अर्णब गोस्वामी का टाइम्स नाऊ में आखिरी दिन था. दफ्तर छोड़ रहे थे, सभी साथी उन्हें भविष्य की शुभकामनाएं दे रहे थे. खड़े होकर जुनियर तालियां बजा रहे थे. ये ट्रिब्यूट था सीनियर को उन जुनियर कर्मचारियों की तरफ से जिसने अबतक शानदार पत्रकारिता सीखी थी. उस दिन अर्णब ने एक बात कही थी” इट्स जस्ट अ बिगनिंग” . उनकी यह आखिरी लाइन मेरे दिमाग में लंबे समय तक अटरी रही थी. मैं जानता था कि कुछ करेंगे, कुछ बड़ा और इससे बेहतर. ये लाइन मेरे दिमाग में ठीक उसी तरह छपी थी जैसे जब 365 दिन चैनल बंद हुआ,तो अखबरों में विज्ञापन देकर कहा गया था कि हम फिर लौटेंगे. उस दिन से अबतक मैं इंतजार में हूं कि यह चैनल कब आयेगा, खैर इस चैनल की बात फिर कभी अभी अर्णब पर ही रहते हैं.
नया चैनल आया “रिपब्लिक” हिंदी -अंग्रेजी में दोनों में. बड़े शौक से मैं प्राइम टाइम का इंतजार करता था. पहली स्टोरी जिसे चैनल ने एजेंडे की तरह लिया. वह थी सुनंदा पुष्कर के मौत की स्टोरी. चैनल ने इस पर खूब प्राइम टाइम किया. कई तरह के फैक्ट रखे फिर लालू यादव के ऊपर स्टोरी हुई. मेरा इस चैनल से मोह भंग हो गया. फैक्ट कम थे, कहानियां और आरोप ज्यादा फिर अर्णबपर नजर रखनी छोड़ दी बीच पता चला कि फरारी चलाते हुए उन्होंने ट्रैफिक नियम तोड़े जिसकी वजह से चलान भरना पड़ा. एक स्टैंडअप कॉमिडियन कुणाल कामरा ने उन्हें फ्लाइट में कायर बुलाया और उसका वीडियो भी देखा.
अर्णब भी उन लिस्ट के पत्रकारों में शामिल हो गये जिनमें सुधीर चौधरी सरीखे पत्रकार टॉप पर हैं हालांकि एक और सूची है जिसमें रवीश सरीखे पत्रकार हैं. पत्रकारिता ही बंट गयी है असल में कोई बीच का रास्ता बचा कहां है. दो बातें हैं या तो आप सुधीर समर्थक हो या रवीश समर्थक या तो आपको जी न्यूज पसंद या द वायर. कुछ अब भी सच कहने की ताकत रखने वाले हैं लेकिन खेमे में बंटे लोग आपको कभी इधर का या उधर का तो बतायेंगे ही.
पत्रकारिता में पढ़ा है मैंने पत्रकार का काम खबरें बताना है लोगों को एकतरफा विचार बनाने के लिए प्रभावित करना नहीं है. आजकल हो क्या रहा है. अर्णबपर हुआ हमला पूरी तरह से खेमे बाजी का नतीजा है.
मेरे विचार- मैं पत्रकार अर्णब गोस्वामीपर हुए हमले की कड़ी निंदा करता हूं. आप किसी से वैचारिक मतभेद रख सकते हैं अगर आपको इससे निजी क्षति पहुंचती है तो कानूनन आप कार्रवाई कर सकते हैं लेकिन इस तरह उन पर और उनकी पत्नी पर हमला करना गलत है और ऐसा करने वालों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए.
सुना है पूरे देश में कांग्रेस के कार्यकर्ता अर्णब गोस्वामी पर केस कर रहे हैं. अगर यही शक्ति पूरे देश में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने समस्याओं को लेकर दिखायी होती तो कांग्रेस आज इतनी कमजोर नहीं होती.
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