News & Views

Life Journey And journalism

तालिबान और पत्थलगड़ी आंदोलन

 


तालिबान
और  पत्थलगड़ी आंदोलन में क्या समानता हो सकती
है
? 
कहां एक आतंकी संगठन और कहां
गांव के सीधे गरीब आदिवासी. कहां एक कट्टर सोच वाला संगठन और कहां खुले दिल से विचार
रखने वाले लोग. कहां छोटी गललियो पर पत्थर से मार कर न्याय करने वाले तालिबानी और कहां
गांव के सीधे लोग
, जो बड़ी गलतियों पर भी गांव में  बैठक कर के हल निकालते हैं. इन सारी असमानताओं के
बीच कुछ समानताएं निकालनी की गुस्ताफी की है. बस इसे जाति
, धर्म ,कट्टरता
के जश्मे से मत देखियेगा. किसी भी बड़े आंदोलन
, संगठन, विरोध के
मूल कारणों को समझते हुए पढ़ने की कोशिश कीजिएगा. 



 

तालिबान इन दिनों खूब पढ़ा, देखा और
सुना जा रहा है. अपनी समझ के आधार पर सभी विदेश नीति
, भारत के
हस्तक्षेप और अफगानिस्तान के भविष्य की भविष्यवाणी चाय की टपरी पर कर रहे हैं. हेडलाइन
पढ़कर अगर आप नाराज हों रहे हैं
, तो इजाजत है.  वैसे  बगैर गाली गलौज के अपने तर्क कमेंट  बॉक्स में रख सकते हैं.  मैं पहले से मानता हूं, कम अक्ल
का हूं
, अपनी समझ के आधार पर अपनी बात रख रहा  हूं.

इससे पहले कि पत्थलगड़ी आंदोलन और तालिबान के बीच की समानता
और फर्क को सामने रखूं आप तालिबान के बनने की कहानी तलाशिये. यह संगठन कैसे बना
, क्या वजह
रही
? तलाश करने के बाद जो निष्कर्ष निकलेगा, उनमें से
एक अशिक्षा
, बेरोजगारी और समय के साथ विकास की तेज होती रफ्तार में पिछड़ते
रहना
, एक बड़ी वजह के रूप में सामने आयेगी.

अगर आपकी वजहों के साथ- साथ मेरी इन वजहों को भी तालिबान
के बनने का कारण  मानते हैं
, तो आगे पढ़
सकते हैं. अगर नहीं
, तो आपकी मोबाइल का स्क्रीन है, निकल लेने
का ऑप्शन
, तो हमेशा आपकी ऊंगलियों में है.

खैर, जो सहमत है उनके लिए, पत्थलगड़ी
आंदोलन याद
, तो होगा पूर्व सांसद की सुरक्षा में तैनात जवानों का अपहरण, सरकारी नीतियों
का विरोध
, अपनी करेंसी चलाने की चर्चा, सरकारी कागजातों
का अंतिम संस्कार
, अलग कानूनों का जिक्र, बाहरियों
के प्रवेश पर रोक
, अपनी आर्मी तैयार करने की कोशिश, अलग तरह
के हथियार.



इस आंदोलन में कोई छोटा समूह नहीं था. पूरा का पूरा गांव, समाज का
एक बड़ा वर्ग और इन्हें चलाने वाले नेता. पत्रकारों से बात करने वाले प्रवक्ता. सबकुछ
एक बड़े संगठन और अनुशासन के तहत चला था.

इसके पीछे की वजह तलाशी थी कभी, नहीं…..
तो थोड़ी मेहनत कीजिए और तलाशिये.  आपने आपकी
वजहों के साथ-साथ कई जगहों पर यही वजह होगी
, जो ऊपर लिखी
है
, आपकी सहुलियत के लिए दोहरा देता हूं,( दोहराना
क्या है कॉपी पेस्ट कर देता हूं) –  अशिक्षा
, बेरोजगारी
और समय के साथ विकास की तेज होती रफ्तार से पिछड़ते रहना.

तालिबानी कबिलों में रहते हैं, उन्हें जंगली
कहा जाता है. आपके मोबाइल पर तालिबानियों की अजीब – अजीब तस्वीरें पहुंची होंगी. हेलीकॉप्टर
, पार्क, जिम देख
कर हैरान हैं
, बच्चों की तरह व्यवहार कर रहे हैं. जाहिर है उन्होंने अबतक
ठीक से शहर देखी ही नहीं है.

अफगानिस्तान सरकार इतने सालों तक शहर और गांव के फर्क को
दूर ही नहीं कर सकी. ऐसे में इन्हें सत्ता पर कब्जा करने
, अपना देश
बनाने के लिए आसानी से भड़काया जा सकता है

 

पत्थलगड़ी आंदोलन भी शहर में नहीं हुआ, गांव और
दूर दराज इलाकों में हुआ. यहां शहर की चमाचम काली सड़के नहीं पगड़डियां पहुंचती हैं.
सरकारी योजनाएं नाम की है
, कई योजनाएं तब भी अधूरी थी और आज भी अधूरी हैं. रोजगार का
संकट यहां भी है. सरकारी तंत्र से नाराजगी एक बड़ी वजह रही . आंदोलन के जरिये खुद के
जीवन के बेहतर होने की उम्मीद थी. सबकुछ अपना होगा
, अपने लिये
होगा भरोसा था. अपने अगुवा नेताओं पर पूरा भरोसा था. गांवों में आज भी नेता से ज्यादा
उसकी गाड़ियां
, हेलीकॉप्टर देखने के लिए भीड़ होती है. 

 

हालांकि तालिबान और पत्थलगड़ी  आंदोलन में कई बड़ी असमानताएं भी हैं. इन असमानताओं
को लेकर आपके पास कई बड़े तर्क होंगे. मैंने बस यह समझने की और समझाने की कोशिश की
है कि किसी भी तरह का संगठन एक दिन में तैयार नहीं होता
, कोई बड़ी
रणनीति
, आंदोलन एक दिन में नहीं बनता. इस समय रहते समझ लिया जाये, सरकार सही
तरीके से इसे हैंडल कर ले तो स्थिति बदल सकती है.

दुनिया बदल रही है. 
इस बदलती दुनिया में सोच
, विचारधारा और धर्म के प्रति कट्टरता बदलती रहती है. कई बार
इसके रूप बड़े भवावह हो जाते हैं
, तो कई बार सहनशीलता या यूं कहूं, प्रगतिशीलता
आ जाती है. वैसे सरकार
,संगठन इस ट्रेंड को अपनी जरूरत के आधार पर स्वाद अनुसार इस्तेमाल
करना खूब जानते हैं. बस हम और आप यह नहीं समझ पाते कि कहां इस्तेमाल हो रहे हैं और
कहां अपनी आवाज भी नहीं उठा पा रहे. 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *