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गांव की होली बुलाती है मगर…

आपको भी याद आती है ना गांव की, गांव की होली की.
मलाल है ना अपने गांव जैसी होली शहर में नहीं होती. शहर में गांव की होली ढुढ़ेंगे,
तो कहां मिलेगी
?.  वो तो आज भी गांव की पगडंडियों में हर साल आपका
इंतजार करती है. 


शहर ही है, जिसने आपको जकड़ रखा है. यहां की नौकरी, यहां की जरूरत
की जंजीरों ने इतना कसकर पकड़ा है कि गांव की होली को सिर्फ आपके यादों तक आने की
इजाजत है, आपको गांव की उन पगड़ंडियों तक जाने की इजातत नहीं. जैसे शहर कहता हो
गांव की होली बुलाती है मगर जाने का नई….

बचपन में हमेशा चिंता रहती है, बड़े कब होंगे.
बाइक कब चलाने को मिलेगी. कब आजादी से घूम पायेंगे और कोई पूछेगा नहीं कि कहां जा
रहे हो, कब आओगे
? . जब बड़े होते हैं तो बाइक
मिल जाती है, थोड़ी आजादी भी
. बचपन दूर नहीं जाता  पर अफसोस होता है कि काश कभी बड़े ही ना होते.
बचपन हर वक्त याद आता है. आज भी सोशल साइट पर जब बचपन की टॉफियां, चॉकलेट, खिलौने
देखते हैं और जिनके चेहरे पर हल्की से मुस्कान आ जाती है वह जीवन भर अपना बचपन
नहीं भूल पायेंगे.

होली एक ऐसा मौका है जब बच्चों को खेलता देखकर
वही मुस्कान लौट आती है और इस मुस्कान के साथ लौटती है होली की यादें. रात से ही
ऐसे कपड़े की तलाश करना जिसे पहनकर होली खेलनी है. रात से ही रंग बार- बार देखकर
यह सोचना की इतने से रंग में होली कैसे खेलूंगा.
याद आता है कि कैसे होली में अपना इलाका हो जाता
था. एक ऐसा इलाका जहां कोई आ जाए तो उसका रंगीन होकर जाना तय है. हम भी दूसरों के
इलाके में जाने से डरते थे लेकिन माहौल पूरा होता था. कभी चुपके से दूसरों के
इलाके में घूसने की कोशिश फिर उन्हें अपने इलाके में आने की चुनौती देना.

याद आता है ना बचपन, मेरे कई दोस्त जो बचपन के
थे अब भी साथ हैं. पहले बगैर प्लान किये सब मस्तीभरा होता था और अब पूरी प्लानिंग
के बाद भी वो मस्ती नहीं लौटती. साथ होते हैं तो एक- एक कर सबके फोन की घंटी बजती
रहती है. किसी के घर से फोन तो किसी के दफ्तर से.
अब तो होली के नाम पर
गाल के दोनों तरफ अबीर का रंग रह गया. मिठाई के नाम पर गुलाब जामून और कपड़े के
नाम पर सफेद कुर्ता और खुशी के नाम पर सोशल मीडिया पर इन सबके साथ चमचमाती एक
तस्वीर जिसमें हैश टैग के साथ लिखा होता है हेप्पी होली, परिवार, त्योहार यही तो
है शहर की होली.

गांव जहां आज भी टोली
निकलती है, ढोल नगाड़ों के साथ जहां अबीर के रंग नहीं पक्के रंग होते हैं. मिठाई
के नाम पर कहीं मालपुआ तो कहीं पुआ. कपड़े का तो पूछिये मत टी शर्ट कब सिर्फ
बनियान में बनियान कब फटकर वेस्टर्न फैशन शो में ईनाम जितने वाले रुप में हो जाता
है पता नहीं चलता. गांव में तस्वीर की छोड़िये घर वाले पहचान नहीं पाते कि अपना
लौंड़ा है कि कोई और आ गया है.
गांव की होली की यादों
के बीच आप सभी को होली की शुभकामनाएं

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