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खद्दे एड़पा : ऐसा घर जहां पहलते हैं गरीबों के बच्चे

खद्दे एड़पा… उरांव भाषा का शब्द। इस शब्द ने आदिवासी समुदाय के कई महिलाओं की जिंदगी बदली है।  इसी शब्द ने महिलाओं कीजिंदगी में बड़ा बदलाव ला दिया है. लंदन में पढ़े. पढ़ाई खत्म करने के बाद झारखंड की मिट्टी में वापस लौटे हलधर महतो पहनावे से बिल्कुल साधारण लेकिन जब बात महिलाओं के विकास और बच्चों के पोषण की हो तो उनका अनुभव और उनकी पढ़ाई जमीनी स्तर पर नजर आती है।  हलधर की यह पहली लड़ाई नहीं है वह झारखंड आंदोलन का हिस्सा रहे हैं.

11 अप्रैल 2014  झारखंड, बिहार, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ में महिलाओं और बच्चों के लिए काम कर रहे हैं. पब्लिक हेल्थ रिसोर्स नेटवर्क, सिनी, एकजुट ,आइडिया और चौपाल जैसी संस्थाओं के साथ काम कर रहे हैं।

हलधर महतो

खद्दे का मतलब बच्चे और एड़पा का मतलब घर, यानि बच्चों का घर. मिट्टी का एक छोटा सा घर, घरे के बाहरी दिवार पर टिन के एक बोर्ड पर लिखा खद्दे एड़पा, बाहरी दिवारपर शानदार पेटिंग, अंदर घूसते ही बच्चों का हेल्थ चार्ट, किचन में गैस से नहींलड़की से बच्चों के लिए खाना बनाती कई मांए. साड़ी के बनें झूले में थोड़ी दूर हीसोता लगभग 6 महीने का बच्चा, बच्चों को गोद में लेकर आंगन में घूमती मांए. यहअद्भूत नजारा देखने को मिला रांची से लगभग 17 किमी दूर दलादली चौक से आगे छोटा सेगांव हेथा में. यह दूसरे गांवों की तरह है लेकिन यहां शहर की आहट महसूस होती है, गांव की जमीन बिकने लगी हैं, दूर दूर तक लाल इटों से बनी बांउड्री बताती है कि हम शहरीहोने वाले हैं लेकिन गांव में एक छोटा सा घर इन आहटों से महरूम है. सुनीता देवी केसाथ- साथ तीन और माएं इन बच्चों को संभालती है. सुनीता एक बच्चे को गोद में लेकरपास बैठते हुए बतातीं है, लगता ही नहीं कि यह हमारे बच्चे नहीं है. दिन भर इनके साथ रहना, इनकी जिद पूरी करना, खाना खिलाना. बिल्कुल हमारे बच्चों की तरह. कभी कोई भेदभाव महसूस ही नहीं हुआ. कई बार बच्चे गोद लेने की जिद करते हैं ठीक वैसे हीजैसे हमारे बच्चे करते हैं.  महिलाओं के आर्थिक विकास में मदद करती हलधर की पहल

अक्सर हमने सुना है कि हर सफल पुरुष के पीछे किसी महिला का हाथ होता है. बात बराबरी की होती है, तो हम इसे पलट कर भी कह सकते हैं कि हर सफल महिला के पीछे पुरुष का हाथ होता है. हलधर महतों की इस सोच के पीछे कोई एक सफल महिला नहीं है. पूरा गांव है और चार राज्यों चल रहा 1046 क्रेस औ इन सभी जगहों पर महिलाओं की सामाजिक और परिवार की आर्थिक मजबूती के पीछे कोई खड़ा है तो वो हलधर महतो हैं.  

क्या है भविष्य की रणनीति

हरधर महतो लगभग 20 सालों से सामाजिक कार्यो  में जुटे हैं. एक बड़े से कमरे में राऊंड टेबल पर बैठे लोग रणनीति बना रहे थे. मैं कोशिश कर रहा था कि इनकी रणनीति समझ सकूं. बात हो रही थी मिलकर काम करने की. महिलाओं और बच्चों के विकास के लिए सब अपने तरीके बता रहे थे. हालांकि बैठक में किसी खास रणनीति पर सहमति नहीं हुई लेकिन दोबारा मिलने का वादा करके सभी अपने- अपने खेमे में लौट गये. बैठक के बाद मुझे मौका मिला हलधर महतो से बात करने का. बातचीत की शुरूआत भले ही मैंने की हो लेकिन सवालों के जवाब में उन्होंने एक सवाल किया. क्या आपको बदलाव नजर आया ?.


पीठ पर बच्चा और मजदूरी

मैं दो क्रेस में बच्चों से मिलकर आया था मैं बदलाव की इस हवा को महसूस कर सकता था. मैं कुछ जवाब दे पाता इससे पहले ही उन्होंने कहा, हमारी कोशिश है कि महिलाएं अपनी पीठ पर बच्चे को बांधकर किसी कंट्रक्शन कंपनी के लिए काम ना करें, हमारी कोशिश है कि महिलाओं को उनकी पूरी मेहनताना मिले, बच्चे साथ देखकर उन्हें काम से ना रोका जाए. भले ही पैसे कमाने केलिए गांव के लोग शहरों का रुख करते हैं लेकिन हमारी कोशिश है कि शहर में काम करनेके बाद जब वह वापस लौटे, तो बच्चों के मुस्कुराते चेहरे देखकर उनकी थकान दूर होजाए. हमने काम शुरू कर दिया है हम चाहते हैं कि और लोग हमारे साथ जुड़े ताकि इसका दायरा बढ़ाया जा सके. हलधर बताते हैं, झारखंड में लगभग 90 क्रेस चल रहे हैं.  हर जगहगांव के लोग यहां काम करने वाली महिलाएं, क्रेस के स्थान का चयन करते हैं. सबकुछउन्हें करना है हम बस हाथ बढ़ाते हैं ताकि वह पीछे ना रह जाएं.  विकास की धारा को उल्टा मोड़ने की कोशिश 

नेताओं के वादों में कहां खड़े हैं गांव और मजदूर

किसी भी राज्य में नेताओं के चुनावी वादे सुन लीजिए, सब शहर की बात करेंगे, शहर में नया अस्पताल, नये स्कूल, नया रेलवे स्टेशन, और अब फैशन में एकनयी चीज है आयी है.. मेट्रो या बुलेट ट्रेन. हमारा गांव बस अपने मैदान में नेताओंका हेलीकॉप्टर उतरता देखकर खुश है. विकास की धारा पलटने की कोशिश हो रही है. यह बहुत धीरे- धीरे हो रहा है. सुबह उठकर अंग्रेजी अखबार पढ़ने वालों को और कम दिखेगा. हलधर महतो गांव के विकास की इसी पुरानी हो चुकी सूत्र को बदल देना चाहतेहैं. हलधर कहते हैं गांव के आर्थिक विकास से ही देश के आर्थिक विकास का अंदाजालगाया जाना चाहिए. गांव में बच्चों की देखरेख नहीं हो पाती. माता- पिता अगर काम करते हैं, तो बच्चे अकेले पड़ जाते हैं. अगर कोई बच्चा स्कूल जाने के लायक हो गयाहै, तो अपने भाई बहनों की देखरेख के लिए घर में ही रह जाता है. क्रेस में काम करनेवाली अनीता बताती हैं कि कई ऐसे बच्चे अब हमारे पास हैं जिनकी वजह से उनके बड़ेभाई या बहन स्कूल नहीं जा पाते थे. बच्चे इतने छोटे थे कि हमेशा किसी न किसी कोउनके साथ रहना जरूरी था. अब बच्चे हमारे पास रहते हैं , मां- बाप काम करने जातेहैं और इनके भाई – बहन स्कूल.

सिर्फ आर्थिक आजादी नहीं पीढ़िया सुधारने की कोशिश

गांव के विकास के लिए हलधर दायरा बढ़ाते जा रहे हैं. उनकी लड़ाई सिर्फ महिलाओं को समाजिक और आर्थिक रूप से मजबूत करने की नहीं है. बल्कि उन्होंने कई मुद्दों को समेट कर एक बड़ा लक्ष्य बना लिया है. हलधर बताते हैं कि कई बार स्कूलों में हम वैसे बच्चों को देखते हैं, जो आसानी से किसी चीज को समझ नहीं पाते,गांवों में भी कई ऐसे बच्चे हैं, जो एक बार में आपकी बात नहीं समझेंगे, उन्हें दोतीन बार एक ही चीज समझानी पड़ेगी. हलधर इसके पीछे छुपा विज्ञान समझाते हुए कहतेहैं, बचपन में 3 साल से पहले ही बच्चों का दिमाग विकसित हो जाता है. इस वक्तउन्हें सबसे ज्यादा देखरेख और उचित भोजन की आवश्यकता होती है. मां- बाप रोज कमानेखाने के चक्कर में बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाते . इन लापरवारी का असर सीधे उनके दिमाग पर पड़ता. उनके सोचने – समझने की शक्ति कम हो जाती है. हमारी कोशिश इस नयी पीढ़ी को सुधारने की है. हम जब बच्चों को क्रेस में रखते हैं तो उनकीप्रोटिन, ग्रोथ, पर पूरा ध्यान देते हैं. बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास कोसमझने के लिए कई एक्टिविटी और टेस्ट किये जाते हैं. जिन बच्चों में कमियां होती हैउनका विशेष ध्यान रखा जाता है. हलधर इस बाते से खुशी जताते हैं कि उनके इस काम कीवजह से कई बच्चों का सेहत सुधर रहा है. उन्हें उचित देखभाल मिल रही है. 

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