वैशाली से निकले थे अब बेगुसराय, भागलपुर होकर पता नहीं किस
रूट से जा रहे अब सब परेशान होने लगे थे. दुल्ले की गाड़ी शाम के 6 बजे ही मुंगेर
पहुंच गयी और हम 12 बजे रात तक घुम रहे थे रूट तलाश रहे थे. जीपीएस की भी मदद ली
गयी पर ड्राइवर तो जैसे उस झगड़े का बदला निकालने में लगा था. सुबह के 3 बजे
सुल्लातगंज रूट से कहीं बीच में हमें उतारा गया. छह या सात छोटी गाड़ियों में
बैठाकर लगभग 3 बजे सुबह हम मुंगेर पहुंचे. 3 बजे सुबह के बाद बारात लगी.. जयमाला
हुआ फिर शादी हुई.
एक पत्रकार के लिए
छुट्टी की अहमियत उतनी ही होती है जितना रेगिस्तान में फंसे किसी व्यक्ति के लिए
एक बोतल पानी, मुझे जो वक्त मिला उसका इस्तेमाल मैंने घुमकड़ई में की हाजीपुर गया
दोस्त के साथ उसे जमीन खरीदनी थी. 27 लाख रुपये कट्टा में उसने दस धुर जमीन देखकर
सब तय कर लिया. दूसरे दिन मैं भाइयों के साथ वैशाली गया और उसी दिन घर वापसी हुई.
कुल मिलाकर इस शादी का अनुभव गजब का था. मैं अभी भी अपने आप को गांव का ही समझता
हूं पर आप शहर में रहकर एक रूटीन के आदी हो जाते हैं. सुबह कितने बजे उठना है,
नास्ता करना है. आपकी ऑफिस का वक्त वापस आने का वक्त सब तय होता है. ऐसे में जब आप
इस तरह शादी में शामिल होते हैं, तो थोड़ी परेशानी होती है जब आपके सोने की जगह तय
नहीं, खाने का वक्त तय नहीं. इस शादी में पुवाल बिछाकर सोने का अलग आनंद मिला. एक
बार सोने की जगह की कमी के कारण रात के लगभग 3 बजे तक आग के सामने बैठा रहा फिर
किसी का ध्यान मुझ पर गया, तो मेरे सोने की व्यवस्था हुई. अगर आप कुआंरे है, तो
यहां आपका भी मोलभाव शुरू हो जाता है. शादी में आये लोग जो अपनी बेटी , बेटा के
लिए रिश्ते ढुढ़ रहे हैं कड़ी नजर रखते हैं जैसे सोनपुर मेले में जानवरों की खरीद
बिक्री के लिए फेमस है उसी तरह इस तरह इस तरह की शादी दुल्ला- दुल्लहन ढुढ़ने का
अच्छा बाजार है. मेरे छह दिनों की छुट्टी गयी पर इस अनुभव से जो सिखने को मिला वो
अनमोल है, नये लोगों से मिला, नये रिश्ते बने. कुछ लोगों ने हद से ज्यादा बिना वजह
ध्यान रखा तो कुछ लोग वजह होने के बाद भी कन्नी काट गये.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *