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अब क्या उम्मीद है झारखंड से?

अब क्या उम्मीद है झारखंड से?

झारखंड, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ एक साथ अलग हुए. पर हमारा झारखंड आज भी
राजनीतिक अस्थिरता के भवर में फंसा है. सच कहूं तो लगता है जैसे क्षेत्रिय
पार्टियों का ही दोष है. दोस्तों के साथ जब भी चर्चा हुई तो गाली हमेशा नेताओं को
हीं पड़ी पर राजनीति में अगर अस्थिरता है, तो उसके जिम्मेवार भी कहीं ना कहीं हम
है.  
झारखंड को अलग हुए अब लगभग 13 साल
पूरे हो गये. पर आज भी यह राज्य अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाया है. आज भी पलायन
के लिए लोग मजबूर है. मनरेगा और कई सरकारी योजनाओं का हाल बूरा है. नक्सलवाद बढ़ता
जा रहा है इसके बढ़ने का कारण अगर हम समझना चाहते हैं, सरकार समझना चाहती है जो
जाए जाकर देखें उन गांवों की हालत जहां आज भी अंधकार है. विकास की रौशनी तो दूर
गांव में बिजली तक नहीं है. किसे दोष दें आजादी को इतने साल हो गये पर आज भी
ग्रामीण, भूमिहीन किसान दूसरों के खेतों में काम करने को मजबूर है. कौन कहता है
इन्हें विकास चाहिये, मत करो विकास पर इन्हें इनका हक तो दो.






आज भी झारखंड में कई इलाके हैं जहां पुलिस जाने से डरती है, चुनाव का वक्त
होता है तो सेना इन गांवों को छावनी में तब्दील कर देती है. चुनाव खत्म, गांव से
रिश्ता खत्म.

मैं कई ग्रामीण इलाकों में घूमा हूं, मैंने इस दर्द को बहुत नजदीक से महसूस
किया है. इतना ही नहीं मेरे पैतृक आवास में आज भी बिजली नहीं है. वहां के हालात
दिन ब दिन बिगड़ रहे हैं. एक वक्त था जब वहां के लोग अमन, चैन से रहते थे आज मेरे
परिवार वाले वहां जान से डरते हैं. शहर में बड़ी- बड़ी इमारते बन रही है. मॉल बन
रहे हैं और गांव पिछड़ता जा रहा है. आज न सिर्फ झारखंड में महंगाई ने अपने पैर
पसारने शुरू कर दिये हैं बल्कि पूरे देश में इसका असर दिखने लगा है. अरे यार गांव
को मजबूत नहीं करोगे तो यही होगा. सब्जी की खेती जहां होती है वहां सिचाई के लिए पानी
नहीं है. जिसके पास मेहनत करने की क्षमता है, उसके पास जमीन नहीं है. वो दिन दूर
नहीं है जब हम सबसे अमीर राज्य होने के बाद भी दूसरे राज्यों पर निर्भर रहेंगे,
चाहे वो बिजली, पानी, या भोजन हो, या फिर हम झारखंडी राज्य की राजनीति से दूर रहकर
एकता के साथ अपने विकास के लिये खूद काम करें. मसला ये नहीं कि कौन यहां के
मूलवासी है कौन आदिवासी कौन अधिवासी. मसला यहां के विकास का है. ये गंदी राजनीति
करने वाले लोग अपनी क्षमता पहचानते है कि किन मुद्दों को छेड़कर विकास के सवालों
से बचा जा सकता है.           



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