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Taliban Afghanistan Full Details – अफगानिस्तान में तालिबान के बनने की पूरी कहानी, भारत पर कितना होगा असर ?


अफगानिस्तान में भारतीय पत्रकार की हत्या हो गयी. कंधार में वह अफगानिस्तान की सरकार और तालिबान के बीच के संघर्ष को कवर करने गये थे.  दानिश सिद्दीकी रायटर्स समाचार एजेंसी के लिए काम करते थे. ऐसा नहीं है कि तालिबान की चर्चा आज हो रही है. लंबे समय से भारत अफगानिस्तान के हालात पर नजर रख रहा है और वहां के बदलाव का असर हमारे देश पर भी पड़ेगा. 

आइये सबसे पहले समझते हैं तालिबान है क्या ?  इसका मकसद क्या है ? 

दुनिया के इतिहास में आंदोलन तभी बड़ा हुआ है जब युवाओं ने इसमें आगे बढ़कर हिस्सा लिया हो चाहे हमारे देश का जेपी आंदोलन हो या ताजा – ताजा अन्ना हजारे का आंदोलन तालिबान का जन्म भी कुछ विद्यार्थियों की उपज थी मात्र 50 लोगों ने मिलकर इसका गठन किया . इससे पहले कि इसके इतिहास का जिक्र हो तालिबान का मतलब समझ लीजिए और आसानी होगी तालिबान पश्तो भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है ज्ञानार्थी (छात्र)। ऐसे छात्र, जो इस्लामिक कट्टरपंथ की विचारधारा पर यकीन करते हैं. इसका अर्थ और अर्थ से मतलब तो समझ गये अब तालिबान के बनने की कहानी समझिये. अगर तारीख खोजने जायेंगे तो यह सितंबर का महीना होगा और साल होगी 1994 की. 

इस तरह के संगठन में एक लीडर होता है जिसकी सोच का नतीजा होता है ऐसा खतरनाक संगठन तो इस संगठन के पीछे हाथ था मुल्ला मोहम्मद ओमर का.  अफ़गानिस्तान में कुल 34 प्रांत हैं. इन्हीं में से एक है, कंधार. ये प्रांत 17 ज़िलों में बंटा है. इनमें से एक ज़िला है, ख़ाकरेज़. यहां ‘चाह-ए-हिम्मती’ नाम का एक गांव है. ओमर इसी गांव का रहने वाला था. पिता मौलवी रहते थे. नाम था, ग़ुलाम नबी अख़ूंद इसी माहौल में पढ़ा और इस्लाम की शिक्षा हासिल की. 

जब तालिबान बना तो इसके पीछे की सोच भी यही थी दावा किया गया इस्लाम खतरे में है. ओमर का दिमाग इतना तेज था कि 50 लोगों के साथ शुरू किया गया संगठन एक महीने में ही 1500 से ज्यादा लोगों को जोड़ने में सफल रहा. 

किसकी मदद से बना तालिबान ? 

आतंकवाद से तालिबान के रिश्ते को समझने के लिए थोड़ा और पीछे जाना होगा पहले यह समझना होगा कि तालिबान के बनने के पीछे की कहानी क्या है ?  तालिबान बना तो इसमें खाद और पानी किसने दिया मतलब इनके पास हथियार और पैसा कहां से आया. तो चलते हैं 1950 से 1990 के दशक में जब  अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध चल रहा था.  1979 में सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर हमला कर दिया. अमेरिका यहां सोवियत संघ को कमजोर करना चाहता था इसलिए उसने बागी तैयार किये. उन्हें हथियार दिया वो सारी चीजें दी जिससे यह मजबूत हो और खुलकर लड़ें.

सारा पैसा पहुंचता था पाकिस्तान के कराची के रास्ते. ना सिर्फ अमेरिका और पाकिस्तान बल्कि चीन, सउदी अरब सहित कई देशों ने इसे बड़ा करने में अहम भूमिका निभायी. कई ग्रुप बनें. ये लड़ाके इतने खतरनाक हो गये कि  10 साल के अंदर की इस लड़ाई में सोवियत सेना ने अपने 15,000 सैनिकों को खो दिया. सेना वापस चली गयी. गृह युद्ध हुआ सरकार बनी लेकिन इस बीच इस्लामिक कट्टरवाद बढ़ता गया कई ग्रुप बने . 

अमेरिका और तालिबान के बीच समझौता 

तालिबान और आतंकवाद 

इस्लामिक कट्टरवाद का नतीजा था कि तालिबान से कई संगठन बने.  24 दिसंबर, 1999 इंडियन एयरलाइंस की  फ़्लाइट IC 814 का अपहरण कर लिया और इसे कंधार ले जाया गया उस वक्त वहां तालिबान की सरकार थी. तालिबान ने अपहरणकर्ताओं और भारत सरकार के बीच मध्यस्थता कराई.  36 आतंकियों को रिहा करने की मांग आतंकियों ने रखी. भारत को   तीन आतंकियों को छोड़ना पड़ा जिनमें ओमर शेख. मौलाना मसूद अजहर. और, मुश्ताक़ अहमद ज़रगार थे . एक और तारीख जो दुनिया के इतिहास में दर्ज है 9/11. साल 2001ओसामा बिन लादेन ने अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और पेंटागन पर हवाई हमला कर दिया, जिसमें कई बेकसूर लोगों की जानें गईं। इस घटना के बाद अमेरिका हरकत में आया है और उसने तालिबान से ओसामा बिन लादेन को सौंपने के लिए कहा। अमेरिका के इस प्रस्ताव को तालिबान ने अस्वीकार कर दिया. भारत में भी तालिबान के आतंकवाद का असर रहा है. भारत में तालिबान और पाकिस्तानी समर्थित कई संगठन अब भी एक्टिव हैं. 

अफगानिस्तान के 80 फीसद से ज्यादा हिस्से पर तालिबान ने कब्जा कर लिया है. अमेरिका अपने हाथ पीछे खींच रहा है. उसने तालिबान से गुप्त समझौता कर लिया है और भारत को भी सहमति बनाने का इशारा किया है. भारत लंबे समय से तालिबान के खिलाफ रहा है. अफगानिस्तान में लोकतंत्र को सपोर्ट करने के लिए वहां बड़ा निवेश किया है ऐसे में भारत की रणनीति क्या होगी यह देखना होगा क्योंकि तालिबान के सत्ता में आने से भारत को बड़ा नुकसान हो सकता है.   

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