एक ही जगह पर एक के बाद एक रैली , रोड शो. भीड़ भी जस की तस कैसे ? पार्टियां अलग है तो समर्थक भी अलग होंगे, भीड़ भी अलग होगी, आखिर कहां से आती है इतनी भीड़. रैली , रोड शो खत्म होते ही कहां चली जाती है. पीएम मोदी का मेगा रोड शो, मोदी के रोड शो के बाद अखिलेश और राहुल का रोड शो ( यह मेगा नहीं था) , भीड़ जस की तस कुछ सवाल खड़े हुए भीड़ को देखकर ?
यूपी चुनाव आखिरी चरण पर है. बनारस सत्ता का केंद्र बना है. प्रधानमंत्री दो दिनों से खुद सड़क पर है. पीएम मोदी को इस तरह देखकर सवाल खड़ा होते है, बनारस क्यों अहम है ? , प्रधानमंत्री ने शनिवार और रविवार लगातार दो दिनों तक रोड शो करके बनारस के राजनीतिक महत्व को साबित कर दिया. बनारस में विधानसभा की आठ सीटें हैं.
आपको क्या लगता है, सारी राजनीतिक उठापटक इन आठ सीटों के लिए है , नहीं बिल्कुल नहीं, उत्तर प्रदेश विधानसभा में बनारस सत्ता का केंद्र बना है तो इसके कई मायने है न सिर्फ सांस्कृतिक रूप से बल्कि राजनीतिक रूप से भी. बनारस पूर्वांचल का केंद्र कहा जाता है और सारी लड़ाई पूर्वाचल को साधने की है. अंतिम चरण के मतदान अहम है यह ठीक उसी तरह है जैसे जीत की लकीर को छूने के लिए आखिरी बार लगने वाला जोर. जीत की लकीर तक पहले कौन पहुंचेगा. सपा – कांग्रेस गठबंधन और भाजपा का रोड शो इस रेस का हिस्सा है. मेरी चिंता हार जीत को लेकर नहीं है ?
एक पत्रकार होने का सबसे बड़ा नुकसान है कि लोग आपको राजनीतिक विशेषज्ञ के रूप में देखते हैं, विस चुनाव की घोषणा के बाद से यूपी नहीं गया. मैं कैसे वहां के मिजाज का आकलन कर सकता हूं. पत्रकार होने के कारण हर रोज दो चार हो रहा हूं. हां कुछ पत्रकार साथी और संबंधी है उनके मिजाज समझने की कोशिश करता हूं. मेरी चिंता इसे लेकर भी नहीं है कि लोग पूछते हैं कि कौन जीतेगा.
मेरी चिंता( हमें (भीड़) को लेकर है. रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगभग 7 किमी का लंबा रोड शो किया. सड़क, चौराहे, भाजपा के पोस्टर से पटे थे. सड़कों पर पैर रखने की जगह नहीं थी. जगह – जगह फूलों से स्वागत हुआ. पीएम की गाड़ी का रंगा फूलों से ढक गया. शाम को अखिलेश यादव, डिंपल यादव और राहुल गांधी भी रोड शो पर निकले, इस वक्त भी भारी भीड़, पोस्टरबाजी और (थोड़ा कम ही सही लेकिन) वैसा ही मीडिया कवरेज . अगर आप पत्रकार हैं, तो चुनावी रैली में भीड़ का सच जानते होंगे ?. संभव है कि बाहर से भी लोग बुलाये गये हों. बसपा प्रमुख मायावती ने आरोप भी लगाया कि मोदी के रोड शो में बाहर से लोग बुलाये गये थे. नयी बात नहीं है यह होता है लेकिन क्या भीड़ सिर्फ भीड़ है.
समय के साथ झंडा बदलकर नारा बदल देती है. कहां से आती है यह भीड़ ? , कितने में बिकती है य़, अगर बिकती है तो फिर ईमानदार सरकार के वादे पर खुश होकर चिल्लाती क्यों है ?. बसों में, ट्रकों में, ट्रेनों में , ऑटों में ठूस कर लायी हुई भीड़ किसके साथ होती है ?. सपा- भाजपा और कांग्रेस को कहां से मिलती है ? कोई एक दुकान है या थोक के भाव में कोई बेच जाता है इन्हें ? भाजपा के रोड शो के बाद शाम में सपा- कांग्रेस का रोड शो था . भाजपा समर्थक कहां चले गये अगर वहीं थे तो अखिलेश राहुल जिंदाबाद के नारे कैसे लग रहे थे? हर हर मोदी घर – घर मोदी का नारा कहां गया ?.
क्या आपको टीवी में कोई ऐसा चेहरा दिखा जो पहले कमल की टोपी पहनें था, फिर सपा की टोपी में दिखा ? हम किससे उम्मीद करते हैं, क्या बदलना चाहते हैं, किसका विकास करना चाहते हैं. हम अपने घर के मुद्दों पर ही बिके हुए साहब. छोटी- छोटी जरूरतों ने हमारे अंदर के इंसान को मार दिया है, ईमानदारी को मार दिया है. अगर आपको लगता है कि आपके अंदर का इंसान जिंदा है, तो अंदर से आवाज उठनी चाहिए, हर सभा और रैली में इतनी भीड़ कहां से आती है साहब
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