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पत्रकारिता में भ्रम और सत्य, किसे कहते हैं स्टार पत्रकार ?

पत्रकारिता में भ्रम और सत्य 

पत्रकारिता के पेशे में भ्रम और सत्य दोनों का साथ मिलता है। भ्रम  कई बार सच साबित होते हैं, तो कभी – कभी सच का भी भ्रम होता है। पत्रकारिता आपको एक चीज सबसे ज्यादा देती है पहचान…। आपकी पहचान आपके पेशे की वजह से है। अपने नाम से पत्रकार की पहचान निकाल कर देखिए जरा, आपकी कितनी पहचान बची रहती है। इस पहचान के कई मायने हैं, इसे पत्रकारों को समझना चाहिए खासकर नये पत्रकारों को क्योंकि पुराने अब इस भ्रम को सच मानने लगे हैं। नेता ने कांधे पर हाथ रख दिया, तो सीना फूला लिया, मुख्यमंत्री के साथ सेल्फी शेयर कर ली, तो सरकार बचाने और गिराने का दंभ भरने लगे। ये सब आप आजकल ज्यादातर पत्रकारों में देखेंगे।

नये युवा पत्रकार पत्रकारिता कर के कम फैन बनकर ज्यादा मिलते हैं, भैया आपका काम देखते हैं आपके जैसा बनना है। फलां भैया भी हमको पसंद हैं। नये पत्रकारो को मैंने हमेशा कहा है किसी के जैसा नहीं अपने जैसा बनो। पुराने पत्रकारों से ये कहना चाहता हूं कि कृपया ये  भ्रम मत पालिए कि आप नहीं होते, तो कुछ नहीं होता। किसी गरीब के साथ सेल्फी शेयर करके ये मत जताइये कि आपने इनके लिए क्या कर दिया। आपको इस पेशे ने इसी वजह से पहचान दी है कि आप काम आ सकें बल्कि इसलिए नहीं कि अपनी पहचान को चमकाने के लिए आप गरीबों को सीढ़ियों की तरह इस्तेमाल करें। इन सीढ़ियों पर चढ़कर कहां जायेंगे आप आपने कितनी ऊंचाई तय करने की ठान ली है। 

पत्रकार या मैनेजेर 

पुराने वाले पत्रकारों से बात थोड़ी लंबी चलेगी, तो नये पत्रकार इतमिनान से समझें क्योंकि इसमें उनके लिए भी संदेश है कि किससे बचना चाहिए। पत्रकारों  में सबसे ज्यादा लड़ाई जानते हो दोस्त किसका है ? लड़ाई है खबर के असर का, सबसे पहले हमने ब्रेक किया, हमारी खबर का असर हुआ, हमारे वीडियो पर एक्शन हुआ। पुराने पत्रकारों में पत्रकारिता इतनी सिमट गयी है कि ट्वीट के या फेसबुक पोस्ट के असर तक सिमट आयी है। अब तो कई मामले ऐसे भी आते हैं कि पत्रकार साहेब खुद किसी नेता का सोशल मीडिया संभालते हैं, खुद अपने ट्वीट को नेता के अकाउंट से रिट्वीट कर देते हैं। बस हो गया असर, कमाल है ना. ये पत्रकार भी कहलाते हैं। असल में ये मैनेजेर हैं, जो इवेंट मैनेज करना जानते हैं, ये समझते हैं कि कौन सी खबर पर कैसे वाहवाही लेनी है। 

गरीबों के साथ सेल्फी में अपनी किस्मत चमकाने की कोशिश

कई पुराने और वरिष्ठ साथियों को देखता हूं कि उन्हें लगता है वो नहीं होते तो इस राज्य के गरीब, दुखियारों का क्या होता ? खुद को इतना बड़ा मानने लगते हैं कि पत्रकार कम फिल्म स्टार ज्यादा होने लगते हैं, फैन फॉलविंग, स्टारडम, सेल्फी सबका आनंद लेते हैं लेना भी चाहिए. बड़े पत्रकारों के साथ ये होता है लेकिन वही बड़े पत्रकार ये बताते हुए वीडियो नहीं बनाते, ये नहीं बताते कि देख रहा है ना विनोद… ।  यहां सिर्फ विनोद ही नहीं देख रहा, विनोद के साथ- साथ हम जैसे कई लोग हैं जो इसे समझते हैं। 

नये पत्रकारों से अपील 

पुराने वालों को बोल के फायदा तो है नहीं, कहेंगे अच्छा… जुनियर होके हमको समझा रिया है. तो नये पत्रकार भाई लोग जो हमने जुनियर हैं उन्हें समझाने का तो अधिकार है ना तो सुनो दोस्त… पत्रकारिता ना कमाल का पेशा है. अब पेशा ही पहले पैशन था, इसमें तुम्हें कई तरह के लोग मिलेंगे. वैसे लोग भी जो अहसास करेंगे तुम सबसे कमाल के हो, ऐसे भी जो कहेंगे ना बोलना आता है, ना लिखना । ऐसे लोग भी जो तुम अच्छा करोगे तो कांधे पर हाथ रखकर शाबाशी देंगे, ऐसे लोग भी जो दोनों पैर पकड़कर इस डर से खींच लेंगे कि तुम कहीं उनसे आगे ना निकल जाओ। 

तुम ना किसी की शाबाशी से खुद में घमंड ले आना ना किसी के रोकने से डर जाना। खुद में विश्वास करना, अपनी मेहनत पर भरोसा रखना और अपनी औकात हमेशा नापकर रखना। जमीन पर रहोगे तो ना उड़ने में डर लगेगा ना गिरकर टूट जाने का भय। सच्चाई और भ्रम में फर्क समझना, अपन से जुनियर को कभी मत महसूस होने देना कि तुम इतने बड़े हो गये हो कि तुम तक पहुंचना मुश्किल है।

इस लेख को पढ़ते हुए दिमाग में कई पत्रकारों की छवि उभरेगी। रविश कुमार, पुण्य प्रसून वाजपेयी से लेते हुए झारखंड बिहार के कई ऐसे वरिष्ठ पत्रकार जिनसे हम सभी ने कुछ ना कुछ सीखा है। इस सीखने की प्रक्रिया में ये जरूरी नहीं कि उन्होंने हमें हाथ पकड़कर सिखाया हो। हमने उनकी रिपोर्टिंग, खबरों को पेश करने के तरीके और उनके संघर्ष के सफर से सीखा है। इस यात्रा में उनसे प्रभावित होने के साथ- साथ ये जरूरी नहीं कि हमारा सफर भी वैसा ही हो। हमें उनकी खूबियों से ही नहीं कमियों से भी सीखना है। कई बार हमें पता होता है कि उन्हें क्या नहीं चाहिए था। 

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