अडाणी गोंदुलपारा की जिस जमीन से कोल निकालने की तैयारी में है उस जमीन की लड़ाई नयी नहीं है। ब्रिटिश भूवैज्ञानिकों 1869-70 में अपने खनिज संसाधनों के लिए इस जगह की पहचान की थी। तब से लेकर अब तक इस जगह को लेकर लड़ाई जारी है।
गांव मे जगह- जगह लिखे नारे |
400 दिन से ज्यादा धरने पर गांव वाले
यह लंबी लड़ाई है और ग्रामीण 400 दिनों से अधिक धऱना पर बैठे हैं। गांव में प्रवेश करते ही एक तीन मुहाने पर ग्रामीण टेंट लगाकार बैठते हैं। हर रोज यहां गांव के हर परिवार से किसी एक व्यक्ति की मौजूदगी जरूरी है। यहां हाजरी बनती है। गांव का बच्चा- बच्चा जानता है कि आखिर यहां चल क्या रहा है। कई पीढ़ियों से चली आ रही इस लड़ाई को पुरानों ने यहां रहने वालों को विरासत में सौंपी है। यहां बैठकर लगता है कि एक और नयी पी़ढ़ी तैयार हो रही है। इस पूरी कहानी को समझने से पहले जरूरी है कि आप थोड़ा बैकग्राउंड समझ लें अब तक हुआ क्या है।
बैकग्राउंड समझिये
केंद्र सरकार ने राज्य में 41 कोयला ब्लॉकों की नीलामी की। इस निलामी में अडानी समूह ने नवंबर 2020 में गोंदलपुरा कोयला ब्लॉक का नियंत्रण लिया। गोंदुलपारा कोयला खदान में 17.633 करोड़ टन का जियोलॉजिकल रिजर्व मौजूद है। यह खदान हर साल 520.92 करोड़ रुपए का रेवेन्यू होगा। सरकार को हर साल इस खदान से 108.09 करोड़ रुपए। परियोजना में 513.18 हेक्टेयर भूमि का खनन प्रस्तावित है, जिसमें से 200 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि है. यह क्षेत्र मांझी आदिवासी समूह और घांजू, घुइयां व तुरी जैसे समुदायों का घर है जो अनुसूचित जाति में शामिल हैं। अडाणी समूह ने नवंबर 2020 में वाणिज्यिक कोयला नीलामी के दौरान 20.75% की अंतिम राजस्व-साझाकरण पेशकश करके गोंडलपुरा कोयला ब्लॉक जीता था। 176 मिलियन टन कोयले के भूवैज्ञानिक भंडार के साथ, ब्लॉक में 513.18 हेक्टेयर भूमि लेने का प्रस्ताव है।
गांव के अंदर भी लिखा है.. |
कंपनी क्या करेगी
पांच गांव विस्थापित होंगे गोंदलपुरा, गाली, बालोदर, आहे और कुलान 510 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहित की जाएगी. 220 हेक्टेयर फॉरेस्ट लैंड और 270 हेक्टेयर रैयतों की जमीन है. इसके अलावा 70 हेक्टेयर जीएम लैंड भी शामिल है।
कंपनी कैसे करेगी
तीन तरह से विस्थापित लोगों को मुआवजा देने की तैयारी है। जिससे घर छिना सॉरी लिया जायेगा। वह एक से पांच डिसमिल के बीच का है, तो पांच डिसमिल का लाभ दिया जाएगा। जमीन छह से 10 डिसमिल के बीच की है, उन्हें 10 डिसमिल जमीन का मुआवजा मिलेगा। जो व्यक्ति घर के बदले पैसे लेना चाहेगा, उसे 10 लाख रुपए। एक लाख रुपए ट्रांसपोर्टेशन के लिए। जो व्यक्ति अडाणी की ओर से बनाये गये कॉलोनी में रहेगा, उसे निर्मित घर और एक लाख रुपए शिफ्टिंग के। एक एकड़ जमीन के एवज में 24 लाख रुपए।
अभी कंपनी क्या कर रही है
कंपनी का दावा है कि बड़कागांव प्रखंड के विभिन्न गांव में शिक्षा, स्वास्थ्य, आधारभूत और मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए काम कर रही है।
इतिहास
बड़कागांव प्रखंड अपने दामन में कई ऐतिहासिक तथ्यों को समेटे हुए है। गोंदलपुरा, चपरी और जोराकाठ के जंगलों में खूबसूरत पत्थरों का टीला और वहां बिखरे छोटे-छोटे पत्थरों के समूह। इसे हिमयुग का नमूना कहा जा रहा है। जंगलों में पत्थरों के समूह हिमयुग के पत्थरों से मेल खाते हैं। इस इलाके में इतिहास का बहुत बड़ा रहस्य छिपा हुआ है। इतिहास से इसे जोड़कर देखेंगे तो पायेंगे यहां गोंडवाना लैंड से भी हो सकते हैं। गोंडवाना लैंड दुनिया की सबसे पुरानी प्लेट है। धरती के पेंजिया भू-खंड काल में गोंडवाना भूमि पर प्रथम जीव की उत्पति होने के प्रमाण मिले हैं। यह स्थल मध्य भारत में नर्मदा नदी के किनारे है और नर्मदा विश्व की सर्वप्रथम नदी मानी जाती है। गोंड संप्रदाय का सर्वाधिक विस्तार नर्मदा नदी के किनारे हुआ है।
1992-93 में दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाली परख और सुरभि की टीम इस इलाके में आई थी। पटना पुरातत्व विभाग के उप निदेशक कुमार आनंद और दिल्ली से रोहित गांधी थे। यहां की भौगोलिक बनावट देखकर सभी अचंभित थे। उन लोगों ने कहा था कि इस इलाके का लगाव आदिमानव सभ्यता काल से हो सकता है। दिसंबर 1999 में नेहरू युवा केंद्र की ओर से मणिपुर के विद्यार्थियों को इन्हीं स्थलों का एक्सपोजर विजिट कराया गया था। उन्हें इस्को गुफा में बने रॉक आर्ट को दिखाया गया था। गोंदलपुरा, चपरी और जोराकाठ के जंगल इसी इस्को पहाड़ और जंगल की शृंखला हैं, जो इस बात पर बल देते हैं कि यह इलाका आदिमानव काल से ताल्लुक रखता होगा।
मिठास
बड़कागांव क्षेत्र में एक अनुमान के मुताबित 125-150 हेक्टेयर सालाना गन्ने की उपज होती है। कोल कंपनियों के जमीन अधिग्रहण का असर इस पर पड़ा है। गुड़ बनाकर इस इलाके में पूरे परिवार का भरण पोषण होता है। यह लघु व्यापार है। यहां के गुड़ देश के कई हिस्सों तक पहुंचते हैं. यहां के गुड़ की खुशबू और बेहतरीन स्वाद के कारण दूर-दूर से व्यापारी गुड़ खरीदने यहां पहुंचते हैं।
कौन क्या कहता है
ग्रामीण बताते हैं कि यहां सरकारी योजनाएं पहुंचने नहीं दी जाती। कंपनी वाले कहते हैं इन्हें तो हटाना ही है, सरकारी योजनाएं ना मिले तो आसान होगा। ग्रामीण अपना खेत, अपनी माटी, अपना घर छोड़कर नहीं जाना चाहते। कंपनी का दावा है कि जमीन अधिग्रहण शुरू हो गया है। गांव वाले इनकार करते हैं। कंपनी कहती है सीएसआर के तहत काम हो रहा है, गांव वाले बताते हैं गोंदलपुरा में कंपनी ने कुछ नहीं किया। कंपनी कहती है, ग्रामसभा की बैठक हुई, गांव वाले कहते हैं हर बार हमने बैठक में कहा जमीन नहीं देंगे। कई बार कंपनी और गांव वालों के बीच झडप हुई नतीजा कुछ नहीं निकला। गांव वाले जमीन से पहले जान देने की बात कहते हैं ऐसे में अडाणी के लिए यहां से इन्हें हटाना आसान नहीं होगा।
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