ऑरोविल एक ऐसा शहर जहां ना सरकार है, ना कोई कानून. यहां कोई अपराध भी नहीं होता. इस जगह शांति की खोज में दुनिया भर से लोग आते हैं. इस जगह को धरती का स्वर्ग कहा जाता है. दुनियाभर के दूसरे शहरों से अलग इस शहर में बहुत कुछ अलग है.
कहां है ये जगह
पॉडीचेरी से महज दस किमी दूर ये शहर दुनिया भर में अपनी अलग पहचान रखता है. यह जगह धर्म और राजनीति की खींच तान से दूर एक अलग ही दुनिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस जगह का दौरा किया था. पीएम मोदी ने इस जगह को लेकर कहा, “ऑरोविल में, भौतिक और आध्यात्मिक, सद्भाव में सह-अस्तित्व में हैं”
पूरी दुनिया में इस वक्त धर्म, जाति, राजनीति और देश की दीवार है. मानवता के हित में सोचने वाले ना लोग हैं ना कोई देश लेकिन भारत में एक ऐसा शहर बसता है जो इस दिशा में सोच रहा है और आज से नहीं कई सालों से यहां के नागरिक मानवता और समाज की वर्तमान परिभाषाओं से कहीं ऊपर हैं. यह शहर किसी सीमाओं में नहीं बटा किसी भी देश का नागरिक यहां रह सकता है. यहां ना धर्म की दीवार है ना जात का बंधन यहां आज तक एक भी अपराध नहीं हुआ.
कैसे तैयार हुआ यह शहर
इस अनोखे शहर के तैयार होने की भी कहानी है. आपको पीछे चलना होगा 1960 के दशक की कहानी है. जब भारत के महान स्वतंत्रता सैनानी और दार्शनिक ऑरबिंदो घोष और फ्रेंच महिला मैरिसा अल्फ़ाज़ा ने एक ऐसे समाज की कल्पना की जहां धर्म या जाति के आधार पर भेदभाव न हो, जहां कोई कानूनी बाध्यता न हो और जहां पूरे विश्व के लोग शांति, सद्भाव और पारस्परिक सहयोग से रह सके. इस कल्पना को रूप देने के लिए चयन हुआ इस जगह का. ‘ऑरोविल’ शहर का निर्माण हुआ, जहां 60 देशों के लगभग 3 हज़ार लोग रहते हैं. ऑरोविल दक्षिण भारत में स्थित है, पॉन्डीचेरी से इसकी दूरी महज़ 10 किलोमीटर है.
डॉक्टर हो या सफाई कर्मचारी सभी को मिलती है एक जैसी सैलरी
यह शहर आम शहर की तरह ही लगता है लेकिन यहां की हवा में ही कुछ अलग है. विदेशी आपको यहां खेतों में काम करते साइकिल चलाते और दुकानों में काम करते बड़े आराम से दिख जाते हैं. यहां सभी के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाता है. स्वीपर से लेकर डॉक्टर, इंजीनियर तक सभी को एक जैसी तनख्वाह (12 हज़ार रुपए प्रतिमाह) दी जाती है.
यहां के लोग समाज के लिए काम करने में विश्वास रखते हैं, लेकिन वही काम करते हैं, जिसमें उनकी रूचि हो. ऑरोविल में कुल 10 स्कूल है, जिनमें हर उम्र के लोग पढ़ाई कर सकते हैं.यहां के स्कूलों की खासियत है कि यहां कोई निर्धारित पाठ्यक्रम नहीं होता, विद्यार्थी अपनी रचनात्मकता के अनुसार कुछ भी सीख सकते है.
ना कोई जाति ना कोई धर्म की दीवार
‘मातरी मंदिर’, जिसे बनाने में 37 वर्षों का समय लगा. यहां घूमना इस जगह को देखना सब निशुल्क थक गये तो बस सेवा भी निशुल्क. मातृ मंदिर में ना कोई प्रतिमा है ना प्रार्थना की कोई पद्धति यहां ध्यान के माध्यम से केवल एक चीज़ को पूजा जाता है और वो है मन की शांति.
वैसे तो ऑरोविल भारत का ही एक हिस्सा है, लेकिन यहां का बजट यहां रहने वाले लोगों द्वारा ही बनाया जाता है, जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ और संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा आर्थिक सहयोग प्रदान किया जाता है.
दुनिया भर के खाने का स्वाद ले सकते हैं.
शहर में आपको ढेरों कैफ़े और रेस्टोरेंट मिलेंगे दुनिया भर के कई व्यंजन आप यहां आसानी से चख सकते हैं. आस-पास के गांव के लोगों को भी यहां काम मिलता है. ऑरोविल से ढेरों स्टार्ट-अप्स की शुरुआत हुई है, जो आज लाखों कमा रहे हैं.
दुनिया भर के कई देश जहां आर्थिक विकास की अंधी दौड़ में बेहिसाब भाग रहे हैं वहीं ऑरोविल जैसा शहर दुनिया में शोर-शराबे से दूर मानव जाति को एक गंभीर संदेश दे रहा है. मैंने इस जगह जो महसूस किया शायद आप भी कर सकेंगे यहां के पेड़ पौधे, हरियाली और लोगों के स्वभाव में ही कुछ ऐसी बात है जो दुनिया के किसी भी दूसरे कोने से अलग है. ऑरोविल को दुनिया की पहली ‘एक्सपेरिमेंटल सोसाइटी’ मानी जाती है ये एक अनुसंधान केंद्र भी है, जहां मानव विकास के कई आयामों पर निरंतर शोध कार्य किया जा रहा हैॉ
Leave a Reply