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एक पत्रकार जब रिटायर्ड होता है तो क्या सोचता है


एक पत्रकार जब रिटायर्ड होता है, तो क्या सोचता है ? मुश्किल सवाल है ना. घबराइये नहीं जवाब है. आप ही के पास है, मुझे बस इतना बताइये  कि आप इस वक्त पत्रकारिता को लेकर क्या सोचते हैं? आज जो भी सोच रहे हैं, उस सोच की तुलना एक ऐसे व्यक्ति से कीजिए जिसने  40 से ज्यादा वक्त पत्रकारिता को दे दिया. जवाब मिल जायेगा. मैं मानता हूं कि यह थोड़ा मैथ के फार्मूले की तरह हो गया लेकिन कर के देखिये बिल्कुल जवाब मिलेगा. हमारे विभाग से आज मनोज भैया रिटायर्ड हो गये. मुझे यह शब्द थोड़ा अजीब लगता है लेकिन मेरे पास कोई दूसरा शब्द नहीं इसलिए यही लिख रहा है हूं लिखने को तो लिख सकता हूं कि नयी पारी खेलने जा रहे हैं.

पत्रकारिता का कीड़ा होता है. एक बार काट ले, ना तो कोई दूसरी राह नजर नहीं आती. रोज लगता है कि आज कुछ बेहतर होगा,लगता है जैसे सबकुछ हो जायेगा और होता कुछ नहीं है. मनोज भैया ने ऊपर दिवार की तरफ देखते हुए ( शायद कुछ याद करते हुए) ये बात कही…. 

लगभग चार दशकों से ज्यादा समय तक पत्रकारिता की. आप और हम पत्रकारिता में कैसे आये उसे याद कीजिएगा तो इनका भी पत्रकारिता में आने का तरीका वही लगेगा. उन्होंने कहा, 12वीं के बाद से ही पत्रकार बनने का, ग्राउंट रिपोर्टिंग का चस्का लगा. पहली रिपोर्ट छपी फिर तो सफर रूका ही नहीं. आज अखबार से लेकर प्रभात खबर तक वो सारे अखबार जो आप याद कर सकें मनोज भैया ने उन सबमें काम किया, एक अखबार का नाम लेकर कहा कि फलां का वर्क कल्चर खराब है तो ज्यादा दिनों तक नहीं टिक सका लेकिन सारी जगहों पर काम का अनुभव ठीक रहा. इतना लंबा अनुभव रहा है. कई चीजें उन्होंने बतायी. सारी चीजें नहीं लिख सकता .  मनोज भैया साथ काम कर रहे थे, तो गलतियों पर चिंता कम थी. मुझे भूलने की आदत है तो हर दिन दफ्तर में कुछ ना कुछ भूल जाता तो संभाल कर अपनी दराज में रख देते पर बताते नहीं थे मैं सभी जगह तलाश कर थक जाता तो निकाल कर देते थे. आदत हो गयी थी कोई चीज कहीं भूल गया तो सीधा उनके पास जाता था.

मनोज भैया बातचीत में याद करते हुए बताते हैं कि मुझे याद है कि एक संस्थान में मेरा तबादला एक जगह से दूसरी जगह हुआ था. जब वेतन वृद्धि (इनक्रिमेंट)का वक्त आया तो 500 रुपये बढ़ाये गये उस वक्त उन्हें बहुत निराशा हुई थी.   कई लोग जिन्होंने इनकी ऊंगलियां पकड़ कर पत्रकारिता के सफर की शुरूआत की. आज वह इस सफर में आगे निकल गये हैं, पलट कर नहीं देखते लेकिन जानते हैं कि मैं कौन हूं उनके लिए क्या रहा हूं, इतनी शर्म है कि मुझे देखकर खड़े होते हैं लेकिन आज जब जा रहा हूं तो कोई मलाल नहीं है, कोई दुख नहीं है कि किसने कैसा व्यवहार किया मैंने यहां अच्छा समय काटा.

पत्रकारिता से एक बेहतर जीवन की उम्मीद की जा सकती है. मेरे इस सवाल पर इन्होंने कोई गोल मोल जवाब नहीं दिया सीधा कहा, बिल्कुल नहीं, कुछ और भी सोचना चाहिए. मैं कभी नहीं चाहूंगा कि मेरे बच्चे इस पेशे में आये. मैंने इतने सालों में बहुत कुछ देखा है यहां भी मुझे कुछ लोगों का भविष्य तो दिखता है लेकिन कुछ लोगों का नहीं कह सकता. आप इस पेशे में रहिये तब ही जब आप बहुत स्मार्ट हैं. अगर आप औसत हैं, तो कुछ नहीं होगा कुछ और सोचिये…

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