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मैं कृष्ण बिहारी मिश्रा सर के साथ नहीं पत्रकारिता के साथ खड़ा हूं

हमारी खबरों का माध्यम क्या होता है ? प्रेस कॉन्फ्रेंस, एजेंसी, प्रेस रिलीज जो खबरें हमतक दौड़ कर चली आती है, उन्हें छोड़ दीजिए क्योंकि जो दिखाया जा रहा है, वह खबर ही नहीं है, जो छुपाया जा रहा है, खबर वो है. असल प्रत्रकारिता  में हमारे सोर्स, सूत्र. जो भी खबरें देते हैं, हम उसमें क्या देखते हैं ? कागज, तस्वीरें और सच्चाई. इन सब की पड़ताल के बाद भी खबर सही लगे, तो प्रकाशित करते हैं. इस पत्रकारिता में रिस्क है लेकिन देश और दुनिया में पत्रकारिता का इतिहास उठा कर देख लीजिए बड़े घोटाले, बड़ी खबरें इसी तरह ब्रेक होती है. 

कृष्ण बिहारी मिश्रा सर ने जो खबर लगायी है, उस तस्वीर में साफ – साफ दवा की एक्सपायर तारीख दिख रही है. दवा में जो बैच नंबर है, दिख रहा है. एक प्राइवेट अस्पताल की लापरवाही का मामला है ये. इस पर प्रशासन  की तरफ से एक चिट्ठी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. जिसमें जवाब लिखा गया है कि अस्पताल की तरफ से जो कागज दिखाये गये वो सही पाये गये हैं. आपकी खबर गलत है.

इस जांच में तो तस्वीर गलत नहीं है, अच्छा तो तस्वीरें भी झूठ बोलती हैं, तो वो कौन से कागज थे, जिन्होंने इन तस्वीरों को गलत करार दिया है ?  एकस्पायर दवा को सही बताने वाले कागज कौन से हैं ?  हम सभी पत्रकारों को यह जानने का हक है. कम से कम इसलिए क्योंकि हम भी यह मान लें कि तस्वीरें गलत और भ्रामक जानकारी देती हैं. इस तस्वीर को देखकर कम से कम मुझे तो ये नहीं लग रहा है कि इसके साथ कोई छेड़छाड़ या फोटोशॉप की गयी है.   

यह तो डराने वाली बात हो गयी. ऐसे भी आजकल पत्रकार खबरों के चयन में बड़ी सावधानी बरतते हैं. कोई हिम्मतभी करे, तो एक कागज को आधार बनाकर दूसरा कागज दिखाकर डरा दो. 48 घंटे का वक्त दे दिया कि जवाबदीजिए नहीं तो कार्रवाई करेंगे. जांच कहां हुई कैसे हुई ?  किनकी उपस्थिति में हुई ?  क्या जिस बच्चे को यह वैक्सीन मिली वो मौजूद था. उनका पक्ष पूछा गया ? जिसने खबर प्रकाशित की उससे मदद मांगी गयी कि इस खबर के प्रकाशन के साथ- साथ आपके पास क्या – क्या प्रमाण है दीजिए. इस जांच का आधार क्या था ?ऐसे कई सवाल हैं जो किसी भी पत्रकार के मन में उठेंगे. 

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