नागवंशी राजाओं का इतिहास और कई कहानियां का राज |
झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 45 किमी दूर खुखरागड़ से सटे मुड़हर पहाड़, नागवंशी राजाओं का इतिहास समेटे हुए है. पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी पर, गुफा में भगवान शिव विराजमान है. पर्यटन विभाग इस जगह के महत्व को समझता था, यही कारण है कि इस पहाड़ पर चढ़ने के लिए सीढ़ियां बनी है हालांकि अब सीढ़ियों की रेलिंग टूट रही है, जिससे यह लगने लगा है कि विभाग इस जगह के महत्व को अब कम आंकने लगा है जगह की देखभाल करने के लिए कोई नहीं है, लेकिन यहां कई कहानियां हैं, जो आपका इंतजार कर रहीं है.
कैसे मिली शिव की प्राचीन गुफा
इस पहाड़ की तलहटी पर बसा गांव इस पहाड़ की कहानियों को अपने साथ रखता है. हम जब पहाड़ से नीचे आकर कहानियों का सिरा तलाशने में लगे थे तो खलिहान में काम करते हमें एक बुजुर्ग दिखे, बड़े बाल जो अब जट हो चुके थे. लगभग 15 सालों से बाल को इस तरह संभाल कर रखने वाले सुखन को हम देखकर रूके, उनसे कुछ बातें की. हमने जब कहानियों का जिक्र किया तो उन्होंने बताया कि इस प्राचीन गुफा का पता कैसे चला.
ग्रामीण जिन्होंने बतायी भगवान शिव के गुफा में विराजमान होने की कहानी |
ईश्वर ने दिखाया रास्ता
गांव के लोग अक्सर गाय, बकरी चराने पहाड़ की तरफ जाते थे. एक गाय अक्सर उस गुफा के पास जाकर चरती और आती तो खूब दुध देती, जो भी गाय वहां चरती ज्यादा दुध देती थी. गांव वाले समझ नहीं पा रहे थे कि इस जगह में ऐसा खास क्या है, एक दिन भगवान शिव एक चरवाहे के सपने में आये और कहा, कई सालों से प्यासा औऱ भूखा हूं. तुम्हारी गाय तो पहले से ज्यादा दुध दे रही है थोड़ा हमें भी दे दो. दूसरे दिन चरवाहा वहां पहुंचा और इस तरह भगवान शिव की गुफा मिल गयी.
मंदिर की देखरेख करते हैं तेजू गोस्वामी |
मंदिर को दूसरी जगह शिफ्ट किया गया
मुड़हर पहाड़ में भगवान शिव की गुफा तो है लेकिन नीचे भी प्राचीन मंदिर है, हालांकि इसे अब थोड़ी दूरी पर नये तरीके से बनाया गया है. तेजू इस प्राचीन मंदिर की देखरेख करते हैं उन्होंने बताया कि प्राचीन मंदिर को मुगल शासको क्षतिग्रस्त कर दिया था जिसके बाद मंदिर को थोड़ी दूरी पर दोबारा बनाया गया शिवलिंग स्थापित किया गया हालांकि कई इतिहासकार यह मानते हैं कि इस इलाके में मुगल शासक आये ही नहीं, मुगल शासकों से बचने के लिए हीं खुखरागढ़ को राजधानी बनाया गया था. आज भी इस मंदिर का महत्व है, दूर- दूर से लोग आते हैं.
कई राज दफ़्न हैं यहां
मुड़हर पहाड़ के नीचे कई सभ्यताएं, कहानियां, इतिहास और खजाना सब दफ्न है. पुरातत्व विभाग ने साल 2007 के दौरान इन इलाकों में खुदाई की थी. यहां से कई प्राचीन चीजें, सिक्के और कीमती सामान निकले. दो चरण की खुदाई के बाद उसे बंद कर दिया गया. गांव वालों ने कई सरकारों से अपील की, चिट्ठियां लिखी. आग्रह किया लेकिन सरकार ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया. पुरातत्व विभाग ने भी लोगों की अपील पर ध्यान नहीं दिया.
रांची से 22 किमी दूर जहां ईश्वर रहते हैं…
14 सोने के सिक्के की कहानी जो हमने भी सुनी
गांव वाले दबी जुबां में कई कहानियां बताते हैं लेकिन खुलकर कोई बात करने के लिए तैयार नहीं है. इस इलाके में खूब खेती होती है. खेती के दौरान कई पुरानी ईट तो कभी कुछ और इस तरह की चीजें निकलती रहती है. 14 वीं शताब्दी से भी पुराने सोने के सिक्के एक किसान को मिले. जमीन पर खेती के दौरान उसे वो सिक्के गड़े मिले. किसान उस सिक्के को घर ले गया. गांव में घूमकर कारोबार करने वाले एक सोनार को उसने सिक्के दिखाये तो सोनार ने कम कीमत पर सारे सोने के सिक्के खरीद लिये.
उग्रवादी के हाथ लगा सोने का सिक्का
धीरे – धीरे यह बात गांव में फैली, गांव वालों ने उस सोनार का घर घेर लिया कि सोने के सिक्के वापस करो. सोनार ने कहा, सारे सिक्के गला दिये. ग्रामीण वापस लौट आये. यह बात माओवादियों तक पहुंची. माओवादियो ने सोनार से वह 14 सिक्के निकलवा लिये. माओवादी के जिस गिरोह का हाथ इसमें था उसके मुखिया का नाम उदय उरांव उर्फ मुड़कटवा था. इस नक्सली के बारे में कहा जाता था कि वह गर्दन काटकर खून पी लेता था. इसे उम्र कैद की सजा हुई है औऱ जेल में बंद है.
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