किसान आंदोलन क्यों कर रहे हैं ? आपका जवाब हो सकता है, एमएसपी खत्म होने का डर है इसलिए. फिर तीनों नये कृषि कानून को वापस लेने की जिद पर क्यों अड़े हैं जबकि सरकार कह रही है एमएसपी बंद नहीं होगा ? इस सवाल का जवाब है आपको पास ? नये कृषि बिल में क्या समस्याएं हैं. किसान आंदोलन की खबर, तो पढ़ रह हैं लेकिन कुछ बुनियादी सवाल है जिसका जवाब कम लोगों के पास है. सच बताइये क्या आप किसान आंदोलन की असल वजह जानते हैं…. आइये साथ मिलकर किसान आंदोलन, नये कृषि कानून को ठीक से समझते हैं फिर किसान आंदोलन पर कमेंट में अपनी राय रखियेगा.
आप कितना समझते हैं कृषि कानून को
अगर आप इसे पढ़ने से पहले कृषि कानूनों को अच्छी तरह समझते हैं तो किसान आंदोलन पर आपकी प्रतिक्रिया जरूरी होगी. किसान और सरकार के नजरिये से फायदे और नुकसान समझा सकते हैं. अगर नहीं तो पहले पहले तीनों कानून को आसान भाषा में समझ लेते हैं.
आसान भाषा में समझ लीजिए
1. कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020 – इस कानून के तहत किसानों को रजिस्टर्ड मंडियों से बाहर फसल बेचने की आजादी है. इसमें फसल को एक राज्य से दूसरे राज्य में आसानी से बगैर रोक – टोक के ले जाने की अनुमित होगी.
2 कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) क़ीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर क़रार विधेयक, 2020 – इसमें कॉन्ट्रैक्ट फार्मिग का जिक्र है. पांच हेक्टेयर से कम ज़मीन वाले छोटे किसान भी कॉन्ट्रैक्ट से लाभ कमा पाएंगे.
3 आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020- आवश्यक वस्तुओं को छोड़कर भंडारण की आजादी है यानि जमा कर सकते हैं. इसमें अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज़ और आलू को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा दिया गया है. इसका सीधा अर्थ है कि युद्ध जैसी ‘असाधारण परिस्थितियों’ को छोड़कर अब जितना चाहे इनका भंडारण किया जा सकता है.
किसानों का डर समझिये
इससे ज्यादा विस्तार से इन कानूनों को समझने की जरूरत नहीं लगती क्योंकि असल में कई बड़े – बड़े शब्दों का अर्थ यही है . अब किसानों का डर समझिये
आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020- सरकार इस नये नियम के माध्यम से किसानों को राहत देने का तर्क दे रही है जबकि बड़े व्यापारी इसका भंडारण कर बड़ा मुनाफा कमा सकते हैं. किसानों के पास आज भी स्टोरेज की कितनी व्यस्था है आज जानते हैं जबकि व्यापारियों के पास गोदाम और कोल्ड स्टोरेज की कमी नहीं है.
कालाबाजारी बढ़ेगी
ऐसे में किसानों से कम कीमत पर सामान खरीदकर व्यापारी भंडारण करेंगे फिर इसकी कालाबाजारी शुरू हो जायेगी. साल 1955 में इसी कालाबाजी को खत्म करने के लिए कानून लेकर आयी अब एक बार फिर सरकार उन्हें खुली छूट दे रही है. इस कानून से मॉल और बड़ी दुकानों को फायदा होगा उनके बड़े गोदामों में सामान भरा रहेगा और छोटी दुकानों को परेशानी होगी. यह कानून सीधे तौर पर बड़े व्यापारियों को कालाबाजारी की छूट देता है.
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिग में कहां है दिक्कत
कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण ) – इसमें सरकार मुल्य की गारंटी नहीं दे रही यह कंपनियां तय करेंगी. अगर कंपनियों ने कीमत तय कर दी और सरकार की एमएसपी से इसकी कीमत कम है तो किसान को करार के आधार पर कंपनी को ही फसल बेचनी होगी. अगर कोई विवाद होता है तो किसान कोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटा सकेगा. सुनवाई के लिए किसान सिर्फ डीएम तक अपील कर सकता है .
कुछ उदाहरण से समझिये
1 उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटे बाराबंकी जिले में कई किसानों ने दो साल पहले किसान मित्र फ़र्टिलाइज़र कंपनी के साथ करार किया. 65 किसानों ने अनुबंध के आधार पर एलोवेरा की खेती कर ली. फसल तैयार हुई तो इसे लेने वाले गायब थे. कंपनी ने किसानों पर आरोप लगाये कि इसमें कैमिकल का इस्तेमाल हुआ है. फसल वैसी नहीं है कि खरीदी जा सके.
2 इसी जिले में एक किसान का पेप्सीको से करार हुआ. 9 रुपये की कीमत तय थी. फसल तैयार हुई कलकत्ता भेज दिया गया. कंपनी ने आलू में पानी की मात्रा ज्यादा होने, मिट्टी होने, काफी आलू के साइज कम होने की शिकायत की और कीमत में 20 फीसद की कटौती कर दी.
3 गुजरात के बनासकाठा में पेप्सिको और किसानों के बीच भी विवाद का मामला सामने आया था. पेप्सिको कंपनी ने किसानों पर मुकदमा कर करीब एक करोड़ की धनराशि मुआवजे के रूप में मांगी थी. इसका खूब विरोध हुआ तो मुकदमा वापस हो गया लेकिन इस पर हंगामा नहीं होता तो किसान इतनी कीमत कहां से लाते.
एमएसपी क्यों खत्म कर सकती है सरकार ?
कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) – सबसे ज्यादा विवाद इसी कानून को लेकर है. एमएसपी पर विस्तार से बात हो इससे पहले यह समझ लीजिए कि पूरे देश में सिर्फ छह फीसद किसान है जो एमएसपी पर फसल बेच पाते हैं. बाकि के लोग बाहर अपनी फसल बेचते हैं. सान्ता कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि एमएसपी पर सरकार का बोझ बढ़ रहा है इसे हटा देना चाहिए. किसानों को यही डर है कि कॉन्ट्रेक्ट फार्मिग का रास्ता दिखाकर सरकार एमएसपी खत्म कर देगी. एमएसपी 24 फसल में साल में दो बार दिया जाता है. रबी फसल और खरीफ फसल पर.
क्यों सिर्फ पंजाब और हरियाणा के किसानों का विरोध ज्यादा
पंजाब और हरियाणा के ज्यादातर किसान सड़क पर हैं देश के दूसरे राज्यों में भी खेती होती है लेकिन इस प्रदर्शन में सिर्फ इन किसानों की आवाज क्यों सुनायी दे रही है दूसरे राज्यों के किसान चुप क्यों है ? पंजाब औऱ हरियाणा में मंडी ( बाजार समिति) दूसरे राज्यों की तुलना में ज्यादा है. आज देश में सभी राज्य मिला कर लगभग 2500 एपीएमसी मंडियां हैं.शांताकुमार कमेटी ने सिफारिश की थी कि पंजाब, हरियाण, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और आंध्र प्रदेश में FCI के काम को प्रदेश सरकार के जिम्मे कर दिया जाना चाहिए. इससे केंद्र सरकार पर बोझ कम होगा. पंजाब में जहां 2019-20 की रबी की फसल में गेंहू की खरीद 129.12 लाख मीट्रिक टन रही, वहीं यूपी में यह सिर्फ 37 लाख मीट्रिक टन थी. बिहार में यह खरीद मात्र 0.03 लाख मीट्रिक टन रही. बिहार में 2006 में ही APMC यानी मंडी समिति को खत्म कर दिया गया था.
किसान किस हाल में है
जब से देश आजाद हुआ है तब से लेकर आज तक किसानों की आय 21 गुणा बढ़ी है. 1950 में जो किसान एक रूपया कमाता था आज 21 रुपया कमाता है. यह आंकड़ा आपको कैसा लगता है ? किसानों की वृद्धि ठीक है. आजादी से लेकर अबतक की वृद्धि को ठीक से समझना हो तो सरकारी कर्मचारी से करते हैं. एक शिक्षक की आय में वृद्धि 200 गुणा बढ़ी है. अब फर्क समझिये.
सरकारी वादे का हाल क्या है
मोदी सरकार ने वादा किया है कि साल 2022 तक किसानों की आय दोगुणा होगी. 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए, कृषि क्षेत्र को कम से कम औसतन 10 फीसदी सालाना की वृद्धि हो जानी चाहिए हुआ क्या यह 5 फीसदी की औसत दर से भी नहीं बढ़ रही है. पिछले सालों में तो स्थिति और बदतर हुई है. कृषि और संबद्ध क्षेत्रों की वार्षिक विकास दर 2012-13, 2013-14, 2014-15, 2015-16, 2016-17, 2017-18 और 2018-19 में क्रमशः 1.5%, 5.6%, -0.2%, 0.6%, 6.3%, 5.0% और 2.9% रही है.
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