बंगाली की राजनीति के अहम सवालों पर चुप हैं बंगाली |
बंगाल में चुनाव है और आप घर बैठे न्यूज चैनलों के जरिये बंगाल का मिजाज समझने में लगे हैं. आप हेडलाइन पढ़कर सोच रहे होंगे टीवी पर तो लोग बोलते हैं, जो टीवी पर बोल रहे हैं उनमें से ज्यादातर पार्टी कार्यकर्ता हैं साधारण बंगाली राजनीति पर बोलने से डरता है, ज्यादातर चुप रहता है, जो ग्राउंड पर चुनाव कवर कर रहे हैं उनसे पूछिये कहेंगे बोलने से डरते हैं बंगाली. अब सवाल है क्यों डरते हैं बंगाली ? मैं कुछ महीनों पहले बंगाल की यात्रा पर था. बंगाल इसलिए लिख रहा हूं क्योंकि मैं किसी एक खास शहर तक सीमित नहीं था कई शहरों की यात्रा की और इस यात्रा के दौरान कई छोटे – छोटे गांव और कस्बों से भी गुजरता रहा. तब बंगाल चुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं हुआ था लेकिन बंगाल की राजनीति तेज होने लगी थी, पोस्ट बैनर नजर आने लगे थे. रंग चुनावी हो रहा था.
मैंने इस दौरान अनुभव किया कि बंगाली ज्यादातर चुनावी चर्चा से बचते हैं. आपकी हजार कोशिशों के बाद भी वह अपने मन की बात नहीं कहते. एक जगह तो मुझे डांट पड़ गयी, जगह का नाम तो मुझे ठीक से याद नहीं है लेकिन बंगाल में कोई छोटी सी जगह थी. चौराहे पर चाय की दुकान से सटी फल की एक दुकान थी. वहां चाय पीते – पीते मैंने बंगाल का मिजाज समझने की कोशिश की. मैंने चुनावी माहौल परखने वाला, 2000 साल करोड़ से चला आ रहा घिसापिटा सवाल पूछा, जो हर बार पूछा जाता है ममता बनर्जी ने कैसा काम किया है, क्या दोबारा जीतेंगी. सामने फल की दुकान पर बैठा आदमी चुपचाप रहा और ऐसे मुंह फेर दिया जैसे उसने सवाल सुना ही नहीं, मैं थोड़ी देर चुप रहा फिर सोचा हो सकता है सवाल सुना ना हो, मेरी तरफ ध्यान ना दिया हो, तो दोबारा हिम्मत करके फिर सवाल किया… चचा क्या लगता है इस बार भाजपा जीतेगी.
इस बार उन्होंने सवाल अनसुना नहीं किया जवाब दिया लेकिन उन्होंने जो जवाब दिया उसका राजनीति से कोई रिश्ता नहीं था कहा, चुपचाप चाय खत्म कीजिए और जाइये यहां से, अपने काम से काम रखिये. चचा नाराज हो गये थे और अपनी बेइज्जती हो गयी थी. मुझे समझ नहीं आ रहा था किस तरह बात संभाली जाये, तो मैंने कहा- अरे नाराज क्यों हो रहा है राजनीति में दिलचस्पी नहीं है, तो बोल दीजिए इस बार उनकी प्रतिक्रिया वैसी ही थी जैसे पहले सवाल पर थी.
अब मेरे पास दो रास्ते थे या तो चचा की बात मानते हुए चाय खत्म करता औऱ निकल जाता या अपने आदत की तरह दोबारा उन्हें छेड़ने की कोशिश करता. मैंने चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लाने की कोशिश करते हुए कहा, इतने नाराज क्यों हो गये हैं, उन्होंने कहा, अरे कोई नाराज वाराज नहीं है . इस बीच उनकी चाय दुकान वाले से बांग्ला में बात हुई. मैं मानता हूं कि बंगाली बोल नहीं पाता लेकिन इतना भी वेबकूफ नहीं हूं कि समझ नहीं पाता. उनकी इस बात से इतना तो जरूर समझ गया कि वो किसी अनजान व्यक्ति के सामने राजनीति पर बात करने में कतराते हैं.
अब हमें अपना परिचय देना जरूरी लगा, तो बताया कि चचा पेशे से पत्रकार हूं, बंगाल का मिजाज समझना चाहता हूं इसलिए पूछ रहा था. उनके खड़ुस चेहरे पर अब जाकर मुझे हल्की राहत दिखी उन्होंने कहा, अच्छा पत्रकार हैं, तब तो लाइसेंस है आपको बात करने का,कहां से आ रहे हैं, कहां जायेंगे, किसलिए आये हैं. एक – एक कर उन्होने कई सवाल किये और मैने उन सारे सवालों का जवाब दिया, इसके बदले में उन्होंने मुझे बंगाल का मिजाज समझने में मदद की.बंगाली चुनावी राजनीति पर अपना पक्ष रखने से क्यों डरते हैं. बंगाल में हिंसा का इतिहास रहा है, लोग चुपचाप मतदान करते हैं, अपनी बात रखने से डरते हैं कि वो किसी पार्टी के हैं किसका समर्थन करते हैं.
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