Jharkhand tourism |
पुरानी घिसी पिटी और कई बार इस्तेमाल की हुई लाइन है, झारखंड में पर्यटन की असीम संभावना है. हम सभी मानते हैं, झारखंड में पर्यटन पर खूब खर्चा हुआ है. अब भी कई ऐसी जगहें हैं जो बेहद खूबसूरत है लेकिन इंतजार में है कि इन्हें पहचान मिलेगी, पुरानी जगहों पर पूरानी सरकार ने भी खर्चा किया है अब नयी सरकार ( उतनी भी नयी नहीं रही ) भी यही कर रही है. झारखंड में पर्यटन पर ज्यादा खर्च करने की जरूरत नहीं है, प्रकृति ने सबकुछ दिया है हमें. इतने खर्चों के बावजूद पर्यटन कितना आगे बढ़ा ? जिन जगहों पर खर्च हुआ उनकी स्थिति क्या है ? इन सवालों का जवाब तलाशे बगैर नयी पर्यटन योजना पर खर्च जायज नहीं लगता.
राज्य सरकार एक बार फिर 52 करोड़ रुपये खर्च कर रही है. राज्य के लातेहार, रांची, पूर्वी सिंहभूम और सरायकेला जिले के छह पर्यटन केंद्रों की 430 किलोमीटर की दूरी को इको टूरिज्म सर्किट के रूप में विकसित करने की योजना है. दो साल में इस काम को पूरा करने का लक्ष्य है.
इको टूरिज्म के रूप में विकसित करने से पहले इन जगहों की हालत देखनी चाहिए. पुराने पैसे जो इन जगहों पर खर्च किये गये उनसे कितना लाभ हुआ, पर्यटक आये, नहीं तो क्यों ? हम भारतीय परिवारों में अक्सर घर में मेहमान के आने से पहले सोफा ठीक कर दिया जाता है, अस्तव्यस्त चीजें जगह पर रख दी जाती है. घर सुंदर लगे ये कोशिश होती है बाकि मेहमाननवाजी तो हमारे रगों में है. अब सोचिये मेहमान आये और बैठने की जगह ना हो, बाथरूम की व्यस्था ना हो तो ?
हम पर्यटकों को बुलाने के लिए खूब खर्च कर रहे हैं सवाल उठता है हम तैयार कितने हैं ? मैं इसी महीने चांडिल डैम घूमकर लौटा हूं. बांध की ऊंचाई 220 मीटर है और इसके पानी के स्तर की ऊंचाई अलग-अलग जगहों से 190 मीटर है. कमाल की जगह है, बेहद खूबसूरत लेकिन जो सुविधाएं एक पर्यटक उम्मीद करता है बिल्कुल नहीं है.
पर्यटन स्थल में सबसे बड़ी जरूरत है शौचालय की. यहां के शौचालय में ज्यादातर ताला लगा रहता है. शौचालय खूला भी हो तो पानी की व्यस्था नहीं होती. कोई एक व्यक्ति नहीं है जो इस संबंध में जवाब दे सके. अगर आसपास किसी से पूछो तो वह खुली जगह दिखाकर शौचालय के लिए प्रेरित कर देता है . अगर आप अपने परिवार के साथ यहां गये हैं और किसी महिला को शौचालय जाना है, तो उसे इसी शौचालय के पीछे की दिवार इशारे से दिखा दी जायेगी. प्रेशर ज्यादा है और शर्म कम तो उसे ही शौचालय के रूप में इस्तेमाल करना होगा.
लाखों करोड़ों रुपये खर्च करके यहां पर बोट खरीदे गये. सब कचरे की तरह पड़े हैं. इतने महंगे बोट भी पड़े हैं कि अगर आप एक बोट की कीमत पता करेंगे तो कम से कम दस लाख रुपये की होगी. ढेर सारे बोट खराब हो चुके हैं, कुछ खराब हो रहे हैं. मछली पकड़ने के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले नेट सड़ रहे हैं. लाखों करोड़ों का नुकसान हो रहा है और नयी सरकार नये खर्च की तैयारी में है. प्रशासन द्वारा पर्यटन विभाग को दस एकड़ भूमि पर्यटन के सर्वांगीण विकास के लिए दी गई है, जहां पर्यटकों को रहने व अन्य सुविधा के साथ उनके मनोरंजन को लेकर तमाम इंतजाम किये जाने थे.
आसपास के इलाकों में रहने वाले लोग यहां पहुंचने वाले पर्यटकों से अवैध पैसे वसूलते हैं. कभी पार्किंग के नाम पर तो कभी इंट्री फीस के नाम पर है. चांडिल डैम जाने का सही रास्ता है जिससे आप सीधे डैम तक पहुंच सकते हैं, उसे बांस से बंद करके दूसरे रास्ते पर डाइवर्ट कर देते हैं और यहां पार्किग के नाम पर आपसे पैसे वसूल लिये जाते हैं. मैं इसे अवैध इसलिए मान रहा हूं कि क्योंकि मुझे ना तो पार्किग के लिए पैसे देने के बाद रसीद मिली ना ही सवाल पूछने पर कोई जानकारी .
तो साहेब खर्च करिये, पैसे की कमी नहीं है आपके पास लेकिन इन खर्च से पहले पुराने खर्चों का हिसाब करिये तो ज्यादा पुख्ता योजना बना पायेंगे. करोड़ों का खर्चा है कहीं निवेश से पहले इसके वापस आने की संभावनाओं पर भी जरूर ध्यान दीजिए, सबसे पहले लिखी गयी लाइन को फिर दोहरा रहा हूं झारखंड में पर्यटन की असीम संभावनाएं हैं.
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