हमेशा सैनिक के परिवार वाले ही क्यों रोते हैं सर
आज सुबह जब दफ्तर पहुंचा तो गृहमंत्री राजनाथ सिंह टीवी पर आ रहे थे उन्हें प्लेन दुर्घटना में मारे गये लोगों के परिवार वालों ने घेर रखा था. शहीद की बेटी ने गृहमंत्री से रोते हुए सवाल किया सर हमेशा सैनिक के परिवार वाले ही क्यों रोते हैं. राजनाथ सिंह चुप रहे. आखिर जवाब देते भी तो क्या? भले ही सवाल गृहमंत्री टाल गये लेकिन सच में इस सवाल ने एक साथ कई सवाल खड़े कर दिए.
30 साल पुराना प्लेन नक्सल से लड़ने के लिए रांची आ रहा था एक ऐसे प्लेन से सफर करने की क्या जरूरत जो इतना पुराना हो. तकलीफ होती है , जब सैनिकों की जान को इतना कम महत्व दिया जाता है. नेता अत्याधुनिक और शानदार हवाई जहाज इस्तेमाल करते हैं और सैनिकों को दिया जाता है ऐसा जहाज जिसकी उम्र तीस पार कर चुकी है. नेताओं का बयान भी समय समय पर इनकी सोच को जाहिर कर देता है. एक नेता ने बयां दिया कि सैनिकों की भरती ही मरने के लिए होती है , तो एक शहीद के पिता ने नेता से मिलने से मना कर दिया ,तो नेता ने कह दिया शहीद हुआ तो मिलने आ गया. कुत्ता भी झांकने नहीं आता. हैरानी होती है इस तरह की सोच को देखकर , ऐसे बयान सुनकर. सदन में जब हमला हुआ तो जान देकर नेताओं की सुरक्षा करने वाले इन्ही नेताओं के रवैये के कारण जान गवां रहे हैं.
कौन चिंता करेगा? सड़क पर जब लाठी का सामना पिस्तोल से हो तो कौन जितेगा. लठधारी हवालदारों के सामने हथियार से लैस अपराधियों को सामना करने को कहने वाले नेताओं से उम्मीद भी क्या की जा सकती है. नक्सल प्रभावित इलाकों में पुलिस नहीं जाती. इसकी जोरदार आलोचना भी होती है ,भई जाए भी तो कैसे सड़ी सी जीप जंग लगे हथियारों से सामना करे भी तो कैसे. अगर शहीद की बेटी को गृहमंत्री जवाब देते भी तो क्या देते, सोचिए, क्या कह देते की बेटी हमारा रवैया जबतक नहीं बदलेगा तबतक ऐसी दुर्घटनाओं में सैनिकों की मौत होती रहेगी, नक्सल प्रभिवात इलाकों में बम से पुलिस के वाहन उड़ाये जायेंगे ऐसे ही मौत होती रहेगी. सैनिक के परिवार वालों को हमेशा इसलिए रोना पड़ता है क्योंकि हमें अपनी सुरक्षा से ज्यादा किसी की चिंता नहीं.
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