News & Views

Life Journey And journalism

सिल्ली में जीते सुदेश और गोमिया में लंबोदर ने दी कड़ी टक्कर…!



हेडलाइन पढ़कर भाग मत जाइयेगा और खबर पढ़े बिना प्रतिक्रिया मत दीजिएगा. आपको पता नहीं है, अगर आप ऐसा करेंगे तो किस दर्जे में गिने जायेंगे. मैं मानता हूं कि यह गलत है सुदेश नहीं जीते लेकिन लंबोदर ने कड़ी टक्कर दी. मेरी तरह कई लोग जो चुनावी कवरेज के लिए इन इलाकों में गये थे.वहां का माहौल देखकर सबके अंदर का विश्लेषक जागा और लगभग सभी  इसी तरह के हेडलाइन की उम्मीद कर रहे थे. हुआ इसके उलट ….

किसी भी चुनाव में जनता का मूड समझना मुश्किल है. आखिरी वक्त तक लोग मन बदलते हैं. झंडे- बैनर पोस्टर से आप राजनीतिक हार – जीत का अंदाजा नहीं लगा सकते . अगर लगा भी लेते हैं, तो वह कितना सही होगा कहना मुश्किल है. आज ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल पर भरोसा कम हो रहा है. इसका सबसे बड़ा कारण यही है. जनता सिर्फ चुनावी प्रचार नहीं देखती. चुनाव में किया गया वादा नहीं देखती. आखिरी वक्त तक परखती है. इस पूरी प्रक्रिया में फैसले बदलते रहते हैं.

गोमिया- सिल्ली उपचुनाव हुए दोनों ही सीट जेएमएम की थी. उसी की रही. सिल्ली और गोमिया के विधायक सिर्फ डेढ़ साल के लिए चुने गये हैं. डेढ़ साल के बाद चुनाव फिर होगा. पिछली बार से दोनों सीटों पर जीत का अंतर कम है. अगर आप खुद को एक फीसद भी विश्लेषक मानते हैं, तो इस अंतर को भी कम मत समझियेगा.

मैं तीन- तीन दिनों तक दोनों जगहों पर रहा हूं. सिल्ली में दोनों और गोमिया में तीनों प्रमुख राजनीतिक दल  की चुनावी सभा कवर की है. सभी  प्रमुख उम्मीदवारों से बात की. कुछ निर्दलीय लोगों से बात की. सिल्ली में आजसू सुप्रीमों सुदेश महतो ने प्रचार में कोई कमी नहीं छोड़ी, नुक्कड़ नाटक, देर तक सभा. वो सब किया जो चुनाव में जीत के लिए जरूरी है.

गोमिया में आजसू प्रत्याशी लंबोदर महतो ने भी प्रचार में कोई कमी नहीं छोड़ी. सुदेश नुक्कड़ नाटक करा रहे थे तो लंबोदर ने चुनावी प्रचार गाड़ी में लाइव संगीत. लंबोदर के साथ  साये की तरह चंद्रप्रकाश चौधरी लगे रहे. पिछली बार सिल्ली में सुदेश की हार का बड़ा कारण जनता से दूरी बताया गया.  आरोप लगते रहे कि वह कार्यकर्ता से घिरे और जनता से दूर हो गये. इस बार जब सुदेश प्रचार के लिए निकले, तो अकेले निकले. किसी को साथ नहीं लिया. यह संदेश देने की कोशिश थी कि पार्टी कार्यकर्ताओं से घिरे सुदेश अब जनता के साथ हैं.

इस प्रचार में कोई कमी तो रही कि जनता सुदेश से पुराना जुड़ाव महसूस नहीं कर पायी. चुनाव के बाद भी कई लोगों से बात हुई. लोगों ने कहा सुदेश कार्यकर्ताओं से घिरे रहते हैं जनता से नहीं मिलते. इस हार- जीत से यह तो पता चलता है कि अगर जनता नाराज हो गयी, तो पांच सालों में भी यह नाराजगी दूर नहीं होती.
हमने विपक्ष की बड़ी सभाएं कवर की सभी पार्टियां एकजुट थीं. कई बड़े नेता मौजूद थे शिबू सोरेन से लेकर सीपीएम नेता तक.  सब एक मंच पर. जितने प्रमुख नेता मंच पर मौजूद थे उनकी राजनीतिक मजबूती के अनुसार  सभा में भीड़ नहीं थी. अगर राजनीतिक विश्लेषक इस सभा में होते, तो यहीं से जेएमएम और विरोधी पार्टी के हार की धोषणा कर देते. मैंने हमेशा कहा है कि दोनों के बीच कांटे की टक्कर है लेकिन सच कहूं, तो प्रचार और झंडे देखकर लगा था कि सुदेश जीतेंगे लंबोदर कड़ी टक्कर देंगे.

अब परिमाण सामने है. सबके आकलन का तरीका अलग है. हार- जीत के कारण  समझते रहिये. अगर ज्यादा समझ जाएं, तो लगे हाथ अगले विधानसभा में कौन जीतेगा इसकी भी घोषणा कर दीजिएगा .अगर आपका अंदाजा सही रहा ,तो ओक्टोपस बाबा, ‘डेजा वू’ की तरह आपका नाम दुनिया में ना सही लेकिन मेरा  ब्लॉग पढ़ने वाले कुछ लोग तो जानने ही लगेंगे. ये भी हो सकता है कि लोग राज्य के राजनीतिक भविष्य के अंदाजे के लिए आपके पास आने लगें. भैया, आदमी ऐसे ही धीरे- धीरे फेमश होता है. हां एक चेतावनी भी है- ये उनके लिए नहीं है जिन्होंने इस बार गलत भविष्यवाणी की है या अपनी कही बात से पलट गये हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *