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हम इतने मुफ्तखोर क्यों हो रहे हैं ?

हम इतने  मुफ्तखोर
क्यों हो गये हैं
? क्या सच में हमें मुफ्त की
चीजें उठाने की आदत हो गयी है. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने मंगलवार को
उत्तर प्रदेश के देवरिया ज़िले के रूद्रपुर में खाट पंचायत की. सभा खत्म होते ही
किसान खटिया लेकर चलते बने. न्यूज चैनल में इसकी तस्वीर देखकर आप अंदाजा लगा लेंगे
,
जो लोग अपने सिर के ऊपर खटिया टांग के ले जा रहे हैं वो मुफ्तखोरी की आदत को अपने
साथ ले जा रहे हैं. राजनीतिक सभा से लोगों की उम्मीद भी यही होती है. मुझे याद है
लोकसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी  (तब
के पीएम उम्मीदवार) रांची आने वाले थे. उस वक्त बसों में भरकर लोगों को लाया गया
था. यहां रहने खाने का पूरा इंतजाम था ऊपर से पैसे भी जरा कोई पता करे कि लोगों को
यह कहकर तो नहीं लाया गया था जिस खटिया में आप बैठेंगे वो आपकी
?

चाय की आदत हमें कैसे लगी इस पर मैंने किसी से सुना की पहले
अंग्रेजों ने मुफ्त में चाय बांटनी शुरू की और धीरे
धीरे जब
हमें इसकी आदत हो गयी
, तो लगे बेचने. अगर
आज राहुल की सभा में लोग खाट उठाकर ले गये तो इसकी भी आदत धीरे

धीरे लगी है. मैंने पार्टी के झंडे, बैनर, पोस्टर लोगों को घर उठाकर लाते देखा है.
जो गरीब होते हैं वो खिड़की दरवाजे में फ्लैक्स का इस्तेमाल कर लेते हैं ,जो थोड़े
पैसे वाले हैं वो इधर उधर बेच देते हैं. राहुल गांधी ने इस सभा में कहा, उन्होंने
सरकार पर दबाव डालने के लिए 25 सौ किमी लंबी यह यात्रा शुरू की है. उन्होंने कहा
कि यात्रा के दौरान वो किसानों के दुख-दर्द और समस्याएं सुनेंगे और किसानों की
बातों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक पहुंचाएंगे. उम्मीद करता हूं इस तस्वीर के
जरिये पीएम तक किसानों का दर्द पहुंच गया होगा. 


ऐसा नहीं है कि लाल कार्ड या गरीबी
रेखा से नीचे वाले को मुफ्त खोरी की आदत है . यकीन मानिये आप और हम भी इन खटिया ले
जाने वोलों में शामिल है बस फर्क इतना है कि टीवी में हमारी तस्वीर आने से बच गयी.
आपकी मुफ्तखोरी का तो आप जानें, मैं रिलायंस का जीओ इस्तेमाल कर रहा हूं. तीन
महीने इंटरनेट और कॉलिंग फ्री है. फ्री है, तो पैसे क्यों लगाऊं. सभी इस्तेमाल कर
रहे हैं, तो मैं पागल हूं, जो पैसे खर्च करके इंटनेट पैक लूंगा. जिन लोगों का
रिलायंस से रिश्ता है उन्हें याद होगा. मेरा तो लंबा अनुभव है. हमारे घर में पहला
फोन नोकिया 2112 आया था . लगभग 5 हजार में हमने खरीदा था और तीन हजार रूपये का
टॉकटाइम था. जब तक पैसे थे खूब बाचतीत हुई. पैसे खत्म हुए तब तक हम फोन पर गपियाने
के लत में आ गये थे. जिनसे खूब बातचीत होती थी अब उन्हें शिकायत होने लगी की अब
फोन नहीं आता. अकेले बैठे
बैठे न चाहते हुए भी इधर उधर फोनिया
देते थे. जैसे तैसे मन मसोह के रहने लगे तो. रिलायंस वालों ने नया मुफ्तखोरी का
प्लान दे दिया. 149 का रिचार्ज करवाओ और रात भर गपियाओ. रात के 10 बजे से सुबह 6
बजे तक फ्री सभी जरूरी बातों के लिए रात का इतंजार होता था. फ्री की बातचीत ने
पूरी दिनचर्या बिगाड़ कर रख दी थी. 

अब फ्री की एक और लत लग रही है. इनकी रणनीति भी
कमाल की है. लांच से पहले ही ऑफिस में आकर नंबर दे गये. अब जब इंटरनेट के पैसे
लगेंगे, तो इस्तेमाल करने की एक लत लग चुकी होगी. कई दोस्त इंटरनेट से जुड़ चुके
होंगे. कई वेबसाइट पढ़ने की आदत हो गयी होगी. जिसे जाने में वक्त लगेगा. अरे हम तो
लाइन लगाने नहीं गये आसानी से मिल गये लेकिन कई लोगों की लाइन तो हमने फेसबुक पर
देखी कि कैसे रिलायंस स्टोर के बाहर कतार में खड़े हैं. स्कूल के फार्म के लिए
एतना लंबा भीड़ होता था उस वक्त भी लोग खड़े होकर गरियाते थे. यहां तो जीओ के
चक्कर में चेहरा खिला हुआ कि अभी मिला और इंटरनेट फ्री. जीओ जवान…  

हमें मुफ्तखोरी की आदत इतनी कमजोर कर रही है
जिससे पार पाना मुश्किल होगा. खाली कंपनी वाले ना हैं सरकार की ऐसी कई योजनाएं है,
जो वैसे लोगों को मिलती है जो मेहनत करके पूरी कर सकते हैं लेकिन आसानी से चीजें
उपलब्ध होने के कारण मेहनत से दूर भाग रहे हैं. 1 रुपये चावल , इंदिरा आवास की
सुविधा. सब्सिडी में उपलब्ध चीजें लोगों को कमजोर कर रही है. मनरेगा, कृषि बीमा
जैसी योजनाएं बढ़िया है इसी तरह की योजनाएं बनायी जानी चाहिए. सरकार को रोजगार पर ध्यान देना चाहिए, लोगों को
हुनरमंद बनाने पर ध्यान देना चाहिए ना कि मुफ्त खोरी की लत लगाने पर. कई लोग जो इस पर सोचेंगे कि क्या बकवास है कितना रिक्शे वाले ढेले वाले मेहनत करते हैं और इसी सस्ते अनाज से अपना पेट भरते हैं उनको राहत मिलती है तो भैया राहत मिलने वालों के लिए हमें भी बहुत खुशी है लेकिन हमें तकलीफ उनसे है जो सब्सिडी का खाना खाने के बाद बचे पैसे का शराब पीकर घर पहुंचते  हैं. सरकार को चिन्हित करना चाहिए कि सच में किन्हें इसकी जरूरत है औऱ कौन सक्षम है खर्च करने के लिए.


ऐसा है गुरू
हर  सिक्के के दो पहलू होते हैं. पहला
मुफ्त वाला में एतना लंबा लेक्चर दे दिये हैं . दूसरा भी सुनते जाओ. हम जिसे मुफ्त
की समझते हैं वो मुफ्त की तो बिल्कुल नहीं होती. रिलायंस देश की बहुत बड़ी कंपनी
है नफा नुकसान के हिसाब के  लिए विदेशों से
पढ़ लिखकर टीम बिठा रखी है जिन्हें अच्छी सैलरी देती है. उन्हें काम के पैसे मिलते
हैं मुफ्त के नहीं. जरा सोच लीजिए वो मुफ्त में चीजें देगी तो क्यों
?.
ठीक उसी तरह बड़ी
बड़ी राजनीतिक पार्टियां आपको मुफ्त में कोई चीज देगी तो
क्यों
?. इन मुफ्त की चीजों के बदले में आप उसे कुछ तो दे रहे होंगे.
कभी आराम से बैठकर सोचियेगा इस मुफ्तखोरी के बदले में आप क्या दे रहे हैं. यकीन
मानिये इसका जवाब ज्यादा मुश्किल नहीं है
लेकिन
सही जवाब मिल गया ना तो बहुत चुभेगी आपको भी मुफ्तखोरी. ( वैसे ये पोस्ट भी मैं
मुफ्तखोरी के कारण ही लिख रहा हूं नहीं तो कहां इस वक्त 2
G में इतना
लंबा चौड़ा लिख पाता पर……………..)  

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