सीएम आवास |
हम जैसे लोग जिनके घर में ना एयरकंडिशन है, ना ही इतना बड़ा घर की बागीचे में भी रौशनी चाहिए. एक बल्ब और पंखे के सहारे रात कट जाती है, बिजली की कटौती से ज्यादा परेशान हैं. आज बिजली कटी, तो शहर के एक चक्कर लगाकर लौटा हूं कि मेरी तरह कितने लोग हैं, जिन्हें इस राष्ट्रीय समस्या ने परेशान कर रखा है. सड़क के किनारे कई घरों में अंधेरा दिखा. कई जगहों पर लोग छत में, अपनी बालकनी में नजर आये.
डीसी साहेब का घर |
सीएम हेमंत सोरेन ने ऐसे ही थोड़े ना इसे राष्ट्रीय समस्या बताया हैं. सकंट तो बड़ा है और गर्मी में लोग परेशान भी हैं. देखकर सीएम साहब की बातों पर भरोसा हुआ कि सच में समस्या बड़ी है. सोचा हम सभी घर की छत पर या बाहर अपने घरों में रौशनी के इंतजार में हैं, तो सीएम साहेब भी अपने परिवार के साथ बागीचे में टहलते या मोरहाबादी मैदान के चक्कर मारते मिल जायेंगे आखिर इस राष्ट्रीय समस्या से परेशान तो वो भी होंगे लेकिन ये क्या मुख्यमंत्री आवास पहुंचा, तो देखा कि हमारे हिस्से की रौशनी से तो इनका बागीचा रौशन हो रहा है. दरवाजे पर चमचमाती रौशनी ने साफ बता दिया कि ये इस राष्ट्रीय समस्या से बाहर हैं, अंदर पेड़ पौधों को भी पर्याप्त रौशनी मिल रही है. मुख्यमंत्री आवास के हर कोने में रौशनी है और हम अपने घर के एक कमरे में अंधेरे से परेशान हैं. क्या मुख्यमंत्री इस राषट्रीय समस्या का हिस्सा नहीं है.
चीफ जस्टिस साहेब का बंगला |
मुझे लगा कि भाई मुख्यमंत्री है संभव है इनके लिए अलग इंतजाम होगा. फिर मोरहाबादी में मैं राजकीय अतिथिशाला गया, वहां भी जगमग रौशनी फिर खुद को समझाया कि भइया अतिथि देवो भव : और भगवान को कोई अंधेरे में थोड़ी ना रखता है. इसके बाद मैं जिले के मालिक के घर से होकर गुजरा छवि रंजन सर के बाहर का बड़ा सा दरवाजा रौशनी में अपनी छवि तैयार किये बैठा था. बगल में मंत्री जी के आवास में भी रौशनी छनकर सड़क तक आ रही थी. सरकारी अधिकारी और अफसर भी इस
राष्ट्रीय समस्या का हिस्सा नहीं है. चीफ जस्टिस के आवास के पास भी गुजरा वहां भी बिजली की समस्या नहीं थी. आखिर इस राष्ट्र में इस राष्ट्रीय समस्या की जद में कितने लोग हैं और अगर देश के विकास में, देश के हर गर्व के क्षण में इनका हिस्सा है, तो फिर इस समस्या में क्यों नहीं है ?
नेता जी चंपई सोरेन का घर |
हम अंधेरे में हैं और राज्य से बिजली तैयार होकर दूसरे राज्यों को जा रही है, तो हम इस राष्ट्रीय समस्या को हल करने में कितनी भूमिका निभा रहे हैं औऱ अगर सच में बिजली की इतनी किल्लत है, तो साहेब लोग के घर के साथ- साथ बड़े – बड़े बागीचे और आलीशान और शानदार लैंप जिनकी रौशनी की शायद किसी को जरूरत नहीं फिर जल कैसे रहे हैं. क्या इस राष्ट्रीय समस्या का हल भी हम जैसे साधारण औऱ आम लोगों के हिस्से की रौशनी छिनकर निकलेगा ? तकलीफ उसी को होती है जिसे दर्द होता है.
इन्हें तो बिजली ना होने और अंधेरे में घंटों बिजला का इंतजार करने का दर्द ही नहीं पता. अगर सीएम, मंत्री औऱ सरकारी आवास में बिजली कटे और कभी- कभी रात भर ना आये तो इन्हें महसूस हो कि कैसे पेपर मोड़कर पंखा तैयार करके हौकते हुए रात कटती है, सुबह उसी उत्साह के साथ हम जैसे साधारण लोग अपने दफ्तर जाते हैं, काम करते हैं फिर वापस लौटकर इस राष्ट्रीय समस्या से भी लड़ते हैं.
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