कचड़े का पहाड़- रांची |
झारखंड की कई शानदार जगहों को देखकर हम कहते हैं ना स्वर्ग है. अगर स्वर्ग है तो नर्क भी होगा ? बिल्कुल है. रांची से ज्यादा दूर भी नहीं है. रांची से 15 किलोमीटर दूर झिरी में आइये. आप यही कहेंगे यह तो नर्क है. आपके घरों से, बड़े अस्पताल से और जहां से कचरा निकल सकता है उन सभी जगहों से निकलकर रांची का करीब 600 टन कचरा डंप होता है. रांची पहाड़, प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है लेकिन यहां आपको कचड़े का पहाड़ दिखेगा, कचरे पर मंडराते गिद्ध दिखेंगे. मरे हुए जानवर खाकर घूमते अब शिकारी हो चुके कुत्ते दिखेंगे.
कुछ ऐसा दिखता है नर्क
झिरी स्थित डंपिंग यार्ड 40 एकड़ में फैला हुआ है. आज से नहीं इस नर्क को बनाने में पिछले 25 वर्षों से (सन 1995 से) यहां कचरा फेंका जा रहा है. इस कचरे का डिस्पोजल नहीं किया जा सका है, इसलिए यहां कचरे का पहाड़ खड़ा हो गया है. इस रास्ते पर पहुंचते ही आप गाड़ी का शीशा बंद करने लगेंगे. नांक बंद करने लगेंगे और दुआ करेंगे कि जल्द से जल्द इस नर्क से पीछा छूटे.
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नर्क में जीवन
यहां के रहने वाले ज्यादातर लोगों ने अब इस कचड़े को व्यापार बना लिया है. यहां कचड़े की छोटी- छोटी 100 दुकानें हैं. यहां सब बिकता है, प्लास्टिक, लोहा, बोतल, शीशा सब जिसे दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है.सबका रेट तय है. प्लास्टिक 15 रुपये, बोतल एक रुपये से दो रुपये. कई लोग दिनभर इन कचड़ों से काम की चीज चुनकर इन छोटी दुकानों में बेचते हैं. यहां रहने वाले लोग कचड़े की कीमत अब समझने लगे हैं लेकिन उन्हें इससे नुकसान भी हो रहा है. कई तरह की बीमारियां, गंदगी इसी के बीच जीना है. विरोध होता है लेकिन उसका कोई खास नतीजा नहीं निकलता, जो अब देश में हर जगह है. बाउड्री बनाने की मांग है, फैलती बीमारियों को लेकर विरोध प्रदर्शन हो. गंदगी से यहां की जमीन को पहुंचने वाला नुकसान हो खूब विरोध होता है लेकिन होता कुछ नहीं है.यहां के ढेरों लोग मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया जैसे रोगों की चपेट में आते रहते हैं. दिन में भी मच्छरदानी लगाकर सोते हैं.
नर्क की आबोहवा
कई घरों की खिड़कियों में मच्छरदानियां लगी हुई हैं। अक्सर मरे हुए जानवरों को भी लोग ट्रैक्टर वालों की मदद से चुपचाप रात में आकर यहां फेंक जाते हैं। इससे इलाके के कुत्ते पहले से ज्यादा आक्रामक हो गये हैं और वे मवेशियों पर हमले करने लगे हैं. कभी कभी कचड़ा इतना हो जाता है कि नये कचड़े के लिए जगह नहीं होती. तब यहां आग लगा दी जाती है. प्रदूषण हवा में फैलकर आसपास केलोगों का सांस लेना मुश्किल कर देता है. जलने के बाद कचरे से कार्बन मोनोऑक्साइड व कार्बन डाईऑक्साइड गैस निकलती है. कार्बन मोनो ऑक्साइड गैस से दिमाग और फेफड़े की बीमारी होने का खतरा रहता है. यह गैस हमारे शरीर में मौजूद खून को ही बदल देती है. इससे दिमाग के साथ-साथ हार्ट भी प्रभावित होता है. वहीं लगातार धुआं शरीर में जाने से फेफड़े की बीमारी सहित आंख, नसें आदि प्रभावित होती हैं… है ना पूरी तरह नर्क
नगर निगम के हसीन सपने जो कभी पूरे नहीं होते
साल 2015 में नगर निगम ने सपना देखा कहा, यहां के कचड़े से 11 मेगावॉट बिजली बनेगी. एस्सेल इंफ्रा की ज्वाइंट वेंचर जापानी कंपनी हिटाची कचरा से बिजली का उत्पादन करेगी. झिरी में बने डंपिंग यार्ड में कंपनी बिजली उत्पादन का प्लांट बनेगा. नींद खुली सब गायब हो गया. दूसरा सपना देखा, जमा कचरे के पहाड़ पर एक हॉर्टिकल्चर पार्क बनेगा. नगर निगम के अधिकारी हैदराबाद और अहमदाबाद का दौरा भी कर आये. सपना पुरा नहीं हुआ.
क्या कभी भी स्थिति बदलेगी?
सवाल अच्छा है लेकिन जवाब है ना.. कचरा गिराने के लिए कोई दूसरी जगह नहीं मिल रही. निकट भविष्य में इस नर्क की किस्मत में बदलाव होता नजर नहीं आ रहा है. ताजा अधिकारी का दौरा देखिये, नगर आयुक्त मुकेश कुमार ने गुरुवार को झिरी डंपयार्ड का निरीक्षण किया गया. इस दौरान उन्होंने डंपयार्ड से सटे रिंग रोड़ पर कचरे को हटाने का निर्देश दिया. साथ डंपिक यार्ड में कचरा गिराने के लिए जिस रास्ते से गाड़ियां जाती है उस रास्ते को भी बिल्डिंग मटेरियल गिरा कर वाहनों को आने जाने के लिए बेहतर रास्ता बनाने की बात कही. कर्मचारी भवन में दरवाजा व खिड़की लगाने, फर्श बेहतर करने का निर्देश दिया. मतलब साफ है कि अभी कचड़ा यही गिरेगा, नर्क का प्रमोशन होगा इस रास्ते से अभी नाक बंद करके आप गुजर रहे हैं यही चलता रहा तो आप इस रास्ते पर आने से पहले ही नांक मुंह बनाने लगेंगे…
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